डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉगः कुंभ, धार्मिक दिव्यता और शौर्य का प्रतीक 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 5, 2019 08:50 AM2019-02-05T08:50:06+5:302019-02-05T08:50:06+5:30

जब अपनी पूरी साज-सज्जा के साथ इन अखाड़ों का जुलूस पारंपरिक शस्त्न प्रदर्शन के साथ प्रारंभ होता है तो आवेग और जोश के साथ वीरता की लहर देखने वालों में दौड़ जाती है.

Dr. Shivakant Bajpai's Blog: Symbol of Kumbh, Religious Divinity and Bravery | डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉगः कुंभ, धार्मिक दिव्यता और शौर्य का प्रतीक 

फाइल फोटो

प्राचीन नाम के साथ प्रयागराज के संगम तट पर कुंभ मेला जारी है और इस समय इसकी भव्यता और दिव्यता दोनों ही चर्चा का विषय बने हुए हैं. नाम परिवर्तन के आकर्षण में अथवा अर्धकुंभ की व्यापकता को बढ़ाने के लिए अब यह सर्वत्न कुंभ मेले के रूप में प्रचारित है, वैसे भी यूनेस्को ने वर्ष 2017 में ही कुंभ मेले को विश्व-धरोहर घोषित किया था, कुंभ नामकरण के चलते जिसका लाभ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकता है. 

कुंभ मेले का प्रारंभ कब और कैसे हुआ तथा किसने इसका आयोजन प्रारंभ किया, इतिहास की पुस्तकों में इसका प्रमाण नहीं मिलता. किंतु परंपरागत रूप से स्वीकार किया जाता है कि देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन तथा नासिक में ही छलक कर गिरी थीं. इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन बरस बाद लगता है और 12 साल बाद यह पुन: पहले स्थान पर वापस पहुंचता है. 

आरंभिक काल में कुंभ तथा अर्धकुंभ जैसी प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप बहुत स्पष्ट नहीं है किंतु ऐतिहासिक दृष्टि से कतिपय अध्येता गुप्त काल में कुंभ का सुव्यवस्थित आयोजन होने की बात करते हैं. कुंभ आयोजन के व्यवस्थित प्रमाण लगभग सातवीं सदी ईस्वी में सम्राट हर्षवर्धन के काल से प्राप्त होते हैं जिसका उल्लेख चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्नी ह्वेनसांग ने किया था.  इसे पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने तथा कुंभ के मुख्य आकर्षण कतिपय अखाड़ों की स्थापना और स्नान आदि की परंपरा स्थापित करने का श्रेय जगतगुरु आदि शंकराचार्य को जाता है. कुंभ मेले का एक विवरण मुगलकालीन गजट खुलासातु-त-तारीख जो कि 1665 में लिखा गया था, में भी है. प्रयाग में होने वाले कुंभ-अर्धकुंभ और स्नान पर्वो का सर्वाधिक महत्व स्वीकार कर शास्त्नों में उसे प्रयागराज तीर्थ की उपमा प्रदान  की गई है.

हमेशा से कुंभ मेले का आकर्षण रहे साधु, संतों और संन्यासियों के अखाड़ों के केंद्र में नागा साधु रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य से नागा साधुओं की परंपरा प्रारंभ हुई. कुंभ के आरंभिक स्वरूप में पहले दस अखाड़े ही थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई और इस समय पंद्रह अखाड़े अस्तित्व में हैं जिनमें से सात शैव, तीन वैष्णव व तीन उदासीन संप्रदाय के अखाड़े हैं और इनमें भी हाल ही में सम्मिलित किए गए परी तथा किन्नर अखाड़े प्रयाग कुंभ मेले का विशेष आकर्षण बने हुए हैं. जब अपनी पूरी साज-सज्जा के साथ इन अखाड़ों का जुलूस पारंपरिक शस्त्न प्रदर्शन के साथ प्रारंभ होता है तो आवेग और जोश के साथ वीरता की लहर देखने वालों में दौड़ जाती है.

यह धार्मिक दिव्यता और शौर्य का ऐसा अद्भुत समन्वयकारी प्रदर्शन होता है कि पूरी दुनिया से इसका साक्षी बनने के लिए करोड़ों लोग खिंचे चले आते हैं. संपूर्ण विश्व में किसी भी धार्मिक समागम के लिए एकत्रित होने वाली सर्वाधिक भीड़ कुंभ मेले में ही होती है और इसीलिए कुंभ मेला पूरी दुनिया के लिए आस्था एवं आकर्षण का केंद्र है.

Web Title: Dr. Shivakant Bajpai's Blog: Symbol of Kumbh, Religious Divinity and Bravery

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