आम आदमी पार्टी से कुमार विश्वास को साइड लाइन करना आसान नहीं है!
By आदित्य द्विवेदी | Published: December 21, 2017 09:56 AM2017-12-21T09:56:43+5:302017-12-21T10:10:08+5:30
तो क्या कुमार विश्वास के ‘अंधेरे वक्त में गीत’ गाने का टाइम आ चुका है? इन तीन बिंदुओं में समझिए...
‘दुआ करो मैं कोई रास्ता निकाल सकूं,
खुदी को थाम सकूं आप को संभाल सकूं’
ये एक शेर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. कुमार विश्वास की हालिया व्यथा का मजमून है। वो कुमार विश्वास जिनका पिछले कुछ दिनों से 'आप' कार्यकर्ताओं के प्रति कुछ विशेष आग्रह बढ़ गया है। वो कुमार विश्वास जो आजकल हर दूसरे वाक्य में खुद को आम आदमी पार्टी का संस्थापक सदस्य याद दिलाना नहीं भूलते। वो कुमार विश्वास जो पार्टी के पांच साल पूरे होने पर खुलेआम मंच से कहते हैं कि पार्टी का कोई एक चेहरा नहीं होना चाहिए। ये कहते हुए उनका सीधा इशारा अरविंद केजरीवाल की तरफ होता है।
ये सारी कवायद किसलिए? क्या आम आदमी पार्टी से कुमार विश्वास के साइड लाइन किए जाने का वक्त आ चुका है? जैसे कुछ वक्त पहले योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ किया गया था। नवंबर में आम आदमी पार्टी की नेशनल काउंसिल की बैठक में वक्ताओं की सूची में कुमार विश्वास का नाम ना होना, अक्टूबर में आप विधायक अमानतउल्ला खान का निलंबन रद्द कर दिया जाना जिन्होंने कुमार विश्वास पर बीजेपी से मिले होने का का आरोप लगाया था। लेकिन कुमार विश्वास को पार्टी से साइड लाइन किया जाना इतना भी आसान नहीं है।
पार्टी कार्यकर्ता ही असली किंगमेकर
आम आदमी पार्टी की पांचवीं सालगिरह पर दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया था। इसमें कुमार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को हुंकार लगाते हुए कहा कि क्या आपको नहीं लगता कि हम कहीं और चले गए हैं, जहां से हम पांच साल पहले निकले थे? हमें सही रास्ते को ढूंढना होगा। इसके बाद उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से नियमित मुलाकात का वादा भी किया। कुछ दिनों बाद पार्टी कार्यालय में अलग-अलग राज्यों के कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बाद उन्होंने ऐलान कर दिया कि वो आम आदमी पार्टी का वर्जन-2 बनाएंगे जो ‘बैक टू बेसिक्स’ के रास्ते पर चलेगी।
दरअसल, कुमार विश्वास जानते हैं कि पार्टी में कार्यकर्ता की किंग मेकर होता है। जब तक कार्यकर्ता की सहानुभूति और समर्थन है पार्टी में उनका कोई कुछ नहीं बिगा़ड़ सकता।
बेहतरीन वक्ता और मीडिया के लाडले
कुमार विश्वास देश के गिने-चुने प्रखर राजनीतिक वक्ताओं में से हैं। साथ ही मीडिया में भी उन्हें भरपूर स्पेस मिलता है। वो अपनी बातों से जनता को राजी करने का माद्दा रखते हैं। इसकी बानगी हम लोग योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के पार्टी से निष्कासित किए जाने के वक्त देख चुके हैं। आम आदमी पार्टी की आलोचनाओं के बीच कुमार विश्वास यह बात साबित करने में सफल रहे हैं कि उन लोगों का पार्टी से निष्कासित किया जाना क्यों जरूरी था। कुमार की यह खूबी भी उनके पक्ष में जाती है।
'आप' के संस्थापक सदस्य
अन्ना हजारे की अगुवाई वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन की शुरुआत रामलीला मैदान से हुई थी जिसके बाद 2012 में आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। कुमार विश्वास तभी से इस पार्टी से जुड़े हुए हैं। वो अक्सर कहते हैं कि पार्टी बनाने का आईडिया उनके ही घर पर लिया गया था। पार्टी के कई संस्थापक सदस्य पहले ही बाहर किए जा चुके हैं। ऐसे में कुमार विश्वास का साइड लाइन किया जाना पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। कुमार विश्वास ने साफ तौर पर कहा है कि जिस पार्टी के वो संस्थापक सदस्य रहे हैं और जिस आंदोलन को लेकर वो चले थे उसे छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले।
कुमार विश्वास को यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बैर मोल लेकर बहुत आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इसका समाधान क्या होगा? क्या मान लेना चाहिए कि कुमार विश्वास का ये गीत गाने का वक्त आ चुका है...
... वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएं
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएं
जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएं
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे।
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे…!!!