अवधेश कुमार का ब्लॉग: महाराष्ट्र में राजनीति का नया अध्याय
By अवधेश कुमार | Published: November 27, 2019 01:44 PM2019-11-27T13:44:22+5:302019-11-27T13:44:22+5:30
भाजपा की दृष्टि से इसका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह हुआ है कि जो कांग्रेस कल तक शिवसेना को लेकर थोड़ी हिचक प्रदर्शित कर रही थी वह अब ज्यादा नजदीक आ गई
महाराष्ट्र की राजनीति बदल गई है. जिस तरह से अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण करने के बाद शरद पवार ने मोर्चा संभाला था उससे तस्वीर काफी हद तक साफ हो गई थी. शरद पवार ने राकांपा के एक-एक विधायक को ढूंढ कर निकलवाया एवं सुनिश्चित किया कि कोई अजित पवार के साथ न जाए.
अजित को विधानमंडल दल के नेता पद से हटाकर जयंत पाटिल को उनकी जगह लाया गया. कांग्रेस, राकांपा एवं शिवसेना के बीच बातचीत धीमी गति से आगे बढ़ रही थी, अचानक उसमें असीम ऊर्जा आ गई.
हयात होटल में संख्या बल के प्रदर्शन के बाद इसमें संदेह नहीं रह गया था कि बहुमत किसकी ओर है. हालांकि यही स्थिति दो वर्ष पूर्व कर्नाटक में थी तो वी. एस. येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने की जगह विधानसभा में जाना उचित समझा. उन्होंने अपना भाषण दिया और उसके बाद इस्तीफे की घोषणा कर दी थी.
इसके पूर्व 1996 में भी अटलबिहारी वाजपेयी के सामने यही स्थिति थी. बावजूद उन्होंने लोकसभा में विश्वास मत पेश किया. दोनों तरफ से खूब बहस हुई. वाजपेयी ने भाषण दिया और कहा कि मैं राष्ट्रपतिजी को इस्तीफा देने जा रहा हूं. तो भाजपा की दृष्टि से महाराष्ट्र में एक अलग परंपरा कायम हुई है.
महाराष्ट्र की राजनीति का एक अध्याय तत्काल समाप्त हुआ. यहां से दूसरा अध्याय आरंभ हो रहा है. यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि भाजपा ने सरकार बनाने में जल्दबाजी की. अगर वे अजित पवार के पास आने के बावजूद थोड़ा समय लगाकर पूरी स्थिति का आकलन करते तो तस्वीर साफ हो जाती.
इस तरह भाजपा की यह रणनीतिक भूल साबित हुई है. भाजपा की दृष्टि से इसका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह हुआ है कि जो कांग्रेस कल तक शिवसेना को लेकर थोड़ी हिचक प्रदर्शित कर रही थी वह अब ज्यादा नजदीक आ गई है.
इस प्रकरण से तीनों दलों के नेताओं एवं विधायकों के बीच जिस तरह का संवाद कायम हुआ है उसमें यह सरकार हमारी आपकी कल्पना से ज्यादा मजबूत हो सकती है.