योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग: प्रकृति पूजा, आस्था और निष्ठा का अनुपम लोकपर्व है छठ
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 20, 2020 04:35 PM2020-11-20T16:35:54+5:302020-11-20T17:09:28+5:30
छठ महापर्व का बहुत महत्व है. दिवाली के बाद ही इसके लिए तैयारियां शुरू हो जाती हैं. छठ को लेकर क्या हैं मान्यताएं कैसे इस विशेष पर्व पर होती है पूजा, यहां जानिए लोकपर्व छठ के बारे में सबकुछ
पंच पर्व महोत्सव दीवाली के बाद प्रतिवर्ष प्रकृति की पूजा का महापर्व ‘छठ’ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 20 नवंबर को मनाया जा रहा है. सूर्य को एकमात्न ऐसा भगवान माना जाता है, जो वास्तव में हर किसी को दिखाई देते हैं और छठ पर्व पर सूर्य भगवान की ही पूजा होती है.
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है और इस दौरान श्रद्धालु 36 घंटे का कठिन व्रत रखते हैं.
'नहाय खाय' से छठ की होती है शुरुआत
छठ पूजा की शुरुआत चतुर्थी के दिन ‘नहाय खाय’ से होती है. अगले दिन ‘खरना’ होता है, तीसरे दिन छठ पर्व का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सप्तमी को चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य की पूजा-आराधना के साथ इस महापर्व का समापन होता है.
चूंकि सूर्योपासना का यह महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है, इसीलिए इसे छठ कहा जाता है. सही मायनों में यह आस्था और निष्ठा का अनुपम लोकपर्व है.
उत्तर भारत और विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल के तराई क्षेत्नों में मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह महापर्व सूर्य, उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता है.
छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उनको लंबी आयु प्रदान करती हैं. कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से वह प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-समृद्धि, रोगमुक्ति, संपन्नता और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं. उषा तथा प्रत्यूषा को सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्नेत माना गया है, इसीलिए छठ पर्व में सूर्य तथा छठी मैया के साथ इन दोनों शक्तियों की भी आराधना की जाती है.
प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (उषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों को नमन किया जाता है. पुराणों में षष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है, जिनकी पूजा नवरात्न में षष्ठी को होती है. षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और संतानों की रक्षा कर उनको दीर्घायु बनाती हैं.
छठ पर्व के प्रसाद में प्राय: चावल के लड्डू बनाए जाते हैं और बांस की टोकरी में प्रसाद तथा फल सजाकर इस टोकरी की पूजा की जाती है. व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अघ्र्य देने तथा पूजा के लिए तालाब, नदी अथवा घाट पर जाकर स्नान कर डूबते हुए सूर्य की पूजा करती हैं और अगले दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अघ्र्य देकर पूजा करने के पश्चात प्रसाद बांटकर छठ पूजा का समापन होता है.
नदियों को प्रदूषणमुक्त बनाने की भी मिलती है प्रेरणा
पर्यावरणविदों के अनुसार यह पर्व सबसे ज्यादा पर्यावरण अनुकूल हिंदू त्यौहार है जो नदियों को प्रदूषणमुक्त बनाने की प्रेरणा देता है. छठ पूजा के अवसर पर नदियों, तालाबों तथा अन्य जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है, जिससे लोगों को ऐसे जलस्रोतों के आसपास साफ-सफाई रखने की प्रेरणा मिलती है.
दरअसल धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा साफ-सुथरी नदी, तालाबों या अन्य जलस्रोतों के किनारे ही की जाती है, इसीलिए पूजा से पहले इन जलस्रोतों के आसपास पूरी साफ-सफाई करने का विधान है.