लाइव न्यूज़ :

संतोष देसाई का ब्लॉग: राजनीतिक दलों की चुनावी जीत और विचारधारा का सवाल

By संतोष ठाकुर | Updated: March 1, 2020 06:18 IST

आम आदमी पार्टी का प्रयास उस लाभ को बेअसर करना है, जो भाजपा राष्ट्रवाद की एक वैकल्पिक परिभाषा बनाकर हासिल करने का प्रयास कर रही है.

Open in App

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने कई तरह की प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है. कहा जा रहा है कि यह जीत मुफ्त बांटे जाने वाले उपहारों की जीत है, जो राष्ट्रवाद की भावना पर भारी पड़ी है. यह तथ्य कि कांग्रेस ढह गई और उसका वोटिंग आधार आप की ओर खिसक गया, एक अन्य कारक है. उदारवादी खुश हैं कि भाजपा न केवल हारी है बल्कि मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और हिंदू वोट को संगठित करने के अपने प्रयासों के बावजूद भारी अंतर से हारी है. लेकिन इसके साथ ही उदारवादियों के भीतर से ऐसी आवाजें भी उठ रही हैं कि केजरीवाल भले ही चुनावी बाजी मार ले गए हों, वैचारिक युद्ध तो भाजपा ही जीती है. 

वास्तव में, भाजपा ने विपक्ष को मजबूर कर दिया है कि वह बहुसंख्यकवाद पर जोर दे. इस अर्थ में, यह केवल ‘आप’ की ही जीत नहीं है बल्कि भाजपा के व्यापक एजेंडे की भी जीत है. आलोचकों का कहना है कि यदि सभी राजनीतिक दल देश में मुसलमानों को हाशिए पर डालने लगें तो उनकी जीत का व्यापक परिप्रेक्ष्य में कोई मतलब नहीं रह जाता है.

यह एक अच्छा तर्क है, लेकिन इस पर बारीकी से विचार किए जाने की जरूरत है. यह सच है कि ‘आप’ ने ऐसा चतुराई भरा कदम उठाया जिससे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण न होने पाए. एक पार्टी के रूप में उसके लिए ऐसा करना आसान भी था क्योंकि यह कभी भी स्पष्ट रूप से किसी खेमे के साथ नहीं थी. इसलिए बहुसंख्यकवाद के पक्ष में जाते हुए इसे अपने अस्तित्व संबंधी सवालों का सामना नहीं करना पड़ा है.

इस तथ्य को देखते हुए कि दक्षिणपंथी पार्टी का देश के आजादी के आंदोलन में कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं था, राष्ट्रवाद की भूमिका को अपनाना महत्वपूर्ण है. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी, जिसके नेतृत्व में देश ने आजादी हासिल की और जिसके दो महत्वपूर्ण नेताओं की आतंकवाद बलि ले चुका है, ऐसे इतिहास के बावजूद अपने राष्ट्रवादी ट्रैक रिकार्ड को सही ठहराने के लिए खुद को बैकफुट पर पा रही है.

आम आदमी पार्टी का प्रयास उस लाभ को बेअसर करना है, जो भाजपा राष्ट्रवाद की एक वैकल्पिक परिभाषा बनाकर हासिल करने का प्रयास कर रही है. इसमें पहला कदम आक्रामक रूप से राष्ट्रवादी प्रतीकों के साथ सार्वजनिक रूप से और बार-बार जुड़ना है. इसके बाद राष्ट्रवाद को सांप्रदायिक विभाजन के बजाय उस तरह के कार्यो से जोड़ने का प्रयास करना है जो आम आदमी पार्टी कर रही है. सकारात्मक राष्ट्रवाद के इस विचार से वह भाजपा की धार को भोथरा करना चाहती है. इसके साथ ही वह विपक्षी दलों को एक राह भी दिखाना चाहती है कि मुद्दों से कैसे निपटा जाए. 

टॅग्स :भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेस
Open in App

संबंधित खबरें

भारतबृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव: 10 दिन पहले अकेले लड़ने की घोषणा, अचानक 28 दिसंबर को वीबीए, आरएसपी और आरपीआई को दिया 74 सीट, कांग्रेस नेतृत्व से नाराज कार्यकर्ता?

भारतसंगठन की मजबूती पर चर्चा नहीं करती कांग्रेस

भारतकांग्रेस, राष्ट्रीय समाज पक्ष, आरपीआई 165 और वीबीए 62 सीट पर चुनाव लड़ेगी, 227 सीटों पर बंटवारा, शरद पवार-उद्धव ठाकरे से अलग राहुल गांधी

भारतकांग्रेस के 140वें स्थापना दिवसः हमारी शक्ति भले ही कम हुई, हमारा हौसला अब भी बुलंद, मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा-किसी से समझौता नहीं किया

भारतकर्नाटक प्रशासन में दखल देने वाले वेणुगोपाल कौन होते?, क्या ‘सुपर सीएम’ हैं?, अशोक ने कहा- राहुल गांधी और उनकी मंडली की कॉलोनी नहीं कर्नाटक?

राजनीति अधिक खबरें

राजनीतिDUSU Election 2025: आर्यन मान को हरियाणा-दिल्ली की खाप पंचायतों ने दिया समर्थन

राजनीतिबिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी से मिलीं पाखी हेगड़े, भाजपा में शामिल होने की अटकलें

राजनीतिBihar voter revision: वोटरों की सही स्थिति का पता चलेगा, SIR को लेकर रूपेश पाण्डेय ने कहा

राजनीतिबिहार विधानसभा चुनावः बगहा सीट पर बीजेपी की हैट्रिक लगाएंगे रुपेश पाण्डेय?

राजनीतिगोवा विधानसभा बजट सत्रः 304 करोड़ की 'बिना टेंडर' परियोजनाओं पर बवाल, विपक्ष का हंगामा