विवेक शुक्ला का ब्लॉग: आखिर क्यों उदास थे बापू अपने अंतिम जन्मदिवस पर?

By विवेक शुक्ला | Published: October 2, 2023 09:53 AM2023-10-02T09:53:50+5:302023-10-02T09:55:09+5:30

गांधीजी के लिए जन्मदिन सामान्य दिनों की तरह होता था, वह उस दिन भी अपने काम में लगे रहते थे. पर 2 अक्तूबर, 1947 को वे बहुत निराश और असहाय थे. देश के बंटवारे से वे बहुत निराश थे. मृत्यु उनके मन पर बहुत हावी थी. 

Why was Mahatma Gandhi sad on his last birthday | विवेक शुक्ला का ब्लॉग: आखिर क्यों उदास थे बापू अपने अंतिम जन्मदिवस पर?

फाइल फोटो

Highlightsवे 9 सितंबर, 1947 को कोलकाता से दिल्ली आए थे.दिल्ली में दंगे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. महात्मा गांधी 2 अक्तूबर 1947 को अपने अंतिम जन्मदिन पर राजधानी के तीस जनवरी मार्ग पर स्थित बिड़ला हाउस में थे.

महात्मा गांधी 2 अक्तूबर 1947 को अपने अंतिम जन्मदिन पर राजधानी के तीस जनवरी मार्ग पर स्थित बिड़ला हाउस में थे. उन्होंने वह दिन उपवास, प्रार्थना और अपने चरखे पर अधिक समय बिताकर मनाया. दरअसल गांधीजी के लिए जन्मदिन सामान्य दिनों की तरह होता था, वह उस दिन भी अपने काम में लगे रहते थे. पर 2 अक्तूबर, 1947 को वे बहुत निराश और असहाय थे. देश के बंटवारे से वे बहुत निराश थे. मृत्यु उनके मन पर बहुत हावी थी. 

उनकी जीने की इच्छा समाप्त हो गई थी. इस तरह के माहौल में गांधीजी अपना जन्मदिन मना रहे थे. उन्हें लोग शुभकामनाएं देने आ रहे थे. देश की आजादी के बाद यह उनका पहला जन्मदिन था. गांधीजी से उस दिन मिलने के लिए आने वालों में लॉर्ड माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन भी थे. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गृह मंत्री सरदार पटेल, मौलाना आजाद वगैरह भी उनसे मिलने आए थे. 

उनके साथ छाया की तरह रहने वाले ब्रज कृष्ण चांदीवाला, मनु बहन और उनकी निजी चिकित्सक डॉ. सुशीला नैयर भी बिड़ला हाउस में ही थे. बापू के कमरे को उनकी सहयोगी मीराबेन ने क्राॅस और "हे राम" तथा "ओम" शब्दों को लिखकर सजा दिया था. राष्ट्रपिता से मिलने के लिए पूरे दिन मित्रों और शुभचिंतकों का तांता लगा रहा, जिनमें अन्य देशों के लोग भी शामिल थे.

 उनमें से कई लोगों ने अपने-अपने देशों के नेताओं की ओर से शुभकामनाएं दीं. "जब मेरे चारों ओर इतनी भीषण आग जल रही हो तो मैं अपना जन्मदिन नहीं मनाना चाहता, इसलिए या तो इस आग को बुझा दो, या प्रार्थना करो कि प्रभु मुझे अपने पास बुला लें," उनका कहना था. उन्होंने आगे कहा, "जब भारत में इस तरह के खराब हालात चल रहे हों तो मुझे एक और जन्मदिन मनाने का विचार पसंद नहीं है." 

वे 9 सितंबर, 1947 को कोलकाता से दिल्ली आए थे. दिल्ली में दंगे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. पहाड़गंज, किशनगंज, करोल बाग, दरियागंज वगैरह में दंगे हो रहे थे, इंसानियत मर रही थी. बहरहाल, गांधीजी से 2 अक्तूबर 1947 को सैकड़ों लोग मिलने आते रहे. गांधीजी ने उस दिन के बारे में लिखा भी है "ये बधाइयां हैं या कुछ और. 

एक जमाना था, जब सब मेरी कही हर बात को मानते थे पर आज हालत यह है कि मेरी बात कोई सुनता तक नहीं है. मैंने अब ज्यादा जीने की इच्छा छोड़ दी है. मैंने कभी कहा था कि मैं सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही." गांधीजी ने सरदार पटेल से खुलकर बात की और उनसे पूछा, "मैंने ऐसा क्या अपराध किया है कि मुझे यह दुखद दिन देखने के लिए जीवित रहना पड़ रहा है?" 

सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल ने कहा, "हम वहां उत्साह के साथ गए थे; लेकिन हम भारी मन से लौट आये."

Web Title: Why was Mahatma Gandhi sad on his last birthday

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