मोदी सरकार में तीन तलाक कानून के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों?

By पवन के वर्मा | Published: July 25, 2019 12:26 PM2019-07-25T12:26:54+5:302019-07-25T12:26:54+5:30

लोकसभा में जब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 पेश किया तो इस पर विवाद देखने को मिला कि कानून किस प्रकार का होना चाहिए.

Why Modi Government in hasty to make law on triple talaq | मोदी सरकार में तीन तलाक कानून के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों?

मोदी सरकार में तीन तलाक कानून के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों?

ट्रिपल तलाक की प्रथा, जिसमें किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तत्काल तलाक दे दिया जाता है, को खत्म किया ही जाना चाहिए और कई मुस्लिम देशों में इसे समाप्त किया भी जा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगाकर बिल्कुल सही किया है. अब कानूनन ट्रिपल तलाक शून्य और अप्रभावी है.

सुप्रीम कोर्ट ने वही किया जो उसे करने की जरूरत थी और संसद को उसका अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार है. लेकिन लोकसभा में जब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 पेश किया तो इस पर विवाद देखने को मिला कि कानून किस प्रकार का होना चाहिए. विधेयक पेश किए जाते समय भी विपक्षी सदस्यों द्वारा आपत्ति जताई गई, लेकिन सत्तारूढ़ दल द्वारा प्राप्त भारी बहुमत को देखते हुए इस विधेयक को पेश किया गया, हालांकि इसके लिए भी मतदान कराना पड़ा.

नए विधेयक में ऐसे प्रावधान हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. अनुच्छेद तीन में ठीक ही कहा गया है कि  ‘एक मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को बोलकर, लिखकर, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से या किसी भी तरह से ट्रिपल तलाक देना अप्रभावी और गैरकानूनी होगा.’ यह अनुच्छेद पूरी तरह से माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप है. लेकिन अगला खंड, अनुच्छेद चार गंभीर रूप से बहस का विषय है. इसमें कहा गया है कि ‘कोई भी मुस्लिम पति, जो अपनी पत्नी को धारा तीन में उल्लिखित तरीकों से ट्रिपल तलाक देता है, को तीन साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.’

इसके अलावा, विधेयक के अनुच्छेद सात (ए) के अनुसार अपराध संज्ञेय होगा, जिसका मतलब है कि एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट के भी आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है. बिना वारंट के यह गिरफ्तारी न केवल विवाहिता की शिकायत पर की जा सकती है, बल्कि उसके किसी रक्त संबंधी या रिश्तेदार की शिकायत पर भी की जा सकती है. न सिर्फ पीड़िता बल्कि उसके विस्तारित परिवार द्वारा की जाने वाली शिकायत पर भी कार्रवाई का अधिकार होने से निश्चित रूप से इसका दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ेगी. यह विशेष रूप से  प्रासंगिक है, क्योंकि अनुच्छेद सात (सी) में कहा गया है कि इस ऑर्डिनेंस के तहत दंडनीय किसी भी व्यक्ति को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक कि मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि ऐसे व्यक्ति को जमानत दिए जाने के लिए उचित आधार हैं. इस प्रकार इस श्रेणी के अपराध में अभियुक्त के लिए जमानत के अधिकार को कठोरतापूर्वक सशर्त बनाया गया है.

स्पष्ट है कि ट्रिपल तलाक को तीन वर्ष तक की सजा और जुर्माने के साथ दंडनीय अपराध बनाने की मंशा है. स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि क्या यह जरूरी है, और क्या बहुत भेदभावपूर्ण नहीं है? पहली बात तो यह कि इसमें व्यावहारिक दिक्कतें हैं. प्रस्तावित विधेयक के अनुच्छेद पांच में ठीक ही कहा गया है कि ‘जिस महिला को तलाक दिया जाएगा वह अपने और अपने आश्रित बच्चे के लिए पति से समुचित गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी, जिसका निर्धारण मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा.’ लेकिन यदि अभियुक्त पति जेल में रहेगा और पैसा कमाने में असमर्थ होगा तो गुजारा भत्ता कौन देगा? दूसरी बात, इसके पर्याप्त कारण नहीं बताए गए हैं कि नागरिक कानूनों के मौजूदा प्रावधानों के तहत इस अपराध को दंडनीय क्यों नहीं माना जा सकता. याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक पर पहले ही रोक लगा दी है. फिर, यह अपराध केवल मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित नहीं है. यह सभी धार्मिक समुदायों में होता है. तब क्यों सिर्फ मुस्लिम पतियों को ही अन्य धार्मिक समुदायों के मुकाबले कठोर सजा मिले? 

इसलिए बुनियादी सवाल यह है कि ऐसे समय में, जब पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की जरूरत है, ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है कि सुधार स्थायी, न्यायसंगत और व्यवहार्य हो? इस संदर्भ में, नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया को देखना समीचीन होगा, जो उन्होंने  विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बी.एस. चौहान द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर भेजी गई प्रश्नावली पर बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) के अध्यक्ष के रूप में दी है. 

अपने जवाब में नीतीश कुमार ने लिखा : ‘सरकार को यूसीसी लाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन इसके स्थायित्व की दृष्टि से, इस पर व्यापक आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए, न कि इसे ऊपर से थोपा जाना चाहिए. यह हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि हम एक ऐसा देश हैं जहां विभिन्न धर्मो के लोग और जातीय समूह हैं जो कानूनों के संबंध में एक नाजुक संतुलन पर आधारित है.

इसलिए सभी पक्षों से ठोस परामर्श किए बिना यूनिफॉर्म सिविल कोड को ऊपर से थोपने का कोई भी प्रयास विभिन्न धार्मिक समूहों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों में स्वतंत्रता या धर्म की संवैधानिक गारंटी को लेकर सामाजिक तनाव पैदा कर सकता है.’ इन पर्यवेक्षणों के आधार पर, भाजपा से पूछा जाना चाहिए कि वह आवश्यक विचार-विमर्श के बिना, विधेयक लाने की जल्दबाजी क्यों कर रही है. प्रस्तावित कानून को संसद की प्रवर समिति के पास भेजने में भी कोई बुराई नहीं है, ताकि इसकी सामग्री और मंशा को पूरी तरह से समझा जा सके.

Web Title: Why Modi Government in hasty to make law on triple talaq

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