गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: प्रेम और प्रीति का रंग भरकर ही जीवन में मिलती है संपूर्णता

By गिरीश्वर मिश्र | Published: February 16, 2021 02:48 PM2021-02-16T14:48:57+5:302021-02-16T14:49:45+5:30

मनुष्य अपनी प्रगति को देख-देख अभिमान से चूर हुआ जा रहा है. वह कुछ इस कदर आत्मलीन सा हुआ जा रहा है कि उसे अपने अलावा कुछ दिखता ही नहीं.

Girishwar Mishra blog over life only by filling the color of love and love | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: प्रेम और प्रीति का रंग भरकर ही जीवन में मिलती है संपूर्णता

प्रतीकात्मक तस्वीर। (फाइल फोटो)

सृष्टि चक्र का आंतरिक विधान सतत परिवर्तन का है और भारत देश का सौभाग्य कि वह इस गहन क्र म का साक्षी बना है. तभी ऋत और सत्य के विचार यहां के चिंतन में गहरे पैठ गए हैं और नित्य-अनित्य का विवेक करना दार्शनिकों के लिए बड़ी चुनौती बना रहा. यहां ऋतुओं का क्रम कुछ इस भांति संचालित होता है कि पृथ्वी समय बीतने के साथ रूप, रस और गंध के भिन्न-भिन्न स्वाद से अभिसिंचित होती रहती है. 

वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत नामों से ख्यात ये छह ऋतुएं प्रकृति के संगीत के अलग-अलग राग, लय और सुर के साथ जीवन के सत्य को उद्भासित करती हैं. वे पशु, पक्षी और वनस्पति समेत सभी प्राणियों को यह संदेश देती रहती हैं कि तैयार रहो और गतिशील बने रहो जिससे जीवन का क्र म बना रहे. प्रकृति की कूट (कोड) भाषा सभी पढ़ भी लेते हैं, शायद मनुष्य से अधिक सटीक ढंग से और प्रकृति की लीला में सहचर बन जाते हैं. 

पूरी सृष्टि पर कब्जा जमाना ही उसका एकमात्न लक्ष्य हुआ जा रहा है. चंद्र विजय के बाद अब हर कोई मंगल ग्रह पर धावा बोल रहा है. लगता है मनुष्य प्रकृति के साथ दो-दो हाथ करने को आतुर है. जल, थल और नभ हर कहीं उसकी दस्तक जारी है. पर इन उलझनों से दूर अभी भी गांव, कस्बे और महानगर में बसा मध्य वर्ग वसंत पंचमी का उत्सव मनाता है. प्रयाग में इस दिन माघ मेला में विशेष स्नान का आयोजन भी होता है.

वसंत की दस्तक अनेक अर्थो में अनूठी होती है. बीतती ठंड और हल्की गर्मी के बीच की प्रीतिकर गर्माहट लिए यह मौसम यदि ऋतुराज कहा जाता है तो वह अन्यथा नहीं है. पेड़-पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के फूलों की सुरभि से परिवेश सुवासित रहता है. कालिदास के शब्दों में वसंत में सब कुछ चारुतर यानी अतिसुंदर और प्रीतिकर हो उठता है : सर्वम प्रिय म चारु तरम वसंते. उनके ऋतु संहार में मन में, वन में और पवन में मादकता का मनोहारी चित्नण मिलता है. इस काल को मधुमास भी कहा जाता है जो मस्ती और उल्लास से ओत-प्रोत मनोभाव और प्रकृति की रमणीयता को रेखांकित करता है. देव, सेनापति, घन आनंद, पद्माकर जैसे हिंदी कवियों ने श्रृंगार, माधुर्य, लावण्य और सौंदर्य को लेकर अविस्मरणीय काव्य रचा है. आधुनिक कवियों में निराला, पंत और अ™ोय ने वासंती प्रकृति का जीवंत चित्न खींचा है.

रम्य परिवेश सृजनात्मकता की ओर उन्मुख करता है इसलिए वाग्देवी की कृपा के लिए सभी उत्सुक रहते हैं. वेद के वाक्सूक्त में वाक् की महिमा अनेक तरह से की गई है.
अध्ययन अध्यापन से जुड़े बुद्धिजीवी वर्ग वसंत पंचमी को ‘सरस्वती पूजा’ यानी ज्ञान के उत्सव के रूप में मनाते हैं. स्वच्छ पीले परिधान में विद्यार्थी गण सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर विद्यालयों और छात्नावासों में ज्ञान की अधिष्ठात्नी देवी सरस्वती की आराधना करते हैं.

श्वेत कमल पर विराजती शुभ्र वस्त्नों से सुशोभित धवल द्युति वाली देवी सरस्वती वीणा और पुस्तक को धारण करती हैं. सारे देवता उनकी वंदना करते हैं. उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे बुद्धि की जड़ता के अंधकार को दूर करें. सुकुमार मति विद्यार्थी अपनी पुस्तक सरस्वती की प्रतिमा के निकट रख विद्या प्राप्ति की अभिलाषा भी ज्ञापित करते हैं. स्मरणीय है कि सरस्वती का उल्लेख नदी के रूप में प्राचीन साहित्य में मिलता है परंतु कालक्र म में वह लुप्त हो गई. प्रयाग अभी भी गंगा यमुना और प्रच्छन्न सरस्वती के संगम के रूप में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

वसंत की मादकता के साथ अब एक और आयाम भी जुड़ गया है. नए दौर में आधुनिक युवक-युवतियां वैलेंटाइन डे और सप्ताह के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. गुलाबी गंध के साथ शुरू होकर वैलेंटाइन दिवस चौदह फरवरी को पूर्णता प्राप्त करता ैहै. युवा पीढ़ी अपने प्यार और रोमांस की अभिव्यक्ति के लिए अवसर ढूंढ़ने को तत्पर रहती है. वासंती मन का यह नया संस्करण नागर सभ्यता का वैश्वीकरण की ओर बढ़ता कदम लगता है.वसंत का संदेश है कि जीवन में उत्सुकता और आह्लाद को आमंत्रित करो. प्रेम और प्रीति का रंग भर कर ही जीवन संपूर्णता को प्राप्त करता है.
 

Web Title: Girishwar Mishra blog over life only by filling the color of love and love

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