नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉगः मानवता के संदेशवाहक गुरु नानक देवजी 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 23, 2018 12:21 PM2018-11-23T12:21:31+5:302018-11-23T12:21:31+5:30

इन विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए गुरु नानक ने मनुष्य की अंतर्निहित शक्ति को जागृत करने का आह्वान किया. वे निर्भय, निरहंकार और निरवैर अकालपुरुष परमात्मा में अखंड विश्वास करते थे और उसी विश्वास को प्रत्येक व्यक्ति के चित्त में जागृत करते थे.

Narendra Kaur Chhabra's blog: Guru Nanak Devji, the messenger of humanity | नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉगः मानवता के संदेशवाहक गुरु नानक देवजी 

नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉगः मानवता के संदेशवाहक गुरु नानक देवजी 

- नरेंद्रकौर छाबड़ा

श्री गुरु नानक देवजी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था. नामकरण के दिन पंडित हरदयाल ने उनका नाम नानक रखा तो पिता ने इस पर आपत्ति उठाई, क्योंकि यह नाम हिंदू तथा मुसलमान दोनों में सम्मिलित है. इस पर पंडितजी ने कहा- ‘यह बालक ईश्वर का अवतार है. यह संसार को सत्य का मार्ग दिखाएगा अत: हिंदू व मुसलमान दोनों समान रूप से इसकी पूजा करेंगे.’

गुरु नानक का अवतार उन दिनों हुआ जब भारत वर्ष का हिंदू समाज अनेक प्रकार की जातियों और संप्रदायों में विभक्त था. इसके अतिरिक्त शक्तिशाली इस्लाम धर्म का प्रवेश भी हो चुका था. आपसी भेदभाव पहले से ही बहुत जटिल सामाजिक व्यवस्था को और अधिक उलझाता जा रहा था. धार्मिक साधना के क्षेत्र में रामानंद, नामदेव और कबीर जैसे कई महिमाशाली व्यक्तित्व प्रकट हो चुके थे, जो जाति-पांति तथा सांप्रदायिक भेदभाव मिटाने के लिए प्रयास कर चुके थे, लेकिन जिस किसी ने जातिभेद को हटाने का प्रयास किया, उसी के नाम पर एक नई जाति और नये संप्रदाय की स्थापना हो गई.

इन विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए गुरु नानक ने मनुष्य की अंतर्निहित शक्ति को जागृत करने का आह्वान किया. वे निर्भय, निरहंकार और निरवैर अकालपुरुष परमात्मा में अखंड विश्वास करते थे और उसी विश्वास को प्रत्येक व्यक्ति के चित्त में जागृत करते थे. अत्याचारी का अत्याचार इसलिए सह लिया जाता है कि साधारण मनुष्य के मन में भय और आशंका का भाव रहता है. विपरीत परिस्थितियों में गुरु नानक देवजी भय को छोड़कर सत्य पर अडिग रहने की बात कहते थे. उनके अनुयायियों ने भय का सही अर्थो में त्याग किया है.

गुरुजी परमात्मा द्वारा रचित सृष्टि के सभी मनुष्यों को समान मानते थे. गुरुजी के मन में सबके प्रति समान प्रेम, स्नेह, आदर की भावना थी. उन्होंने कहा है- ‘हे मालिक मेरे, मैं तुझसे यही मांगता हूं कि जो लोग नीच से भी नीच जाति के समङो जाते हैं, मैं उनका साथी बनूं. बड़ा कहलाने वाले लोगों के साथ चलने की मेरी इच्छा नहीं है. क्योंकि मैं जानता हूं तेरी कृपादृष्टि वहां होती है, जहां इन गरीबों की संभाल होती है.’ गुरु नानक देवजी ने सत्य को ही एकमात्र लक्ष्य माना और जीवन के हर क्षेत्र में एक उस ध्रुवतारा की ओर ही उन्मुख रहे. उन्होंने विचार और व्यवहार के क्षेत्र को एक कर दिया. गुरु का मंत्र तब तक काम करता रहेगा, जब तक उसे उसी विशाल पटभूमि पर रखकर देखा जाता रहेगा. आज हमारा कर्तव्य है कि हम गुरु का दिया हुआ मंत्र उसी रूप में स्वीकारें जिस रूप में उन्होंने उसे दिया था.

(नरेंद्रकौर छाबड़ा साहित्कार हैं, इन्होंने पंजाबी भाषा में किताबें भी लिखी हैं।)

Web Title: Narendra Kaur Chhabra's blog: Guru Nanak Devji, the messenger of humanity

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