ब्लॉग: कब तक रुका रहेगा विधायकों का फैसला ?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 16, 2023 08:48 AM2023-10-16T08:48:09+5:302023-10-16T08:55:03+5:30
विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना को भी सही नहीं मानते हैं, क्योंकि उनके अनुसार अदालत ने कोई ऐसा आदेश नहीं दिया है कि एक कार्यक्रम तैयार कर दो महीने के भीतर निर्णय लिया जाए।
महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग हुए विधायकों की अयोग्यता का मामला किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहा है। करीब 54 विधायक इसके दायरे में हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर अपने ढंग से कार्य करना चाहते हैं।
वह उचित कानूनी सलाह लेने के बाद शिवसेना विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं की सुनवाई के लिए संशोधित कार्यक्रम बनाना चाहते हैं। साथ वह सुप्रीम कोर्ट की आलोचना को भी सही नहीं मानते हैं, क्योंकि उनके अनुसार अदालत ने कोई ऐसा आदेश नहीं दिया है कि एक कार्यक्रम तैयार कर दो महीने के भीतर निर्णय लिया जाए।
उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट का आदेश ऑनलाइन उपलब्ध है, जिसमें नोटिस देने के मुद्दे का उल्लेख है। किंतु उसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि परिणाम दो महीने में या कुछ दिनों में दिए जाने चाहिए। साफ है कि विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर अदालत के आदेश को लेकर मीडिया में आईं खबरों से खुद को जोड़ नहीं रहे हैं। न ही उन्हें सही मान रहे हैं।
संभव है कि यह बात कहीं न कहीं सभी पक्षों में समझ के फेर की हो। मगर डेढ़ साल की अवधि बीत जाने के बाद भी विधायकों की अयोग्यता पर कोई निर्णय नहीं आने से सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय एकनाथ शिंदे सरकार की वैधता पर कोई प्रश्न न लगाकर टूटी हुई शिवसेना के दल के पक्ष में निर्णय सुना चुका है।
फिर भी सरकार में शामिल विधायकों के बारे में सवाल तब भी उठा था और अब भी बरकरार है। वहीं चुनाव आयोग असली शिवसेना और चुनाव चिह्न का फैसला कर चुका है, लेकिन प्रक्रियागत रूप से विधायकों की सदस्यता वैध है या नहीं, इस पर प्रश्न उठ ही रहा है।
विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष दो प्रतिद्वंद्वी गुटों की 34 अयोग्यता याचिकाएं लंबित हैं, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के 20 (कुल 40 में से), और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के सभी 16 विधायक शामिल हैं।
ये सभी विधायक विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही का सामना कर रहे हैं। एक तरफ अदालत के माध्यम से जहां अध्यक्ष पर निर्णय लेने का दबाव है, वहीं दूसरी तरफ विपरीत निर्णय लेने की स्थिति में सत्तारूढ़ दल की चिंताएं परेशान कर रही हैं। यह तय है कि समूचा मामला इतना सीधा नहीं है कि फटाफट निर्णय लेकर रफा-दफा कर दिया जाए।
इससे शिंदे सरकार का भविष्य और लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव की रणनीति तक अटकी हुई है। यही वजह है कि फैसला आने में जितनी देरी होगी, उतना ही शिंदे सरकार को फायदा होगा। मगर इससे विपक्ष को सरकार के खिलाफ प्रचार करने का अदृश्य औजार मिला हुआ है। जिसकी परेशानी लगातार उसे उठानी पड़ेगी। इसमें इधर खाई-उधर कुएं की स्थिति है। किंतु बीच में भी कितने दिन रहा जा सकता है, इस बारे में भी राज्य सरकार और विधानसभा अध्यक्ष को विचार करना चाहिए। आखिर एक दिन तो निर्णय लेना ही होगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। फिर देर किस बात की?