आलोक मेहता का नजरियाः विचारशून्यता के साथ राजनीतिक पतन 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 23, 2018 06:39 PM2018-12-23T18:39:36+5:302018-12-23T18:39:36+5:30

वर्तमान दौर में चोर, लुटेरे कहना सामान्य हो गया है. पार्टियों के प्रवक्ता टीवी चैनल पर गाली और अनर्गल आरोप लगाने के साथ विरोधी के साथ मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं. 

Alok Mehta's view: Political demotion without innovative ideas | आलोक मेहता का नजरियाः विचारशून्यता के साथ राजनीतिक पतन 

आलोक मेहता का नजरियाः विचारशून्यता के साथ राजनीतिक पतन 

आलोक मेहता

राजनीतिक या मीडिया मंचों पर क्या आपको कोई वैचारिक बहस सुनने या देखने को मिल रही है? पहले परस्पर विरोधी और  सत्ता में रहकर दूसरे को जेल तक भेजने वाले सार्वजनिक रूप से अभद्र भाषा का उपयोग नहीं करते थे. मोरारजी देसाई और चरण सिंह या राज नारायण स्वयं इंदिरा गांधी के घोर विरोधी थे. लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी और परिवार पर कभी   आपत्तिजनक बयान नहीं दिया. जय प्रकाश नारायण जेल भेजे जाने पर भी इंदिरा को इंदु बेटी ही कहते रहे. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंह राव ने कभी संघ, भाजपा, समाजवादी नेताओं के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग नहीं किया. लेकिन वर्तमान दौर में चोर, लुटेरे कहना सामान्य हो गया है. पार्टियों के प्रवक्ता टीवी चैनल पर गाली और अनर्गल आरोप लगाने के साथ विरोधी के साथ मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं. 

आर्थिक नीति में गांधी, नेहरू, दीनदयाल उपाध्याय, लोहिया की नीतियों-आदर्शो का पालन तो दूर रहा, उनकी चर्चा भी कहीं नहीं होती. सांप्रदायिक मुद्दों को धार्मिक आस्था के नाम पर उठाया जाता है. धर्म निजी विषय है. लेकिन उसके प्रदर्शन की होड़ लगी है. मंदिर के नाम पर जनता को भावनात्मक समर्थन के लिए पटाने की कोशिश होती है. लेकिन सैकड़ों मंदिरों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. गाय के लिए राज्यों में विभाग, मंत्नालय तक बन गए लेकिन राजमार्गो पर हजारों गायों के भटकने और दुर्घटनाएं रोकने की कोई कोशिश नहीं हो रही है. किसानों की कर्जमाफी बड़ा मुद्दा बना है लेकिन किसान को लागत का सही दाम और फसल बीमा से तत्काल अधिक लाभ दिलाने का प्रयास नहीं हो रहा. 

अनाज और फल, सब्जी के भंडारण के लिए गोदाम और कोल्ड स्टोरेज बनाए जाने को सरकारों ने प्राथमिकता नहीं दी. इसी वजह से किसान को दाम नहीं मिलते और अनाज या फल गांव में सड़ जाते हैं. शिक्षा का विस्तार और व्यापार बढ़ता गया है. ऐसे निजी शिक्षा संस्थान हैं जिनकी आमदनी दस अरब रुपयों की हो गई लेकिन हजारों सरकारी स्कूलों में न्यूनतम सुविधाएं और पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं. सबसे बदतर बात यह कि शिक्षा नीति ही बार-बार बनती रहती है और लागू नहीं हो पाती.

दुनिया के किसी देश में हर साल करों के नियम नहीं बदलते. महान भारत में हर साल करों की दर, फॉर्म, नियम बदलने से हर वर्ग परेशान होता है. कर वसूलने वाले भ्रष्टाचार करने लगते हैं. ईमानदार कर देते हैं और कर चोर नियम कानून की आड़ लेकर गड़बड़ करते हैं. धार्मिक ट्रस्टों के नाम पर अरबों रुपया कर दिए बिना जमा होता है लेकिन समाज को कितना लाभ मिलता है? मीडिया के पतन पर भी आंसू बहाए जाते हैं लेकिन टीवी क्रांति के 20 वर्ष बाद भी मीडिया काउंसिल नहीं बनाई जा सकी. राजनीतिक आचार संहिता की तरह प्रेस की आचार संहिता का पालन नहीं हो रहा. नियम कानून तोड़ना ही क्या आजादी या अधिकार है? समय रहते देश को नीतियों, आदर्शो, नियम कानूनों के साथ प्रतिबद्ध करना जरूरी है. 

Web Title: Alok Mehta's view: Political demotion without innovative ideas

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