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एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: स्वास्थ्य, खुशी और समरसता का पोषक है योग

By एम वेंकैया नायडू | Updated: June 21, 2019 05:45 IST

भगवद्गीता में दो प्रमुख बातें कही गई हैं : ‘‘योगस्थ: कुरु कर्माणि’’ अर्थात योग में स्थित होकर अपना कर्म (कर्तव्य) करें और ‘‘समत्वम् योग उच्यते’’ अर्थात समत्व ही योग का मूल है.

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दुनिया के 170 से अधिक देशों में 21 जून 2019 को पांचवां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है. यह प्राचीन भारत की अकूत संपदा और दुनिया की अमूर्त विरासत का अनूठा हिस्सा है. दुनिया भर में विभिन्न रूपों में अपनाया जाने वाला और तेजी से लोकप्रिय होने वाला योग वस्तुत: एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसका उद्गम भारत में संभवत: 500 ईसापूर्व हुआ था. यह एक प्रभावी व्यायाम है, लेकिन इससे कहीं बहुत अधिक भी है. स्वस्थ रहने का यह एक समग्र दृष्टिकोण है. यह शरीर और दिमाग के बीच महत्वपूर्ण संबंध को रेखांकित करता है. इसका लक्ष्य संतुलन, समभाव और शांति हासिल करना होता है. यह भारत के वैश्विक दृष्टिकोण का शानदार प्रतिमान है.

‘योग’ शब्द का उद्गम संस्कृत से हुआ है और इसका अर्थ है जोड़ना.  भारतीय मनीषियों ने मानवीय प्रगति की ओर बढ़ने वाले महत्वपूर्ण चरणों में स्वास्थ्य पर सर्वप्रथम जोर दिया है. ‘‘शरीरमाद्यम् खलु धर्मसाधनम्’’ अर्थात शरीर ही सभी धर्मो (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है. यह रेखांकित करता है कि योग में स्वास्थ्य व भलाई के प्रति समग्र दृष्टिकोण है और योग का अभ्यास करने से होने वाले लाभों के बारे में जानकारी का व्यापक प्रचार-प्रसार दुनिया की आबादी के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगा. इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने अपने प्रस्ताव 69/131 के अंतर्गत 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया. 

भगवद्गीता ने क्या कहा 

भगवद्गीता में दो प्रमुख बातें कही गई हैं : ‘‘योगस्थ: कुरु कर्माणि’’ अर्थात योग में स्थित होकर अपना कर्म (कर्तव्य) करें और ‘‘समत्वम् योग उच्यते’’ अर्थात समत्व ही योग का मूल है. योग जीवन का एक दृष्टिकोण है जो शारीरिक और मानसिक संतुलन और पर्यावरण की सुरक्षा सहित विभिन्न तत्वों के सामंजस्य की दिशा में काम करता है. उचित रूप से ही वर्ष 2019 के अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम ‘पर्यावरण के लिए योग’है.  

हार्वर्ड का शोध 

जैसा कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है, योग स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय सकारात्मक प्रभाव डालता है. यह गठिया के दर्द, दिल की बीमारियों के जोखिम को कम कर सकता है, सिरदर्द से छुटकारा दिला सकता है. एक अध्ययन से पता चला है कि योग से रक्त वाहिकाओं के लचीलेपन में 69 प्रतिशत वृद्धि हुई और यहां तक कि बिना दवाओं के ही धमनी की रुकावटों को हटाने में भी मदद मिली. योग हमारे शरीर में कई तरीकों से असर डालता है, हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने पाया कि यह प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है और मधुमेह की दवाओं की जरूरत 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है. इन शोधकर्ताओं के अनुसार योग एक व्यक्ति के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए इतना कुछ करता है कि योग करने वालों को अन्य लोगों की तुलना में 43 प्रतिशत कम चिकित्सा सेवाओं का उपयोग करना पड़ता है.

यह वास्तव में संतोष का विषय है कि भारत दुनिया भर में लाखों लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान दे रहा है. प्रधानमंत्री मोदीजी इस विशाल साझा ज्ञान वाले अभ्यास की अगुवाई कर रहे हैं. यह योग की सार्वभौमिक अपील का प्रमाण है कि मोदीजी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र में इस संबंध में पेश किए गए प्रस्ताव को रिकार्ड 177 देशों ने समर्थन दिया था.

उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद मैंने विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के लिए विदेशी दौरे किए हैं. मुङो यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि योग पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया है. मैंने देखा कि अमेरिका सहित कुछ देशों ने बच्चों के लिए स्कूल पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में योग सिखाने की शुरुआत की है. पेरु सहित कई देशों में मैंने योग केंद्र देखे हैं. कोस्टारिका में योग और ध्यान से संबंधित सभी गतिविधियों और पहलों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. 

योग सिर्फ स्वास्थ्य और भलाई के बारे में नहीं है. यह ध्यान केंद्रित करने और उत्कृष्टता के बारे में भी है. जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, ‘‘योग: कर्मसु कौशलम्’’ अर्थात उत्कृष्ट तरीके से कर्म करना ही योग है. यह उत्कृष्टता ध्यान के स्वाभाविक परिणाम के रूप में सामने आती है जो कि यम, नियम और धारणा के साथ  योग के आठ अंगों में शामिल है, जिसे पतंजलि ने योग के रूप में परिभाषित किया है. इसलिए योग सोचने का तरीका है, व्यवहार करने का तरीका है, सीखने का तरीका है व समस्याएं सुलझाने का तरीका है. 

योग संगीत के सामान है 

योग गुरु स्वर्गीय बी.के.एस. आयंगर ने कहा था, ‘‘योग संगीत के समान है. शरीर की लय, मन का माधुर्य और आत्मा का सामंजस्य जीवन की सिम्फनी बनाता है.’’ यह सिंफनी भौगोलिक, राष्ट्रीय, भाषाई और धार्मिक सीमाओं के परे आज लाखों घरों में गूंज रही है. मैं आशा करता हूं कि दुनिया के लोग इन धुनों से लाभान्वित होंगे और व्याधियों से मुक्ति पाएंगे. पांचवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर, मुङो देश और दुनिया की जनता के अभिवादन के लिए प्राचीन भारतीय ऋषियों की इस कालातीत प्रार्थना से बेहतर और कोई शब्द नहीं मिल सकते : ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्.’’अर्थात सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दु:ख का भागी न बनना पड़े.  

टॅग्स :एम. वेकैंया नायडूयोग
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