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सृजन और साधना की पावन रात्रि है महाशिवरात्रि, जानिए इस महापर्व के बारे में

By योगेश कुमार गोयल | Updated: February 18, 2023 10:57 IST

महाशिवरात्रि देवों के देव महादेव अर्थात् भगवान शिव के जन्म का स्मरणोत्सव है। इस अवसर पर शिवभक्त उपवास तथा रात्रि जागरण करते हैं ताकि उनकी पूजा-अर्चना, उपासना एवं त्याग से भगवान शिव की कृपादृष्टि उन पर सदैव बनी रहे। माना जाता है कि इसी दिन रात्रि के मध्य में जगतपिता ब्रह्मा से रुद्र के रूप में भगवान शिव का अवतरण हुआ था।

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भारत में सर्वाधिक महत्व जिस देव का है, वो देवाधिदेव भगवान शिव ही हैं, जो आज भी समूचे भारतवर्ष में उतने ही पूजनीय और वंदनीय हैं, जितने सदियों पहले थे। समूचे भारतवर्ष में भगवान शिव की पूजा-उपासना व्यापक स्तर पर होती है। यही कारण है कि ‘महाशिवरात्रि’ पर्व को भारत में राष्ट्रीय पर्व का दर्जा प्राप्त है। ‘महाशिवरात्रि’ पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह व्रत सृष्टि के समस्त प्राणियों के लिए अत्यंत कल्याणकारी माना गया है, जो कोई भी व्यक्ति कर सकता है।

महाशिवरात्रि देवों के देव महादेव अर्थात् भगवान शिव के जन्म का स्मरणोत्सव है। इस अवसर पर शिवभक्त उपवास तथा रात्रि जागरण करते हैं ताकि उनकी पूजा-अर्चना, उपासना एवं त्याग से भगवान शिव की कृपादृष्टि उन पर सदैव बनी रहे। माना जाता है कि इसी दिन रात्रि के मध्य में जगतपिता ब्रह्मा से रुद्र के रूप में भगवान शिव का अवतरण हुआ था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन प्रलय की बेला में प्रदोष के समय भगवान शिव ने तांडव करते हुए समस्त ब्रह्मांड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त किया था इसीलिए इस अवसर को महाशिवरात्रि कहा जाता है। भगवान शिव को भारत की भावनात्मक एवं राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता का प्रतीक माना गया है जबकि महाशिवरात्रि पर्व को राष्ट्रीय सद्भावना का जीवंत प्रतीक माना गया है। भारत में शायद ही ऐसा कोई गांव मिले, जहां भगवान शिव का कोई मंदिर अथवा शिवलिंग स्थापित न हो। एक होते हुए भी शिव के नटराज, पशुपति, हरिहर, त्रिमूर्ति, मृत्युंजय, अर्द्धनारीश्वर, महाकाल, भोलेनाथ, विश्वनाथ, ओंकार, शिवलिंग, बटुक, क्षेत्रपाल, शरभ इत्यादि रूप हैं।

विभिन्न महापुरुषों के जन्मदिन को उनकी ‘जयंती’ के रूप में मनाया जाता है लेकिन भगवान शिव के जन्मदिन को उनकी ‘जयंती’ के बजाय ‘रात्रि’ के रूप में मनाया जाता है। इसका कारण संभवतः यही है कि रात्रि को अज्ञानता और तमोगुण का प्रतीक माना गया है और कलियुग में क्या संत, क्या साधक, क्या एक आम मानव, अर्थात् हर कोई दुखी है अतः कालिमा रूपी इन बुराइयों का नाश करने के लिए प्रतिवर्ष चराचर जगत में एक दिव्य ज्योति का अवतरण होता है और यही रात्रि ‘शिवरात्रि’ है। ‘रात्रि’ शब्द ‘रा’ दानार्थक धातु से बना है अर्थात् जो सुखादि प्रदान करती है, वह ‘रात्रि’ है। रात्रि सदा आनंददायिनी होती है, अतः सबकी आश्रयदात्री होने के कारण उसकी स्तुति की गई है। इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ है, वह रात्रि, जो आनंद देने वाली है, जिसका शिव नाम के साथ विशेष संबंध है। ऐसी रात्रि माघ फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की है, जिसमें शिव पूजा, उपवास व जागरण होता है।  

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