डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: पंढरपुर की वारी- सादगी के बीच भी भक्तों में उत्साह

By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Published: July 1, 2020 11:10 AM2020-07-01T11:10:37+5:302020-07-01T11:10:37+5:30

पंढरपुर की वारी अर्थात पंढरपुर में विराजमान भगवान विठोबा, जिन्हें विट्ठल भी कहा जाता है, यह उनके दर्शन की यात्ना है जो पैदल की जाती है और लगभग 22 दिनों में आषाढ़ी एकादशी के दिन पूर्ण होती है.

Dr. Shivakant Bajpai blog on pandharpur wari | डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: पंढरपुर की वारी- सादगी के बीच भी भक्तों में उत्साह

डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: पंढरपुर की वारी- सादगी के बीच भी भक्तों में उत्साह

वैसे तो कोरोना से इस समय पूरी दुनिया ही प्रभावित है और इसका प्रभाव पूरे विश्व में होने वाली धार्मिक यात्नाओं एवं समागमों पर भी पड़ा है. विश्व की सर्वाधिक प्रसिद्ध धार्मिक यात्नाओं में से एक पुरी की भगवान जगन्नाथ की यात्ना इसका उदाहरण है. कोरोना महामारी ने जहां लोगों को भयभीत किया है, वहीं सदियों से चली आ रही और जन-मानस में व्याप्त इन यात्नाओं को भी इसने अपना शिकार बनाया जिसके चलते न चाहते हुए भी इन यात्नाओं को या तो सीमित किया गया या फिर स्थगित करना पड़ा है. इसी क्रम में महाराष्ट्र में होने वाली भगवान विट्ठल की यात्ना, जो कि ‘पंढरपुर की वारी’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध है, का भी उल्लेख किया जा सकता है.

वैसे तो देश में अनेक यात्नाएं भिन्न-भिन्न भागों में संपन्न होती हैं जिनका हजारों वर्षो का अपना इतिहास है, जिन्होंने अलग-अलग भौगोलिक-सांस्कृतिक भू-भागों को जोड़ने का काम किया है. किंतु पंढरपुर की वारी अर्थात पंढरपुर में विराजमान भगवान विठोबा, जिन्हें विट्ठल भी कहा जाता है, यह उनके दर्शन की यात्ना है जो पैदल की जाती है और लगभग 22 दिनों में आषाढ़ी एकादशी के दिन पूर्ण होती है. इस यात्ना में सम्मिलित होने वाले यात्नी वारकरी कहलाते हैं. भीमा नदी, जिसे चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है, के तट पर बसा पंढरपुर सोलापुर जिले में स्थित है. आषाढ़ का महीना भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश में विख्यात है, इसीलिए इस तीर्थस्थल पर पैदल चल कर लोग यहां इकट्ठा होते हैं.

यह धार्मिक यात्ना वस्तुत: कई स्थानों से प्रारंभ होती है. इनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण यात्ना पुणो के समीप आलंदी से तथा दूसरी देहु से प्रारंभ होती है. इन स्थानों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि भक्त लोग आलंदी से महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर की तथा देहु से संत तुकाराम की पालकी के साथ यात्ना प्रारंभ करते हैं. जब  यात्ना के 21वें दिन दोनों पालकियों का एक ही स्थान पर संगम होता है और लाखों वारकरी एकत्रित होते हैं तो ऐसे विहंगम दृश्य का केवल अनुमान ही किया जा सकता है.

जब लाखों लोग एक साथ जय हरि विट्ठला तथा रुख्माई का जय घोष करते हैं तो इसका अनुभव केवल इसमें सम्मिलित होकर ही किया जा सकता है अर्थात वारकरी बनकर. इसके अतिरिक्त भी इस यात्ना में कतिपय धार्मिक मान्यता प्राप्त पालकियां सम्मिलित होती हैं जिनमें पैठण से संत एकनाथ की पालकी तथा शेगांव से गजानन महाराज की पालकी को अत्यधिक आदर और सम्मान प्राप्त है.

यात्ना मार्ग में सुनिश्चित अंतराल पर इनका पड़ाव होता है जहां से अन्य पालकियां दिंडी इसमें मिलती जाती हैं और कारवां बढ़ता जाता है. किंतु कोरोना के चलते इस बार पंढरपुर की वारी की भव्यता को सीमित करना पड़ा या फिर यूं कहें कि बस प्रतीकात्मक रूप में ही आयोजित करना पड़ रहा है. इसमें सम्मिलित होने वाले वारकरी इस बार अपने घर की दहलीज से ही खड़े होकर भगवान विठोबा का दर्शन उसी प्रकार करेंगे जैसे अपने माता-पिता की सेवा में रत पुंडरीक के आग्रह पर भगवान श्री विट्ठल अपने भक्त की दहलीज पर प्रतीक्षा में कमर पर हाथ धरे एक ही ईंट पर आज भी खड़े हैं क्योंकि भक्त ने उन्हें अभी तक बैठने के लिए ही नहीं कहा.

यहां पर यह कहना आवश्यक है कि कोरोना ने यात्ना को प्रभावित जरूर किया है लेकिन लोगों का उत्साह आज भी कायम है. इसलिए सरकारी निर्देशों का पालन इस बार अपने घरों में रहकर पूरा महाराष्ट्र करेगा और अगली बार फिर से वारकरी बनकर जय हरि विट्ठला और जय रुख्माई के जय घोष गुंजायमान करेगा.

Web Title: Dr. Shivakant Bajpai blog on pandharpur wari

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