नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: आधी आबादी को मिलनी चाहिए पूरी आजादी
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: March 8, 2019 02:15 PM2019-03-08T14:15:22+5:302019-03-08T14:15:22+5:30
जब-जब नारी सशक्तिकरण की बात चलती है, हम गिनी-चुनी सशक्त नारियों के नाम गिना कर खुश हो जाते हैं कि मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, किरण बेदी, लता मंगेशकर, पीटी उषा आदि ने इतिहास रचकर नारी जाति का नाम रोशन कर दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक मजदूर आंदोलन से जुड़ा है। इसका बीजारोपण सन 1908 में हुआ था, जब 15 हजार औरतों ने न्यूयॉर्क शहर में मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटों की मांग की थी। इसके साथ ही बेहतर वेतन देने की और मतदान करने का अधिकार देने की भी मांग थी। एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है, जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के प्रयास किए।
प्राचीन काल में कन्या का लालन-पालन पुत्र के समान ही होता था। रामायण में लिखा है - जब राजा जनक ने सीता को गोद में उठाया था तो अनुभव किया था कि उनके जैसा सुखी व्यक्ति संसार में दूसरा नहीं। सतयुग व त्रेतायुग में उच्च स्थान प्राप्त नारी वैदिक काल में भी सम्मानित थी। परंतु विदेशी शासन अपनी अलग रूढ़ियां लेकर आया और भारतीय स्त्रियों के बुरे दिन आ गए। कई समाज सुधारकों के अथक प्रयास से वह इस शोषित स्थिति से उबरी। आज नारी को संविधान के सारे अधिकार प्राप्त हैं, परंतु मानसिकता न बदलने के कारण अधिकांश स्थानों पर उसे कानूनी अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रताड़ना, लिंगभेद आदि आज भी उसकी पराधीनता की कहानी कह रहे हैं।
जब-जब नारी सशक्तिकरण की बात चलती है, हम गिनी-चुनी सशक्त नारियों के नाम गिना कर खुश हो जाते हैं कि मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, किरण बेदी, लता मंगेशकर, पीटी उषा आदि ने इतिहास रचकर नारी जाति का नाम रोशन कर दिया है। सवाल है कि इनके अलावा भारत की आधी आबादी किस परिस्थिति में जी रही है? नारी पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़, घरेलू हिंसा के कारण तन और मन से शक्तिहीन हो रही है।
आज भी बहुत से मंदिर हैं जहां लिंगभेद के कारण नारियों का जाना वजिर्त है। बहुत से महात्मा नारी का मुख देखना नहीं चाहते। क्याइन सब प्रतिबंधों के लिए नारी दोषी है या हमारी विकृत सोच दोषी है? संस्कृत में एक श्लोक है जिसके अनुसार जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में तो उसका अपमान, शोषण, उपेक्षा अधिक हो रही है, चाहे वह मां हो, बेटी, बहू, बहन कोई भी हो।
सही मायने में महिला दिवस तभी सार्थक होगा, जब महिलाओं को मानसिक व शारीरिक रूप से आजादी मिलेगी। जहां उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहां कन्या भ्रूण हत्या नहीं होगी, जहां बलात्कार नहीं होगा, उसे बेचा नहीं जाएगा। समाज के महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नजरिये को महत्वपूर्ण समझा जाएगा। जहां वह सिर उठाकर अपने महिला होने पर गर्व कर सकेगी।