नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: धर्म और संस्कृति के मेल का नाम है बैसाखी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: April 13, 2021 12:03 PM2021-04-13T12:03:56+5:302021-04-13T12:06:31+5:30

Narendra Kaur Chhabara blog: Vaisakhi name of the combination of religion and culture | नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: धर्म और संस्कृति के मेल का नाम है बैसाखी

बैसाखी का त्योहार और इसका महत्व (फाइल फोटो)

पंजाब और हरियाणा में किसान रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां बैसाखी के दिन ही मनाते हैं. इसलिए पंजाब और आसपास के प्रदेशों का यह सबसे बड़ा त्यौहार है. 

प्रकृति का, प्रभु का धन्यवाद करके युवक-युवतियां भांगड़ा और गिद्दा के पारंपरिक लोकनृत्य द्वारा अपनी खुशी, हर्ष, आनंद का इजहार करते हैं. इसके साथ ही अनाज की पूजा करके प्रार्थना करते हैं कि उनके घरों में धन-धान्य की कभी कमी न हो. 

प्रकृति को धन्यवाद देने वाला यह पर्व अक्सर 13 अप्रैल को आता है. सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी दिन खालसा पंथ का सृजन किया था, जिसे उनकी दूरदर्शिता का कमाल कहा जाएगा. खालसा पंथ की स्थापना गुरुजी की भारतवर्ष को अमूल्य देन है. 

उन्होंने जाति-पांति का भेदभाव मिटाकर जन-जन को एक सूत्र में बांध दिया. सन् 1699 में बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में गुरुजी ने दरबार में तलवार लेकर संगत को संबोधित करते हुए कहा, ‘मुझे पांच शीश चाहिए. अपने शीश भेंट करने के लिए कौन तैयार है?’ पंडाल में सन्नाटा छा गया. कुछ देर बाद भाई दयाराम (लाहौर निवासी खत्री) ने खड़े होकर गुरुजी से कहा- ‘मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तेरा..’. 

इसके पश्चात भाई धरमचंद (दिल्ली का जाट), मोहकम चंद (द्वारका का धोबी), हिम्मत राय (जगन्नाथपुरी का कहार) तथा साहब चंद  (नाई ) आगे आए. गुरुजी उन सबको पंडाल के भीतर ले गए. जब कुछ देर बाद वे बाहर आए तो उनके साथ पांच सिख थे जिन्होंने गुरुजी को अपने शीश अर्पण किए थे अर्थात गुरुजी के चरणों में स्वयं को समर्पित कर दिया था. 

उन सब ने एक जैसी वर्दी पहन रखी थी. प्रत्येक ने अपनी कमर में तलवार धारण की थी. गुरुजी ने उन्हें पंज प्यारे की उपाधि दी फिर उन्होंने उन्हें अमृत पान करवाया.

पांच प्यारों को अमृत पान करवाने के पश्चात गुरुजी ने स्वयं उनसे अमृत की याचना की तो वे हैरान रह गए. तब गुरुजी ने कहा ऐसा करने से मुझ में व आप में कोई फर्क नहीं रह जाएगा. मैं गुरु तथा शिष्य के भेदभाव को सदा के लिए समाप्त करना चाहता हूं. 

इस प्रकार गुरुजी ने उनसे अमृत पान करके गुरु बनकर शिष्य बनने का नया उदाहरण पेश किया. गुरुजी ने अपने शिष्यों को भक्ति दी, शक्ति दी जुल्म व अत्याचार के विरुद्ध सामना करने के लिए. सिखों ने दुश्मनी के लिए कभी तलवार नहीं उठाई बल्कि स्वयं की रक्षा तथा अन्याय का सामना करने के लिए शस्त्रों का प्रयोग किया.  

बैसाखी के अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेले आयोजित किए जाते हैं. केरल में यह त्यौहार विशु कहलाता है. वहीं असम में बोहाग, बंगाल में पाहेला बैसाख तथा उत्तराखंड में बिखोती महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.

Web Title: Narendra Kaur Chhabara blog: Vaisakhi name of the combination of religion and culture

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