गीता जयंती 2022: पलायन नहीं, जूझने की सीख देती है गीता
By गिरीश पंकज | Published: December 3, 2022 02:49 PM2022-12-03T14:49:48+5:302022-12-03T14:50:08+5:30
श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यह कैसी महान कृति है। इसमें भगवान कृष्ण के मुख से निकले प्रेरक विचार हैं।

गीता जयंती 2022: पलायन नहीं, जूझने की सीख देती है गीता
आज शनिवार को गीता जयंती है। आज ही के दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यह कैसी महान कृति है। इसमें भगवान कृष्ण के मुख से निकले प्रेरक विचार हैं।
गीताजी का भाष्य अनेक विद्वानों ने किया है। जैसे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जब मांडले जेल में थे तो उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक ग्रंथ लिखा, जो अनेक भाषाओं में अनूदित हुआ। हिंदी में उसका अनुवाद माधव राव सप्रे और अन्य लोगों ने किया।
तिलकजी का यही निष्कर्ष था कि गीता निवृत्तिपरक नहीं है, यह कर्मयोगपरक है। यानी गीता हमें पलायन नहीं सिखाती, वह जूझने का संस्कार देती है। गांधीजी ने भी तिलकजी के इस काम की सराहना की। इसी तरह स्वामी रामसुखदासजी ने ‘साधक संजीवनी’ नामक ग्रंथ लिखा, जो श्रीमद्भगवद्गीता का बहुत ही अद्भुत भाष्य है।
एक भाष्य विद्रोही संन्यासी के रूप में चर्चित रहे स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भी किया है, जो ‘गीता हृदय’ नाम से लोकव्यापी हुआ। यह कृति आज भी अमर है और उसका हर अध्याय न केवल पठनीय है, वरन दिशा बोधक भी है। स्वामी सहजानंद अपने ग्रंथ में कर्तव्य-अकर्तव्य के प्रश्न पर बातचीत करते हैं। अध्यात्म और भौतिकवाद का विश्लेषण करते हैं।
गीता के समन्वयवादी स्वरूप को स्पष्ट करते हैं। कर्म के भेद, यथार्थ, कर्तव्य और कर्म इन सबका जीवन में प्रभाव, महात्मा और दुरात्मा कौन है, संन्यास क्या है और लोक संग्रह क्या है, इन सबका विश्लेषण भी करते हैं। संन्यास और त्याग, आत्मा का स्वरूप, व्यावसायिक बुद्धि, धर्म, सरकार और पार्टी, स्वधर्म, स्वकर्म, आस्तिक और नास्तिक का भेद, देव और असुर संपत्ति, समाज का कल्याण, कर्म और धर्म : इन सबकी बहुत सुंदर व्याख्या करते हैं।