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ब्लॉग: मन के दीप करें जग जगमग

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: November 10, 2023 10:49 IST

इतिहास गवाह है कि अंधकार के साथ  मनुष्य का संघर्ष लगातार चलता चला आ रहा है। उसकी अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है।

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ठळक मुद्देअंधकार बड़ा डरावना होता है, जब वह गहराता है तो राह नहीं सूझतीआदमी यदि थोड़ा भी असावधान रहे तो उसे ठोकर लग सकती हैलेकिन मनुष्य की अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है

अंधकार बड़ा डरावना होता है। जब वह गहराता है तो राह नहीं सूझती, आदमी यदि थोड़ा भी असावधान रहे तो उसे ठोकर लग सकती है और आगे बढ़ने का मार्ग अवरुद्ध भी हो सकता है। इतिहास गवाह है कि अंधकार के साथ  मनुष्य का संघर्ष लगातार चलता चला आ रहा है। उसकी अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है।

वस्तुत: सभ्यता और संस्कृति के विकास की गाथा अंधकार के विरुद्ध संघर्ष का ही इतिहास है। मनुष्य जब एक सचेत तथा विवेकशील प्राणी के रूप में जागता है तो अंधकार की चुनौती स्वीकार करने पर पीछे नहीं हटता। उसके प्रहार से अंधकार नष्ट हो जाता है। संस्कृति के स्तर पर अंधकार से लड़ने और उसके प्रतिकार की शक्ति को जुटाते हुए मनुष्य स्वयं को ही दीप बनाता है।

दीपावली का उत्सव अंधकार के विरुद्ध मनुष्य की अदम्य आकांक्षा का उद्घोष है। अंधकार कैसा भी हो और कितना भी घना क्यों न हो, प्रकाश की किरण के आते ही उसके आगे ठहर नहीं पाता है। कार्तिक महीने में दीपावली का अवसर अपनी शक्ति और ऊर्जा का संचय कर अंधकार के विरुद्ध मुहिम जैसा लगता है।

कालचक्र की गति कुछ ऐसी हो रही है कि आज हमारे जीवन में अंधकार कई रूपों में प्रवेश कर रहा है। असत्य, अविश्वास, कपट और छल इतने भिन्न-भिन्न रूपों में उभर रहा है कि आपसी भरोसा टूट रहा है और कलह बढ़ रहा है। ऐसे में यदि जन-समाज में असुरक्षा और भय का भाव बढ़े तो आश्चर्य नहीं। ऐसी घटनाओं से लोगों में घबराहट और बेचैनी बढ़ने लगती है।

आज व्यक्ति की भूमिका प्रबल और आपसी रिश्तों की उजास कमजोर पड़ रही है। ‘मैं ही केंद्र में हूं’ यह भाव मैं पन के विस्तार के लिए निरंतर गतिशील बनाता रहता है। दूसरे या अन्य का होना सिर्फ उनकी उपयोगिता रहने तक ही सीमित रहता है। इसके चलते रिश्तों की हमारी समृद्ध शब्दावली खोती जा रही है। व्यक्तिकेंद्रिकता शोषण और हिंसा को भी जन्म देती है क्योंकि ‘दूसरा’ खतरा पैदा करने वाला लगता है।

दीपावली सत्य, शील और धैर्य के प्रतीक श्रीराम  के  अभिनंदन का पावन अवसर है। इस अवसर पर भ्रमों और हीनता की अंधग्रंथि को भेद कर आत्मनिर्भर भारत की शक्ति को स्थापित करने के लिए सामाजिक जीवन में मानवीय मूल्यों को पुनराविष्कृत करना सभी देशवासियों का कर्तव्य है।

हमें तामसिक अंधकार की जगह सात्विक प्रकाश के आतंरिक स्रोत ढूंढ़ने होंगे और कलह, असत्य और आचार की कमजोरियों से बचना होगा। इसके लिए साहस, दृढ़ता और समर्पण का आत्मदीप चाहिए जो हमारा पथ आलोकित कर सके।

टॅग्स :दिवालीत्योहार
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