ब्लॉग: अफगानिस्तान को तालिबानियों के सहारे छोड़ अमेरिका ने कर दी दूसरे शीत युद्ध की शुरुआत!

By शक्तिनन्दन भारती | Published: August 20, 2021 09:03 PM2021-08-20T21:03:45+5:302021-08-20T21:03:45+5:30

अफगानिस्तान को तालिबानियों के सहारे छोड़ कर जाना कूटनीतिज्ञों की नजर में चीन और रूस के लिए दूसरे शीत युद्ध की शुरुआत मानी जा रही है।

America starts second cold war by leaving Afghanistan to Taliban | ब्लॉग: अफगानिस्तान को तालिबानियों के सहारे छोड़ अमेरिका ने कर दी दूसरे शीत युद्ध की शुरुआत!

तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा वैश्विक राजनीति (फाइल फोटो)

प्रथम शीत युद्ध के समापन के बाद जब रूस का विघटन हुआ उस समय, रूस से अलग होने वाले प्रमुख देश उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान आदि थे। रूस के विघटन में इन तालिबानियों बड़ा हाथ था।                                          
अमेरिका ने उस समय के तालिबानियों को बहुत समर्थन दिया था। ओसामा बिन लादेन सहित आज का बिरादर गुट सभी रूस के खिलाफ लड़ने गए थे।   

तालिबानियों का यह गुट कब तालिबान आतंकवाद में बदल गया, और कब इसने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया पता ही नहीं चला, पहली बार यह घटना 1998 में हुई थी। इस घटना के एक-दो साल के भीतर ही वह समय आया जब लादेन के निर्देशन में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के जुड़वा टावर गिरा दिए गए। तब अमेरिका को पता पड़ा की उसने जिस सांप को पाला था, वह उसे ही डस चुका है।                                                 

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिराए जाने के बाद अमेरिका को एहसास हुआ कि उसके पाले आतंकवादियों पर उसका कंट्रोल अब खत्म हो चला है। अफगानिस्तान में अमेरिका अपनी उपस्थिति इसलिए दर्ज कराना चाहता है ताकि वहां से ईरान, इराक, अरब, रूस पर उसका कंट्रोल स्थापित हो सके।                    

तेल संसाधनों की कूटनीति के चलते अमेरिका ने इराक को बर्बाद किया। उसने अपने विद्रोही कमांडर ओसामा बिन लादेन को मारा। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जॉर्ज बुश से लेकर जो बाइडन तक, अमेरिका ने अपनी सैन्य उपस्थिति अफगानिस्तान में बनाए रखी। अमेरिका ने तालिबानियों को दो गुटों में बांटा। गुड तालिबान, बैड तालिबान। 

यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि गुड तालिबान में वे तालिबानी आए जिन्होंने रूस के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। बैड तालिबान गुट में वे तालिबानी आए जिन्होंने अमेरिका को अफगानिस्तान में काफी नुकसान पहुंचाया था।

गुड तालिबानी गुट बिरादर गुड और बैड तालिबानी गुट हक्कानी गुट है। वर्तमान में जिस गुट का अफगानिस्तान पर कब्जा है वह बिरादर गुट है। अमेरिका अगले 20 वर्षों के लिए अपने खतरनाक मुखौटे अफगानिस्तान में छोड़कर जा रहा है। 
 
हाल ही में मास्को ने भी ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ अपने सैन्य अभ्यास का संचालन किया है। मास्को ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह अभ्यास तालिबानियों के विरुद्ध एकजुटता दिखाने के लिए है। 

चीन ने भी तालिबान को कूटनीतिक रूप से समर्थन देने की बात इस शर्त पर कि है कि तालिबान उईगर अलगाववादी समूह से कोई संबंध नहीं रखे। वर्तमान में उइगर अलगाववादी समूहों और तालिबानियों के बीच संबंध हैं।

अफगानिस्तान को तालिबानियों के सहारे छोड़ कर जाना कूटनीतिज्ञों की नजर में चीन और रूस के लिए दूसरे शीत युद्ध की शुरुआत मानी जा रही है। अमेरिका वैसे भी चीन के बढ़ते प्रभाव से आजकल अत्यंत चिंतित रहता है।    

अफगानिस्तान के लिए भारतीय कूटनीति का प्रभाव भविष्य के गर्त में है। यह पता चलने में कि भारत की स्थिति और संबंध तालिबान और अफगानिस्तान के प्रति किस प्रकार के रहेंगे समय लगेगा और संभवत यह इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबानियों का रुख भारत के प्रति कैसा है।

अमेरिका ने अफगानिस्तान की सर्जरी के नाम पर शल्य-उपकरण एक बार फिर बंदरों के हाथ में दे दिया है।

Web Title: America starts second cold war by leaving Afghanistan to Taliban

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