विशाला शर्मा का ब्लॉग: अक्षय तृतीया- आंतरिक दुर्बलताओं के तर्पण का दिन

By विशाला शर्मा | Published: May 14, 2021 10:11 AM2021-05-14T10:11:22+5:302021-05-14T10:51:19+5:30

अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना गया है। इस दिन से जुड़ी कई अहम मान्यताएं भी हैं जिसका काफी महत्व है। जानिए इस दिन के महत्व के बारे में...

Vishal Sharma Blog: Akshaya Tritiya, parshuram jayanti and its significance | विशाला शर्मा का ब्लॉग: अक्षय तृतीया- आंतरिक दुर्बलताओं के तर्पण का दिन

अक्षय तृतीया के दिन का महत्व (फाइल फोटो)

संस्कृति खुशहाल जीवन जीने का तरीका है. लेकिन यह तरीका अपने जीने तक सीमित नहीं है बल्कि समस्त मानव समाज की जीवन पद्धति का नाम संस्कृति है. भारतीय संस्कृति अद्भुत समन्वय शक्ति के कारण विश्व में जानी जाती है. संस्कृति का संबंध समुदाय में प्रचलित विचारधारा, धार्मिक आस्था, रीति-रिवाजों एवं रहन-सहन आदि से होता है. 

भारतीय समाज की संस्कृति एवं सभ्यता हजारों सालों से अक्षय रही है. पर्व-उत्सव मानव में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ बनाए गए हैं, जिसके माध्यम से मानव में अनुराग एवं आस्था बनी रहे. इन्हीं में से एक अक्षय तृतीया का पर्व है.

अक्षय का अर्थ होता है अविनाशी. कभी नष्ट नहीं होने वाली संस्कृति के अंतर्गत अक्षय तृतीया का महत्व सदियों से चला आ रहा है. इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त किया जा सकता है. सर्व सिद्ध मुहूर्त के रूप में मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश, आभूषण खरीदी, भूखंड, वाहन संबंधित खरीद कार्य के लिए इस दिन का विशेष महत्व है. 

पितरों का तर्पण तथा पिंडदान का अक्षय फल प्राप्त करने हेतु जप तप हवन और दान किया जाता है. आज सही अर्थों में अक्षय तृतीया मनाने का समय आ गया है जिसे वासनाओं और दुर्बलताओं के शमन के रूप में हम मनाएं. 

आज जब मानव जाति के विनाश का तांडव हम अपनी खुली आंखों से देख रहे हैं और प्रत्येक दिवस हम अपने परिजनों को खोते जा रहे हैं, ऐसे समय में दाहकर्म, अस्थि विसर्जन अथवा पिंडदान करने का समय भी नहीं रह गया है, हम अपने दिवंगत परिजनों हेतु अक्षय पात्रों को खोलकर दान करें. 

दवा, ऑक्सीजन और भोजन की कमी किसी को महसूस न हो, इस सहयोग की मनोवृत्ति के साथ हम अपने पूर्वजों का तर्पण करें. यही सच्चे मायनों में आज पिंडदान होगा  क्योंकि हम क्या हैं और हमें क्या होना चाहिए, धर्म दोनों के बीच सत्य का उद्घाटन करता है और आज का सत्य भूख तथा बीमारी से ग्रस्त मानव को सेवा के द्वारा बचाना है. 

अक्षय तृतीया के पर्व पर फल, पानी, जल से भरे पात्र का दान किया जाता है. हम अपनी आत्मा की संतुष्टि हेतु मिट्टी के मटके और भोजन का दान जरूरतमंद व्यक्ति को करें, यही हमारा तर्पण होगा जो हमें अक्षय फल देगा. इस दिवस का स्मरण इसलिए भी किया जाना चाहिए कि एक पौराणिक कथा के अनुरूप महाभारत के अनुसार इस दिन दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था. 

उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी. तब कृष्ण ने द्रौपदी को कभी न खत्म होने वाला वस्त्र वरदान स्वरूप प्रदान किया था. आज फिर वह समय आ गया है जब समाज के दु:शासनों से मुकाबला करने हेतु संगठित हुआ जाए, ताकि फिर किसी नारी के शील और संयम की परीक्षा न ली जाए. 

भारतीय संस्कृति के साथ मनाया जाने वाला पर्व और उत्सव हमें संदेश देते हैं और उस संदेश को हम अपने जीवन में उतारें जिससे हमारा संपूर्ण जीवन उत्सव बन जाए.

अक्षय तृतीया पर युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी. इस पात्र की खूबी यह थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था. इस पात्र की सहायता से युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते थे. 

यह सच है कि आज युधिष्ठिर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर नागरिक के भोजन की व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है, जिसे वह सस्ते दरों पर अनाज उपलब्ध करा कर हर थाली में भोजन की व्यवस्था करने की जवाबदारी को संभालने की पुरजोर कोशिश कर रही है. 

इस उपक्रम का हिस्सा इस समाज में धनकुबेर के नाम से जाने पहचाने जाने वाले धनाढ्य वर्ग भी बनें, वे अपने अक्षय खजानों को मानव सेवा हेतु खोल दें ताकि भूख से किसी की जान नहीं जाए. जरूरतमंद व्यक्ति की खातिर की जाने वाली सहायता दुआओं और आशीर्वाद के रूप में अक्षय होगी.

क्रांति के जनक परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, जिन्हें अक्षय और अमर कहा जाता है. इन्होंने अपने समय में नारी जाति के सम्मान और देश के एकीकरण का कार्य किया था. वे जाति व्यवस्था के विरोधी थे. स्वयं राम ने अपने नाम को लघु बताते हुए परशुराम की विशालता को नमन किया है - ‘राम मात्र लघु नाम हमारा, परशु सहित बड़Þ नाम तुम्हारा।’ 

परशुराम ने सहस्त्रबाहु की कर वसूली का विरोध किया. उन्होंने दास प्रथा को समाप्त करने हेतु अस्त्र उठाया. नाग, दस्यु, वनवासियों और अनार्य को शिक्षित होकर आर्यों की तरह जीवन यापन करने का अधिकार दिया. और शायद यही कारण रहा होगा कि उस समय के मानव ने उन्हें अक्षय और अमर कहा होगा. निश्चित ही ऐसे कार्य अमरता की ओर ले जाते हैं. हम भी परशुराम की तरह साहसी निष्पक्ष और मानवता का दूत बनने का प्रयास करें.

पौराणिक आधारों को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हुए नए संदर्भों के साथ पर्व को लोक कल्याण की भावना के साथ मनाएं, तभी पर्व में निहित उद्देश्यों की पूर्ति संभव हो सकेगी.

Web Title: Vishal Sharma Blog: Akshaya Tritiya, parshuram jayanti and its significance

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