ये पांच फैक्टर आसान करेंगे 2019 में कांग्रेस की राह, थम जाएगा मोदी-शाह का विजयरथ!

By राहुल मिश्रा | Published: June 27, 2018 11:09 AM2018-06-27T11:09:09+5:302018-07-19T09:33:36+5:30

बड़े कांटे हैं 2019 की राह में, इस तरह मोदी-शाह का विजयरथ रोके सकते हैं विरोधी! पढ़ें पूरी रिपोर्ट

bjp jdu political tussle and defeat gave congress new hope to win 2019 loksabha election | ये पांच फैक्टर आसान करेंगे 2019 में कांग्रेस की राह, थम जाएगा मोदी-शाह का विजयरथ!

ये पांच फैक्टर आसान करेंगे 2019 में कांग्रेस की राह, थम जाएगा मोदी-शाह का विजयरथ!

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल और सोलहवीं लोकसभा के ख़त्म होने में अब महज़ कुछ ही महीने बाकी रह गए हैं, लिहाजा 2019 लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट रफ़्तार पकड़ने लगी है।

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने गठबंधन एनडीए के साथ चुनाव की तैयारियां ज़ोर-शोर से करने में जुट गई है। वहीं विपक्षी दल भी अपनी जोर आजमाइश के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। खासतौर पर बात करें मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की तो वो राहुल गांधी के नेतृत्व में इस बार कोई कोताही बरतना नहीं चाहता।

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हालांकि उन सभी पार्टियों के लिए जो बीजेपी को हराने के लिए जी-तोड़ रस्साकसी कर रही हैं, उनके लिए 2019 की डगर बहुत कठिन नजर आ रही है। इस बीच देखा जाए तो कांग्रेस के खेमे में कुछ उदासीनता भी है। उसकी इस उदासीनता की वजह से ही कुछ प्रमुख क्षेत्रीय दलों के नेताओं के बीच भाजपा और कांग्रेस से इतर तीसरे मोर्चे या फ़ेडरल फ्रंट के गठन के लिए मेल-मुलाकातों का दौर शुरू हो गया है।

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बीच हाल ही में हुई मुलाकात तीसरे मोर्चे के गठन की सुगबुगाहट कही जा सकती है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और के चंद्रशेखर राव पिछले पिछले कई दिनों से तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद में जुटे हुए हैं।

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अब यहां हम अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो कुछ बिन्दुओं को छोड़ कर बाकी कुछ भी उनके पक्ष में जाता नजर नहीं आ रहा है। ये कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनके मद्देनजर कांग्रेस 2019 में बीजेपी को हराने का दम भर सकती है। यहां आप यह भी कह सकते हैं भारतीय जनता पार्टी के लिए भी ये परेशान करने वाले तथ्य साबित हो सकते हैं। आइए उन कुछ बिन्दुओं पर नजर डालते हैं...

उपचुनावों में बीजेपी की हार- 
हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों की दो लोकसभा सीटों पर बीजेपी को मिली करारी शिकस्त बीजेपी के लिए बड़ा रोड़ा साबित हो सकती है। बीजेपी की इस हार के बाद विपक्षी पार्टियों को लगने लगा है कि अगर सभी मुख्य विपक्षी पार्टियां एक जुट हों जाएं और मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ें तो शायद उन्हें शिकस्त दी जा सकती है। यूपी में फूलपुर, गोरखपुर और कैराना, राजस्थान में अलवर और अजमेर सीट के बीजेपी के हाथ से निकलने और बिहार में अररिया जैसी सीट पर हार कुछ ऐसा ही आभास कराती नजर आ रही है।

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अगर एकजुट हुआ विपक्ष-
पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्यूलर) के नेता एचडी देवेगौडा, डीएमके नेता एमके स्टालिन, बीजेडी अध्यक्ष तथा ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, कांग्रेस से बग़ावत कर अलग पार्टी बना चुके छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, जेएमएम के अध्यक्ष तथा झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरीखे नेताओं से कांग्रेस की बातचीत ज्यादा नहीं तो कुछ हद तक इस ओर इशारा कर रही है कि शायद सभी पार्टियाँ मिलकर महागठबंधन के साथ 2019 लोकसभा चुनाव लड़ें और अगर ऐसा हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किलें कई गुना बढ़ सकती हैं।

बीजेपी की राह मुश्किल कर रहे हैं सहयोगी दल-
भारतीय जनता पार्टी के लिए 2019 चुनावों में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं उनके ही सहयोगी दल, जोकि अब उसके लिए राह कठिन कर रहे हैं। शिवसेना साथ तो है लेकिन उनका साथ रूठने और मनाने में ज्यादा व्यतीत होता नजर आता है। साथ ही कई मौकों पर वे बीजेपी से अलग मुखर होते नजर आते हैं। हालांकि बीजेपी ने पालघर और भांदरा-गोंडिया उपचुनाव के लिए शिवसेना के साथ गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन उद्धव ठाकरे अपना रुख नरम करने को तैयार नहीं हुए। यह मामला दिलचस्प है क्योंकि दोनों पार्टियां महाराष्ट्र में मिलकर गठबंधन सरकार चला रही हैं और केंद्र की गठबंधन सरकार में भी शिवसेना शामिल है। 

दूसरी ओर बिहार में जेडीयू भी चुनावों का समय नजदीक आते-आते एनडीए में रहने के अपने नफा-नुकसान का पूरी तरह से आकलन कर रही है, साथ ही सीट बंटवारे को लेकर भी उसका और भारतीय जनता पार्टी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जेडीयू को हालिया उपचुनावों में जोकिहाट और अररिया सीट पर हार मिली है। पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि ऐसा इसलिए क्योंकि एनडीए के साथ रहते हुए उन्हें मुस्लिम वोट नहीं मिले। 

अब अगर चुनावों के पहले दोनों सहयोगियों में सब कुछ ठीक नहीं हो पाता है और जेडीयू अपने आप को एनडीए गठबंधन को अलग कर लेती है तो बिहार सहित देशभर में बीजेपी को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

खैर! आगामी लोकसभा चुनाव भारतीय इतिहास का सबसे रोचक और दावपूर्ण होने जा रहा है, अब देखना दिलचस्प होगा कि बाजी किसके हाथ आती है। इस बार मके चुनावों में यह भी देखना दिलचस्प होगा कि पार्टियों को विकास याद आता है या हिंदुत्व या धार्मिक कट्टरता? मुझे तो याद नहीं कि एक बार भी विकास का मुद्दा कहीं हावी हुआ हो। विकास से कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा कई-कई चेहरे बदलकर अंततः हिन्दुत्व बना। आखिर ऐसा क्यों है कि भारत की मौजूदा दौर की सियासत में चुनावी मुद्दा विकास नहीं बल्कि हिन्दुत्व बनता है? जबाब शायद हम हीं हैं...सोचिए जरा! 

Web Title: bjp jdu political tussle and defeat gave congress new hope to win 2019 loksabha election