जावेद आलम का ब्लॉग: कोरोना का प्रकोप और माहे-रमजान की आमद
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 22, 2020 08:01 AM2020-04-22T08:01:21+5:302020-04-22T08:01:21+5:30
यूं देखा जाए तो रोजा हर धर्म में किसी न किसी शक्ल में मौजूद है. इसे हर धर्म में अपने पूज्य को मनाने का प्रभावी तरीका माना गया है. इंसान अपनी नैसर्गिक इच्छाओं को दबाते हुए महज अपने पूज्य के लिए जब भूखा-प्यासा रहता है तो यह त्याग ईश्वरीय सत्ता को बहुत भाता है.
रमजानुलमुबारक का पवित्न माह इस बार बिल्कुल अलग तरह के माहौल में आने वाला है. कोरोना वायरस के विश्वव्यापी प्रकोप के बीच कुछ दिनों बाद रहमतों व बरकतों का यह महीना शुरू होगा. दुनिया के बहुत से हिस्सों को इस वायरस ने जकड़ रखा है और लोग अपने घरों में सिमटे हुए हैं. यह अपनी व दूसरों की हिफाजत के लिए जरूरी भी है. इसे देखते हुए सऊदी अरब सहित विभिन्न देशों से इस तरह की खबरें आ रही हैं कि इस बार रमजान की इबादतें घर पर ही अदा करनी होंगी.
विभिन्न मुस्लिम उलमा व संगठन रमजान की विशेष नमाज ‘तरावीह’ भी घरों पर ही अदा किए जाने का आग्रह कर रहे हैं. सऊदी अरब में भी तरावीह की नमाज घरों पर ही अदा की जाएगी. और तो और वह हज को भी सीमित रूप में ही संपन्न कराने पर विचार कर रहा है.
हिजरी या इस्लामी साल में रमजान से पहले ‘शाबान’ का महीना होता है और फिलहाल शाबान माह ही चल रहा है, जिसका पूरा नाम ‘शाबानुल्मुअज्जम’ है. किताबों में लिखा है कि ‘शाबान’ अरबी जुबान का शब्द है, जो ‘श’अब’ से बना है. श’अब के मायने फैलने के हैं. चूंकि इस माह में रमजान के लिए भलाई खूब फैलती है, इसलिए इसका नाम ‘शाबान’ रखा गया.
यूं देखा जाए तो रोजा हर धर्म में किसी न किसी शक्ल में मौजूद है. इसे हर धर्म में अपने पूज्य को मनाने का प्रभावी तरीका माना गया है. इंसान अपनी नैसर्गिक इच्छाओं को दबाते हुए महज अपने पूज्य के लिए जब भूखा-प्यासा रहता है तो यह त्याग ईश्वरीय सत्ता को बहुत भाता है. अपनी समस्त इच्छाओं को कंट्रोल करते हुए वह संसार के रचयिता से दुआएं करता, उसके रहम को तलब करता है.
इसीलिए जब कोरोना का प्रकोप सब दूर फैलने लगा तो मजहबी शख्सियतों ने लोगों को प्रेरित किया कि वे स्वैच्छिक रोजे रख कर अपने रब को राजी करने के जतन करें. इसलिए कोरोना वाले दिनों में बहुत से लोग रोजे रख-रख कर खूब दुआएं कर रहे हैं. इस तरह एक पंथ दो काज हो रहे हैं.
रमजान में वैसे भी परवरदिगारे-आलम के लिए अपनी प्राकृतिक व आवश्यक इच्छाओं का त्याग किया जाता है. सो लॉकडाउन के आलम में यह त्याग भी करना है कि हम अपनी इबादत निजी स्तर पर ही करें. कहीं भी सामूहिक रूप से जमा न हों. रोजा, इफ्तार, तरावीह वगैरा सब आमाल (कर्म) घरों पर ही किए जाएं और खूब रो-रो कर उस रब को राजी करने के जतन किए जाएं. उससे न सिर्फ अपने व अपने वतन के लिए बल्कि सारी दुनिया के लिए खैरो-आफियत मांगी जाए. यह दुआ खास तौर से मांगी जाए कि अल्लाह तआला इस रहमतों व बरकतों वाले महीने ‘रमजान’ के सदके में इस प्रकोप को पूरे संसार से हटा ले, आमीन!