लोकसभा चुनाव 2019: क्या इन बातों से नरेंद्र मोदी को परास्त करेंगे राहुल गांधी?
By जनार्दन पाण्डेय | Published: August 24, 2018 02:57 PM2018-08-24T14:57:11+5:302018-08-24T15:41:34+5:30
अटल बिहारी वाजपेयी को उनके निधन के बाद देश की जनता ने जिस भी तरह याद किया हो, लेकिन इसी देश की जनता ने 2004 लोकसभा चुनाव में उनसे सत्ता छीन ली थी।
राहुल गांधी ने एक बार फिर विदेश जाकर नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा किया। नये और बदले राहुल गांधी की कमान में विदेश जाकर हमला बोलना एक अहम तीर है। याद कीजिए, पिछले साल बर्कले यूनिवर्सिटी में राहुल के भाषण के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनकी बातों को काटना पड़ा था। बीजेपी ने राहुल गांधी को इतनी गंभीरता से उससे पहले तक नहीं लिया था। लेकिन जर्मनी में राहुल के भाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार यह जाहिर करता है कि राहुल गांधी पर हंसने के बजाए अब उन्हें सुनने का दौर शुरू हो गया है।
जर्मनी में राहुल गांधी ने इंडिया की तुलना सीरिया-इराक की
नये राहुल गांधी तीखा आरोप लगा रहे हैं। ऐसे कि अविश्वास मत के दौरान जब वह बोले तो भारत और फ्रांस की सरकारों को बयान जारी कर मौजूदा स्थिति को स्पष्ट करनी पड़ी। इसी तरह से राहुल गांधी ने जर्मनी बोलते हुए कहा, इंडिया में अलगाव की राजनीति को पनाह दी जा रही है, इसके पूरे विश्व पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जैसे कि सीरिया और इराक की हालत हुई। सीरिया वर्तमान में उसी राजनीति का परिणाम झेल रहा है और इराक झेल चुका है।
इस आरोप के मायने- यह बात अगर राहुल गांधी अगर दो साल पहले कहते तो इसके लिए उनकी जमकर भर्तस्ना की जाती। लेकिन इस वक्त देश की मौजूदा स्थिति ऐसी है कि अभी तक राहुल गांधी के बयान पर कोई कटाक्ष नहीं आया है।
सूटबूट वाले बयान के एक कदम आगे बढ़े राहुल
राहुल गांधी ने बीजेपी की दुखती रग पर हाथ रखा। राहुल गांधी ने कहा, "कांग्रेस बेतुके और मनमौजी नीतियों का विरोध करती है, ये नीतियां अमीरों को लाभ पहुंचाने वाली हैं।" उन्होंने कहा, 'नोटबंदी-जीएसटी दोनों ही ऐसी नीतियां थीं जिन्होंने लाखों लोगों के रोजगार-धंधे छीने। इन दोनों नीतियों से केवल अमीरों और कॉर्पोरेट घरानों को लाभ हुआ।' राहुल ने यह भी कहा, 'हमारी लड़ाई अपने अधिकार से वंचित लोगों के लिए है। हम उनकी अगुआई करते हैं।'
इस बयान के मायने- अगर राहुल गांधी की इस टिप्पणी को ध्यान से सुना जाए तो पाएंगे कि यह राहुल के उस सूटबूट वाली सरकार की टिप्पणी से एक कदम आगे की बात है। वह नरेंद्र मोदी पर अमीरों को लाभ पहुंचाने और गरीबों की सुध ना लेने वाली सरकार के तौर पर बताते हैं। मोदी सरकार ने हाल के दिनों में गरीबों को साधने में काफी ऊर्जा लगा रही है।
बीजेपी की राह पर चल कर उन्हीं को मात देने का दांव
राहुल गांधी ने जर्मनी में कहा, भारत में इस वक्त एक खास तरीके से लोगों कुछ खास लोगों को सरकारी नीतियों से दूर रखा जा रहा है। इसमें केवल धार्मिक अल्पसंख्यक ही शामिल नहीं है। इसमें बड़ी चालाकी से दलितों, आदिवासियों और मध्यम वर्ग को जानबूझ कर अलग-थलग रखा जा रहा है। सपने जापान और चीन के दिखाए जा रहे हैं। लेकिन उन्हीं देशों की विकास दरों और उनमें पैदा हो रही नौकरियों की तरफ देखें तो हमें तत्काल सच्चाई और छलावे का अहसास हो जाएगा।
इस आरोप के मायने- असल में 1999 की अटल सरकार के रवैये भी यही थे। उनके निधन पर भले लोगों ने उन्हें किसी तरह याद किया हो। पर यह उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि 2004 में इसी देश की जनता ने उन्हें नहीं चुना था। इसमें कांग्रेस एक महत्वपूर्ण अभियान को काफी कुछ श्रेय जाता है। कांग्रेस ने तब एक अभियान चलाया था- 'इंडिया शाइनिंग' से 'मुझे क्या मिला'। ध्यान देखेंगे तो पाएंगे राहुल गांधी फिर से वही नरेटिव तैयार करने की जुगत में लगे हैं।
क्या इस मुद्दे पर अगला चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
बीजेपी ने हाल के दिनों में अपनी छवि बदलने की कोशिश की है। अगर आपको साल 2014 के नरेंद्र मोदी की रैलियां याद हों, तो उन्होंने लगातार स्वच्छ, योग्य और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की मांग की। जब-जब नरेंद्र मोदी ने गरीबी का जिक्र किया तो बेहद निजी तरीके से। मसलन, चाय वाले का बेटा या गरीब बेटा, या हम तो फकीर हैं आदि...
नरेंद्र मोदी ने इस तरह बयान नहीं दिए- अब 100 पैसा गरीबों तक पहुंचता है। लेकिन करीब तीन साल से नरेंद्र मोदी गरीब, वंचित और शोषित वर्गों का खुलकर जिक्र कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी के पिता यानी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बयान में कहा था कि केंद्र से चले 100 पैसे में गरीबों के योजनाएं लागू होने तक 5-10 पैसे ही बचते हैं।
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक साल 2016 में केरल में हुई एक बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक शीर्ष केंद्रीय मंत्री ने पीएम मोदी के गरीबी दिए भाषणों को लेकर भारी निराशा जताई थी। उनका कहना था, 'गरीबी की इतनी बातें क्यों हो रही हैं? भारत ने काफी कुछ अच्छा चल रहा है। फिर हम इतनी नकारात्मक बातों पर क्यों गौर कर रहे हैं।
असल में बीजेपी की मूल राजनीति में ऐसी बातें कई बार सुनने को मिलती हैं कि वह मुद्दे से देश को भटकाती है। ऐसे में गरीबी एक ऐसा मुद्दा है जिसने पहले भी बीजेपी से सत्ता छीनी है। इसलिए बीजेपी के कई नेता चाहते हैं कि इस का जिक्र ना हो। हालांकि पीएम मोदी कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा ठाना है कि वह फिर से गरीबी हटाओ को ही उजागर करेगी।
जर्मनी में राहुल गांधी के भाषणों का केंद्र- रोजगार, किसान, गरीबी, अमीरों को फायदा, वंचितों का और नरअंदाज किया जाना आदि रहा। उन्होंने इससे संकेत दे दिए हैं कि आगामी चुनावों में कांग्रेस किन मुद्दों पर आगे आएगी।
राहुल गांधी के बयानों में 2019 के संकेत- राहुल गांधी, मोदी सरकार को लेकर ऐसी छवि बनाने में लगे हुए हैं, जिससे यह साबित हो कि इस सरकार में आम लोगों के कष्ट की सुध नहीं ली गई। बल्कि उन्हें निशाना बनाया गया। कांग्रेस ने इसी परिपाटी पर चलकर 2004 और 2009 में जीत दर्ज की थी।
लेकिन क्या राहुल का यह रूप मोदी के सामने टिकेगा
नरेंद्र मोदी के भाषण का अंदाज ही दूसरा है। उन्होंने भरी संसद में यह ऐलान किया था कि कांग्रेस को मान लेना चाहिए कि राजनीति उन्हें कांग्रेस से ज्यादा आती है। उनके भाषणों में ऐसे वाक्य आते हैं- "शहजादे अनिच्छुक हैं, उदासीन हैं, काम करने की बजाय छुट्टी मनाना पसंद करते हैं।" या फिर- 'आज टीवी पर पूरे देश ने आंखों का खेल देखा।' पीएम मोदी भाषण के माहिर खिलाड़ी हैं। वे जनता से तार्किक कम भावानात्मक संवाद ज्यादा बिठाते हैं। वह अपने बयानों में यह याद दिलाना नहीं भूलते, "क्या हमारी सामर्थ्य बढ़ी? उन्होंने (कांग्रेस और गांधी परिवार ने) हमारे साथ क्या किया? अपने परिवार के विकास के अलावा?
राहुल गांधी इस स्तर पर भाषण नहीं करते। जर्मनी से पहले राहुल ने अमेरिका के बर्कले में सभा के दौरान इसका जिक्र किया। उन्होंने किसी अपमानित करने वाले शब्द के प्रयोग के बगैर बताया कि कैसे मोदी व उनके सहयोगियों ने राहुल के बारे में गलत प्रचार किया। संसदीय बहसों तक में सत्ता पक्ष के प्रमुख नेताओं ने लगातार राहुल गांधी की पार्टी, परिवार और निजी तौर पर उनके लिए अपशब्दों के प्रयोग किए हैं। पर राहुल कभी इन आरोपों पर सफाई देने पेंच में नहीं फंसे। उन्होंने बड़े शालीन तरीके से सरकार पर करारा प्रहार का रवैया अपनाया।
पर सवाल यह है कि क्या राहुल का यह अवतार नरेंद्र मोदी से टकराने के लिए काफी है। क्या इन मुद्दों के जिक्र से वह अपनी पार्टी को जीत के आंकड़े तक ले जा पाएंगे। हालांकि राहुल गांधी अब वास्तविकता के करीब भाषण करते नजर आते हैं।
लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि भारत के गांवों में बिजली के खंबे गाड़े गए हैं। सड़कें बनी हैं। बहुत से गांवों में शौचालय का निर्माण हो चुका है। इंटरनेट व डिजिटलीकरण से व्यवसाय के तरीकों में बदलाव आया है। जीएसटी ने कई इंडस्ट्रीज को दिल्ली से बार-बार आने फोनों और धमकियों से उबार लिया है।
ऐसे में राहुल गांधी के धार्मिक अलगाव, लिंचिंग, गरीबी, अमीरों को फायदा पहुंचाना और प्यार की राजनीति के मुद्दे कितने कारगर साबित होंगे, इसका फैसला छह-आठ महीनों के भीतर होने वाला है। हां, राहुल के भाषणों में उनके तेवर और उनकी जुबान पहले दोनों साथ नहीं होते थे। राहुल ने इससे खुद को उबार लिया है। अब वे अपनी बातों तभी गुस्सा करते हैं, जब जुबान से भी गुस्से वाले वाक्य बोल रहे होते हैं।