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ब्लॉग: ऋषि सुनक पर निरर्थक राजनीतिक बहस, ब्रिटेन के मुकाबले भारत कहीं अधिक उदार

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: October 28, 2022 13:23 IST

ब्रिटेन में ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री तो उसने मजबूरी में बनाया है क्योंकि वे ही अभी कंजरवेटिव पार्टी के अंतिम तारणहार दिखाई पड़ रहे हैं. उनका प्रधानमंत्री बनना अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की श्रेणी से बाहर का प्रपंच है.

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ब्रिटेन में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर भारत में बधाइयों का तांता लगना चाहिए था लेकिन अफसोस है कि हमारे नेताओं के बीच निरर्थक बहस चल पड़ी है. बहस चलानेवाले क्यों नहीं समझते कि भारत तो ब्रिटेन के मुकाबले कहीं अधिक उदार राष्ट्र है. इसमें सर्वधर्म, सर्वभाषा, सर्ववर्ग, सर्वजाति समभाव की धारणा ही इसके संविधान का मूल है. वे भूल गए कि ब्रिटेन के मुकाबले भारत कहीं अधिक सहिष्णु रहा है. 

जब नेता ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग करते हैं, तो उनका अर्थ सिर्फ मुसलमान ही होता है. भारत में डॉ. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने. क्या ये तीनों महानुभाव मुसलमान नहीं थे? भारत के कई अत्यंत योग्य मुसलमान सज्जन उप-राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सेनापति आदि रह चुके हैं. ब्रिटेन हमें क्या सिखाएगा? अभी उदारता में तो वह पहली बार घुटनों के बल चला है. 

सुनक को प्रधानमंत्री तो उसने मजबूरी में बनाया है. छह साल में पांच प्रधानमंत्री उलट गए, तब जाकर सुनक को स्वीकार किया गया है. वे प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बनाए गए थे क्योंकि वे अश्वेत हैं, हिंदू हैं या वे ब्रिटिश मूल के नहीं हैं. वे ही कंजरवेटिव पार्टी के अंतिम तारणहार दिखाई पड़ रहे थे. वे ‘अल्पसंख्यक’ होने के कारण नहीं, अपनी योग्यता के कारण प्रधानमंत्री बने हैं.  ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की श्रेणी से बाहर का प्रपंच है. 

2025 के अगले चुनाव में यदि वे चुने गए और प्रधानमंत्री बन गए तो क्या वे अल्पसंख्यकों के वोट से बन जाएंगे? ब्रिटेन के लगभग 7 करोड़ लोगों में से भारतीय मूल के मुश्किल से 15 लाख लोग हैं. क्या इन ढाई प्रतिशत लोगों के वोट पर कोई 10, डाउनिंग स्ट्रीट में जाकर बैठ सकता है? तो फिर इस बहस की तुक क्या है? 

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