नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: हिंद की चादर गुरु तेग बहादुरजी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: December 1, 2019 10:23 AM2019-12-01T10:23:51+5:302019-12-01T10:23:51+5:30

गुरुजी ने प्रथम गुरु गुरु नानकदेवजी की भांति धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक यात्रएं कीं. इसके लिए वे सुदूर उत्तर-पूर्व के राज्यों तक गए

Narendra Kaur Chhabara Blog: Guru Tegh Bahadur is India's Pride | नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: हिंद की चादर गुरु तेग बहादुरजी

नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: हिंद की चादर गुरु तेग बहादुरजी

हिंद की चादर गुरु तेग बहादुरजी की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. सन 1621 में छठे गुरु गुरु हरगोविंदजी के घर जन्मे गुरु तेगबहादुरजी बचपन से ही संत स्वरूप, अचल-अडोल, विचारवान, गंभीर, त्यागी, दिलेर तथा निर्भय स्वभाव के मालिक थे. उनमें अत्यधिक धार्मिक रुचि थी. जब वे केवल पांच वर्ष के थे तो कई बार समाधि में लीन हो जाते थे, जिसे देख उनकी माताजी चिंता प्रगट करतीं. इस पर पिता हरगोविंदजी कहते- हमारे इस पुत्र को बहुत बड़े कार्य करने हैं इसलिए अभी से तैयारी कर रहा है. 

गुरुजी की शिक्षा-दीक्षा अपने पिता की निगरानी में हुई. धर्मग्रंथों की पढ़ाई के साथ ही घुड़सवारी, शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण भी उन्हें दिया गया. करतारपुर की जंग जो सन 1634 में हुई, उस वक्त मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता के साथ बड़ी शूरवीरता दिखाई, उनके तेग (तलवार) के जौहर को देखते हुए पिता ने उनका नाम त्यागमल से बदल कर तेग बहादुर कर दिया. 

सन 1644 में पिता के निधन के पश्चात गुरुजी परिवार (पत्नी व माताजी) सहित अपने ननिहाल अमृतसर के जिला बकाला में आ गए और बीस वर्ष वहीं रहे. उनका अधिकांश समय जप, तप, सिमरन अभ्यास में ही बीतता था. 44 वर्ष की उम्र में गुरु तेग बहादुरजी को गुरुगद्दी प्राप्त हुई और वे नौवें गुरु बने.

गुरुजी ने प्रथम गुरु गुरु नानकदेवजी की भांति धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक यात्रएं कीं. इसके लिए वे सुदूर उत्तर-पूर्व के राज्यों तक गए. इन यात्रओं में वे लोगों को मिल-जुलकर प्रेम से रहने की, मिल बांटकर खाने की और ईश्वर को सदा याद करने की शिक्षाएं देते थे. उन दिनों पानी का अभाव था. अत: कई स्थानों पर उन्होंने कुएं खुदवाए, सरोवर बनवाए. इसी बीच सन 1666 में पटना में उनके घर गुरु गोविंद सिंहजी का जन्म हुआ.

नवंबर 1675 में कश्मीरी पंडितों का एक जत्था पंडित कृपाराम के नेतृत्व में उनसे मिला और कश्मीर में औरंगजेब के धार्मिक अत्याचारों का विवरण दिया. गुरुजी ने कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकार हेतु औरंगजेब की कट्टरता का विरोध किया. वे उससे मिलने दिल्ली पहुंचे. औरंगजेब ने उनके सम्मुख तीन शर्ते रखीं या तो वे इस्लाम कबूल करें या कोई करामात करके दिखाएं या फिर शहादत के लिए तैयार रहें. 

गुरुजी ने पहली दोनों शर्ते मानने से इंकार कर दिया. उन्हें आठ दिन चांदनी चौक की कोतवाली में रखा गया. उन पर अनेक अत्याचार किए गए पर वे अडोल रहे. अंत में 24 नवंबर 1675 के दिन (नानकशाही कैलेंडर के अनुसार) चांदनी चौक में शीश काटकर आपको शहीद कर दिया गया. अपनी सच्चई, उसूलों और विश्वास के लिए आत्मबलिदान करना बहुत बड़ी बात होती है, परंतु किसी दूसरे के विश्वास, उसूलों के लिए कुर्बान हो जाना उससे भी बड़ी बात होती है. 

गुरु तेग बहादुरजी इसी प्रकार के बलिदानी थे. उन्होंने कश्मीरी पंडितों के अधिकार तथा विश्वास की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया. तभी तो उन्हें हिंद की चादर कहा जाता है, जिस स्थान पर उन्हें शहीद किया गया, वहां आज गुरुद्वारा सीसगंज शोभायमान है.

Web Title: Narendra Kaur Chhabara Blog: Guru Tegh Bahadur is India's Pride

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