डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: पूरी दुनिया का ध्यान खींचती क्यूबा की स्वास्थ्य सेवाएं
By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Published: April 5, 2020 08:02 AM2020-04-05T08:02:36+5:302020-04-05T08:02:36+5:30
क्यूबा ने अपने यहां सन 1981 में फैली डेंगू की महामारी, जिसमें लगभग उसके साढ़े तीन लाख नागरिक प्रभावित हो गए थे और लगभग दो सौ लोगों की मौत हो गई थी, को जिस जज्बे के साथ हराया था, उसकी तारीफ पूरी दुनिया करती है क्योंकि क्यूबा ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने वाली दवा इन्टरफेरोन अल्फा-2बी के प्रयोग से महामारी को काबू में कर लिया था.
वैसे तो मेरे लिए इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व के अलावा किसी अन्य विषय पर लिखना थोड़ा कठिन होता है किंतु कोरोना के खौफ के बीच इसी से जुड़ी एक ऐसी खबर की चर्चा हो रही है जिसे हम सभी को जानना चाहिए और यह चर्चा है एक छोटे से देश क्यूबा के डॉक्टरों की.
महामारी से बुरी तरह प्रभावित इटली ने अपने यहां कोरोना के इलाज के लिए छोटे से देश क्यूबा के डॉक्टरों से मदद मांगी है. क्यूबा की सरकार ने भी तत्परता दिखाते हुए अपनी 53 सदस्यीय टीम 22 मार्च को ही इटली भेज दी थी जो कि इलाज में जुटी हुई है.
क्यूबा ने अपने यहां सन 1981 में फैली डेंगू की महामारी, जिसमें लगभग उसके साढ़े तीन लाख नागरिक प्रभावित हो गए थे और लगभग दो सौ लोगों की मौत हो गई थी, को जिस जज्बे के साथ हराया था, उसकी तारीफ पूरी दुनिया करती है क्योंकि क्यूबा ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने वाली दवा इन्टरफेरोन अल्फा-2बी के प्रयोग से महामारी को काबू में कर लिया था.
लाखों लोगों के संक्रमण का शिकार होने के बावजूद वहां मृतकों का अनुपात अत्यल्प था. यही कारण है कि तब से ही यह दवा पूरी दुनिया में क्यूबन इन्टरफेरोन के नाम से एक चमत्कारिक दवा के रूप में प्रसिद्ध है.
विशेषज्ञों के अनुसार यह दवा हर तरह के वायरल संक्रमण में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की कारगर दवा है यानी कि कोरोना में भी. अगर मीडिया रिपोर्टो पर भरोसा करें तो चीन के वुहान में कोरोना के फैलने पर वहां के मेडिकल कमीशन ने रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाली जिन चुनिंदा दवाओं की रोग प्रतिरोधक दवाओं के रूप में प्रयोग की अनुशंसा की थी उनमें क्यूबन इन्टरफेरोन अल्फा-2बी शामिल थी.
कहानी यहीं नहीं खत्म होती. जब सन 1984 में क्यूबा में मेनिनजाइटिस टाइप बी, एक महामारी के रूप में फैलने लगी तो वहां के विशेषज्ञों ने जी-तोड़ मेहनत कर 1988 में इसका वैक्सीन तैयार कर डाला. इसीलिए स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्न में क्यूबा मॉडल का उदाहरण हमेशा दिया जाता है.
यहां मेडिसिन हो, हॉस्पिटल हो, डॉक्टर अथवा पैरामेडिकल स्टाफ हो सभी का मानक विश्वस्तरीय होता है और इससे भी बढ़कर दुनिया के किसी भी हिस्से में बिना झिझक जाकर सेवाएं प्रदान करना, यही क्यूबा का मॉडल है. और ये सब इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि क्यूबा अपनी जीडीपी का बारह प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है और साक्षरता की दर सौ फीसदी है. यही कारण है कि प्रति हजार व्यक्तियों पर यहां डॉक्टरों का अनुपात 8.12 है.
यहां यह भी बताना आवश्यक है कि क्यूबा खुद भी कोरोना से संक्रमित है और वहां ढाई सौ से अधिक मामलों की पुष्टि हो चुकी है. इसके बावजूद दूसरों की मदद करने का जज्बा ही इस छोटे से देश की पहचान है.