हरीश गुप्ता का ब्लॉग: पवार की राज्यसभा में रहस्यमय चुप्पी

By हरीश गुप्ता | Published: February 18, 2021 10:15 AM2021-02-18T10:15:48+5:302021-02-18T10:15:48+5:30

शरद पवार ऐसे नेता है जिनकी बात हर कोई सुनने पर मजबूर होगा. वे यूपीए की सरकार में कृषि मंत्री रह चुके हैं. हालांकि उन्होंने राज्य सभा में नहीं बोला और इसे लेकर सभी हैरान हैं.

Harish Gupta blog: Sharad Pawar mysterious silence in Rajya Sabha on Farm bills | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: पवार की राज्यसभा में रहस्यमय चुप्पी

राज्यसभा में शरद पवार की रहस्यमय चुप्पी (फाइल फोटो)

Highlightsकृषि कानूनों पर चर्चा के दौरान शरद पवार की चुप्पी पर समूचा राजनीतिक वर्ग हैरानशरद पवार अगर राज्य सभा में खड़े होकर पूर मुद्दे पर बोलते तो किसान और सरकार दोनों ही सुनतेशरद पवार दिल्ली में संसद सत्र के दौरान मौजूद थे पर प्रफुल्ल पटेल को बोलने दिया

हाल ही में राज्यसभा में तीन कृषि कानूनों पर चर्चा के दौरान राकांपा प्रमुख शरद पवार की रहस्यमय चुप्पी से समूचा राजनीतिक वर्ग हैरान है. उम्मीद थी कि बारामती के दिग्गज किसान नेता, जो पूरे दस वर्षो तक संप्रग के शासनकाल में कृषि मंत्री रह चुके हैं, अपने रिकार्ड के अनुरूप बोलेंगे. 

यदि उनके जैसे कद का नेता अपनी बात रखता तो किसान और सरकार दोनों ही उन्हें सुनते. वे शायद इकलौते थे, जिन्होंने किसानों से कहा कि वे अपना आंदोलन समाप्त कर दें क्योंकि कृषि कानून 18 महीनों के लिए स्थगित कर दिए गए हैं और सरकार से भी कहा था कि वह थोड़ा झुके और कोई रास्ता निकाले. 

आखिरकार वे पवार ही थे जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान केंद्र में कई कृषि सुधार किए थे और उसके पहले महाराष्ट्र में भी कर चुके थे. पवार दिल्ली में संसद सत्र के दौरान मौजूद थे. लेकिन उन्होंने राज्यसभा में अपनी रहस्यमय चुप्पी बनाए रखी और प्रफुल्ल पटेल को बोलने के लिए लगाया. 

हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा ने राज्यसभा में गर्व से अपने आपको ‘कर्नाटक का किसान’ बताया. लेकिन वे अपनी लय को बरकरार नहीं रख पाए और दिलों को छूने में विफल रहे. पवार ऐसा कर सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. क्यों? राकांपा की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.

ब्यूरोक्रेट्स से क्यों खफा हैं प्रधानमंत्री?

मोदी जब से 2014 से केंद्र की सत्ता में आए हैं, ब्यूरोक्रेट्स को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है. वे दिन गए जब वे एकछत्र अधिकार रखने के आदी थे और मंत्रियों को उनके जरिये ही काम करना पड़ता था. कुछ मंत्रियों के साथ नौकरशाह निजी लोगों और राजनेताओं के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करते थे. 

वे पांच सितारा होटलों में पार्टी करते थे, गोल्फ खेलते थे, और अपनी मनमर्जी से दफ्तर आते थे. प्रधानमंत्री मोदी को लुटियंस की दिल्ली की इस संस्कृति के बारे में 2014 में बताया गया था. तब से मोदी ने नकेल कस कर रखी है और ब्यूरोक्रेट्स का वर्ग अब नामहीन और चेहराविहीन बन कर रह गया है. 

मोदी के प्रधान सचिव पी.के. मिश्र जब लोधी गार्डन में टहलने निकलते हैं तो लुटियंस की दिल्ली के लोग उन्हें पहचानते भी नहीं हैं. कारोबारियों के साथ ब्यूरोक्रेट्स की सीधी बातचीत को मोदी पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं और शिकायतों के ‘फेसलेस’ निपटारे की पूरी कोशिश की जा रही है. 

किसी प्रधानमंत्री ने ब्यूरोक्रेट्स की काम करने की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया था. मोदी ब्यूरोक्रेट्स से इस बात को लेकर नाराज हैं कि वे उनकी नीतियों के क्रियान्वयन में एक के बाद दूसरी बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. 

उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचकर दो लाख करोड़ रु. जुटाने के उनके विशाल विनिवेश कार्यक्रम को नाकाम करने का आरोप उन पर लगाया. मोदी इसके लिए ब्यूरोक्रेट्स को दोषी मानते हैं और उन्हें सार्वजनिक रूप से कोस रहे हैं.  

जी-23 की निराशा

राहुल गांधी न तो कांग्रेस अध्यक्ष हैं और न संसदीय समिति के नेता. उन्होंने साफ कर दिया है कि वे कोई पद नहीं लेंगे. लेकिन वे लगातार पार्टी, संसद में अधिकार संपन्न बने हुए हैं और हुक्म चला रहे हैं. मुंह पर कड़वी बातें कहने और कठोर रुख अपनाने में वे नहीं चूक रहे हैं. 

जी-23 के असंतुष्ट नेताओं ने सोचा था कि प्रियंका गांधी के साथ गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा की बैठक के बाद उनका रवैया मैत्रीपूर्ण होगा. आजाद और शर्मा, दोनों ही नेता पत्र लिखने वाले जी-23 का हिस्सा हैं. लेकिन उनकी उम्मीदें तब धराशायी हो गईं जब सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद के सेवानिवृत्त होने के तीन दिन पूर्व ही नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनका स्थान लेने के लिए मल्लिकाजरुन खड़गे की नियुक्ति का पत्र भेज दिया. 

इससे आनंद शर्मा को निराशा हुई क्योंकि वे इस पद की दौड़ में सबसे आगे थे. झटका तब भी लगा जब नाना पटोले महाराष्ट्र पीसीसी प्रमुख नियुक्त किए गए. अब तो चर्चा यह है कि एक कांग्रेसी मंत्री के त्यागपत्र के जरिए पटोले के लिए मंत्रिमंडल में जगह बनाई जा सकती है. 

यह चर्चा तब शुरू हुई जब पटोले दिल्ली में राहुल से मिले. राहुल गांधी के आधिकारिक आवास 12 तुगलक रोड से इस बारे में कोई फैसला अभी तक बाहर नहीं आया है. के. सी. वेणुगोपाल धीरे-धीरे एआईसीसी में दिवंगत अहमद पटेल की जगह ले रहे हैं.

अकेला विजेता

नमो प्रशासन ने 1988 और 1989 बैच के 26 आईएएस अधिकारियों को सचिव और 14 अधिकारियों को सचिव समकक्ष के रूप में पदोन्नत करने के लिए मंजूरी दी है. 

महाराष्ट्र भाग्यशाली था क्योंकि राजेश अग्रवाल उक्त 40 अधिकारियों की सूची में थे. लेकिन वे भी सचिव समकक्ष बनाए गए, न कि पूर्ण सचिव. सबसे अमीर और सबसे बड़े राज्यों में से एक के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है.

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