ब्लॉगः बाढ़, तूफान, सूखा और कोविड से दुनिया बेहाल, प्रदूषण रोकने के लिए सौर ऊर्जा ही सबसे बेहतर

By भरत झुनझुनवाला | Published: June 19, 2021 04:36 PM2021-06-19T16:36:16+5:302021-06-19T16:37:30+5:30

थर्मल पॉवर को बनाने के लिए बड़े क्षेत्रों में जंगलों को काटकर कोयले का खनन किया जा रहा है. इससे वनस्पति और पशु प्रभावित हो रहे हैं.

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बिजली का उत्पादन कर सकें और पर्यावरण के दुष्प्रभावों को भी सीमित कर सकें.

Highlights जलविद्युत के उत्पादन के लिए नदियों को अवरोधित किया जा रहा है.मछलियों की जीविका दूभर हो रही है.मनुष्य को बिजली की आवश्यकता भी है.

आज संपूर्ण विश्व बाढ़, तूफान, सूखा और कोविड जैसी समस्याओं से ग्रसित है. ये समस्याएं कहीं न कहीं मनुष्य द्वारा पर्यावरण में अत्यधिक दखल करने के कारण उत्पन्न हुई दिखती हैं.

इस दखल का एक प्रमुख कारण बिजली का उत्पादन है. थर्मल पॉवर को बनाने के लिए बड़े क्षेत्रों में जंगलों को काटकर कोयले का खनन किया जा रहा है. इससे वनस्पति और पशु प्रभावित हो रहे हैं. जलविद्युत के उत्पादन के लिए नदियों को अवरोधित किया जा रहा है और मछलियों की जीविका दूभर हो रही है. लेकिन मनुष्य को बिजली की आवश्यकता भी है.

कोयला भारी मात्रा में आयात करना पड़ रहा

अतएव ऐसा रास्ता निकालना है कि हम बिजली का उत्पादन कर सकें और पर्यावरण के दुष्प्रभावों को भी सीमित कर सकें. अपने देश में बिजली उत्पादन के तीन प्रमुख स्रोत हैं- पहला है थर्मल यानी कोयले से निर्मित बिजली. इसमें प्रमुख समस्या यह है कि अपने देश में कोयला सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है. हमें दूसरे देशों से कोयला भारी मात्रा में आयात करना पड़ रहा है.

यदि कोयला आयात करके हम अपने जंगलों को बचा भी लें तो आस्ट्रेलिया जैसे निर्यातक देशों में जंगलों के कटने और कोयले के खनन से जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होंगे, वे हमें भी प्रभावित करेंगे ही. कोयले को जलाने में कार्बन का उत्सर्जन भारी मात्रा में होता है जिसके कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है और तूफान, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही हैं.

कार्बन उत्सर्जन कम होता

बिजली उत्पादन का दूसरा स्रोत जल विद्युत अथवा हाइड्रो पॉवर है. चूंकि इससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है इसलिए इस विधि को एक साफ-सुथरी तकनीक कहा जाता है. थर्मल पॉवर में एक यूनिट बिजली बनाने में लगभग 900 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है जबकि जलविद्युत परियोजनाओं को स्थापित करने में जो सीमेंट और लोहा आदि का उपयोग होता है, उसको बनाने में लगभग 300 ग्राम कार्बन प्रति यूनिट का उत्सर्जन होता है. जलविद्युत में कार्बन उत्सर्जन में शुद्ध कमी 600 ग्राम प्रति यूनिट आती है जो कि महत्वपूर्ण है.

लेकिन जलविद्युत बनाने में दूसरे तमाम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पड़ते हैं. जैसे सुरंग को बनाने में विस्फोट किए जाते हैं जिससे जलस्रोत सूखते हैं और भूस्खलन होता है. बराज बनाने से मछलियों का आवागमन बाधित होता है और जलीय जैव विविधिता नष्ट होती है. बड़े बांधों में तलछट (सेडीमेंट) जमा हो जाती है और तलछट के न पहुंचने के कारण गंगासागर जैसे हमारे तटीय क्षेत्र समुद्र की गोद में समाने की दिशा में हैं. इस प्रकार थर्मल और हाइड्रो दोनों ही स्रोतों की पर्यावरणीय समस्या है.

बिजली का दाम लगभग तीन रुपए प्रति यूनिट आता

सौर ऊर्जा को आगे बढ़ाने से इन दोनों के बीच रास्ता निकल सकता है. भारत सरकार ने इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं. अपने देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. विशेष यह कि सौर ऊर्जा से उत्पादित बिजली का दाम लगभग तीन रुपए प्रति यूनिट आता है जबकि थर्मल बिजली का छह रुपए और जलविद्युत का आठ रुपए प्रति यूनिट.

इसलिए सौर ऊर्जा हमारे लिए हर तरह से उपयुक्त है. लेकिन सौर ऊर्जा में समस्या यह है कि यह केवल दिन के समय में बनती है. ऐसे में हम सौर ऊर्जा से अपनी सुबह, शाम और रात की बिजली की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं. इसका उत्तम उपाय है कि ‘स्टैंड अलोन’ यानी ‘स्वतंत्र’ पंप स्टोरेज विद्युत परियोजनाएं बनाई जाएं. इन परियोजनाओं में दो बड़े तालाब बनाए जाते हैं.

एक तालाब ऊंचाई पर और दूसरा नीचे बनाया जाता है. दिन के समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तब नीचे के तालाब से पानी को ऊपर के तालाब में पंप करके रख लिया जाता है. इसके बाद  रात में जब बिजली की जरूरत होती है तब ऊपर से पानी को छोड़ कर बिजली बनाते हुए नीचे के तालाब में लाया जाता है. अगले दिन उस पानी को पुन: ऊपर पंप कर दिया जाता है.

पंप स्टोरेज में परिवर्तित कर दिया गया

इस प्रकार दिन की सौर ऊर्जा को सुबह-शाम और रात की बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है. विद्यमान जलविद्युत परियोजनाओं को ही पंप स्टोरेज में तब्दील कर दिया जा सकता है. जैसे टिहरी बांध के नीचे कोटेश्वर जलविद्युत परियोजनाओं को पंप स्टोरेज में परिवर्तित कर दिया गया है.

दिन के समय इस परियोजना से पानी को नीचे से ऊपर टिहरी झील में वापस डाला जाता है और रात के समय उसी टिहरी झील से पानी को निकाल कर पुन: बिजली बनाई जाती है.  लेकिन इसमें समस्या यह है कि टिहरी और कोटेश्वर जल विद्युत परियोजनाओं से जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होते हैं, वे तो बरकरार हैं. इस समस्या का उत्तम विकल्प यह है कि हम स्वतंत्र पंप स्टोरेज परियोजना बनाएं.

जंगल और नदियां देश की धरोहर

किसी भी पहाड़ के ऊपर और नीचे उपयुक्त स्थान देख कर दो तालाब बनाए जा सकते हैं. ऐसा करने से नदी के बहाव में व्यवधान पैदा नहीं होगा. ऐसी स्वतंत्र पंप स्टोरेज परियोजना से दिन की बिजली को रात की बिजली में परिवर्तित करने में मेरे अनुमान से तीन रुपए प्रति यूनिट का खर्च आएगा.

अत: यदि हम सौर ऊर्जा के साथ स्वतंत्र पंप स्टोरेज परियोजनाएं लगाएं तो हम छह रुपए में रात की बिजली उपलब्ध करा सकते हैं जो कि थर्मल बिजली के मूल्य के बराबर होगा. इसलिए हमें थर्मल और जल विद्युत के मोह को त्यागकर सौर ऊर्जा को अपनाना चाहिए. जंगल और नदियां देश की धरोहर और प्रकृति एवं पर्यावरण की संवाहक हैं. इन्हें बचाते हुए बिजली के अन्य विकल्पों को अपनाना चाहिए. 

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