ब्लॉग: पीएम नरेंद्र मोदी आखिरी अमित शाह पर क्यों करते हैं इतना भरोसा? पार्टी से लेकर सरकार तक में दिख रही छाप

By हरीश गुप्ता | Published: September 22, 2022 09:19 AM2022-09-22T09:19:57+5:302022-09-22T09:23:40+5:30

सूत्रों के अनुसार अधिकांश केंद्रीय मंत्री पीएमओ का दरवाजा खटखटाने से पहले अमित शाह से बात करते हैं. यही नहीं, जेपी नड्डा के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद भी संगठन पर अमित शाह की पकड़ बनी रही.

Why does PM Narendra Modi trust Amit Shah so much | ब्लॉग: पीएम नरेंद्र मोदी आखिरी अमित शाह पर क्यों करते हैं इतना भरोसा? पार्टी से लेकर सरकार तक में दिख रही छाप

पीएम मोदी-अमित शाह की जुगलबंदी (फाइल फोटो)

मोदी सरकार में गृह मंत्री के रूप में तीन साल से अधिक समय से अमित शाह का महत्व बेतहाशा बढ़ा है. उनकी छाप न केवल सरकार में बल्कि पार्टी में भी हर जगह देखी जा सकती है. वे पहले से ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए राज्य-दर-राज्य यात्रा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में अमित शाह की ओर तेजी से झुक रहे हैं. सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि 2019 में अरुण जेटली की मृत्यु के बाद, पीएम के पास अमित शाह के अलावा कोई विश्वासपात्र नहीं बचा है. 

हालांकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सरकार में पदानुक्रम में दूसरे नंबर पर हैं लेकिन सभी व्यावहारिक कामों में अमित शाह दूसरे नंबर पर हैं. राजनाथ सिंह लो प्रोफाइल बनाए रखते हैं, किसी भी मुद्दे पर अपनी राय देने से बचते हैं और चाहते हैं कि अमित शाह अपने मन की बात कहें. यहां तक कि जब प्रधानमंत्री उन्हें कुछ समस्याएं बताते हैं, तब भी राजनाथ सिंह अमित शाह से सलाह लेते हैं. 

अंतर-मंत्रालयी और केंद्र-राज्य के मुद्दों को सुलझाने के लिए शाह पर प्रधानमंत्री बहुत अधिक निर्भर हैं. अधिकांश केंद्रीय मंत्री पीएमओ का दरवाजा खटखटाने से पहले अमित शाह से बात करते हैं. पता चला है कि मोदी और शाह दिन भर में एक दर्जन से अधिक बार आरएएक्स प्रणाली पर एक-दूसरे से बात करते हैं. आरएएक्स केंद्रीय मंत्रियों और सचिव स्तर के अधिकारियों के लिए एक सुरक्षित वायर्ड टेलीफोन सेवा है. 

इसमें कोई शक नहीं कि मोदी-अमित शाह की जुगलबंदी गुजरात के दिनों से है. जब मोदी 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली आए, तो अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाया गया और छह साल (2014-2020) तक इस पद पर रहे. जेपी नड्डा के सत्ता में आने के बाद भी संगठन पर उनकी पकड़ बनी रही. नड्डा लो प्रोफाइल में रहते हैं और छोटे-छोटे मामलों में भी अमित शाह से सलाह लेते हैं. 

पार्टी संगठन में हाल के कुछ बदलावों में स्पष्ट रूप से अमित शाह की छाप है. हालांकि, कुछ ऐसे उदाहरण हैं जहां पीएम ने अपने फैसले खुद लिए जो अमित शाह को पसंद नहीं थे. लेकिन अमित शाह लगातार केंद्रबिंदु बने हुए हैं.

मुकुल रोहतगी का बढ़ता ग्राफ

मुकुल रोहतगी का मामला एक दुर्लभ मामला है और स्पष्ट रूप से उनके महत्व को दर्शाता है. रोहतगी ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद 2017 में भारत के अटॉर्नी जनरल का पद छोड़ दिया था. रोहतगी ने कोई कारण नहीं बताया कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया और न ही सरकार ने बताया कि उन्हें क्यों जाने दिया गया. रोहतगी लगभग 100 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की कमाई के साथ अपनी ख्यातिलब्ध कानूनी प्रैक्टिस में लौट आए. 

रोहतगी के उत्तराधिकारी 86 वर्षीय के.के.वेणुगोपाल पांच साल तक बने रहे. लेकिन सरकार को उनका कोई उपयुक्त उत्तराधिकारी नहीं मिला. तुषार मेहता, सॉलिसिटर-जनरल को एजी के रूप में पदोन्नत करने के मोदी इच्छुक नहीं थे. इसी दौरान विज्ञान भवन में अरुण जेटली मेमोरियल लेक्चर के दौरान पीएम मोदी और मुकुल रोहतगी की मुलाकात हो गई. मोदी की तत्काल टिप्पणी थी, ‘अरे कहां रहते हो आजकल!’ मामला विज्ञान भवन पर ही खत्म नहीं हुआ. 

जल्द ही रोहतगी को फोन आया और वे प्रधानमंत्री से मिलने गए. दिलचस्प यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले से ही पीएम के साथ वहां बैठे थे. उनके बीच क्या बातचीत हुई, इसकी जानकारी नहीं है. लेकिन रोहतगी को इस महत्वपूर्ण मोड़ पर राष्ट्र की सेवा करने के लिए कहा गया. बाकी इतिहास है. एजी के रूप में रोहतगी की वापसी यह स्थापित करती है कि मोदी अपने फैसले खुद लेते हैं और अमित शाह की उपस्थिति से पता चलता है कि वे सरकार की हर निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हैं. 

रोहतगी एक उत्कृष्ट वकील हैं और बार और बेंच के साथ उनके सौहार्द्रपूर्ण तथा व्यक्तिगत संबंध हैं. मोदी चाहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक सबकुछ सुचारु रूप से चले.

दुविधा में जी-23

पार्टी में आंतरिक चुनाव की मांग को लेकर 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं (जी -23) का समूह दुविधा में है. जी-23 के दो प्रमुख सदस्यों- भूपिंदर सिंह हुड्डा और मुकुल वासनिक ने पार्टी आलाकमान के साथ समझौता कर लिया है. प्रख्यात वकील कपिल सिब्बल ने पार्टी छोड़ दी और समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय के रूप में राज्यसभा के लिए चुने गए. 

एक अन्य प्रमुख नेता गुलाम नबी आजाद ने आखिरकार जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी बनाने के लिए कांग्रेस छोड़ दी. योगानंद शास्त्री ने कांग्रेस छोड़ दी और दिल्ली में राकांपा में शामिल हो गए. कांग्रेस के कुछ नेता भाजपा के संपर्क में हैं. आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चव्हाण, मनीष तिवारी जैसे अन्य लोग अपने अगले कदम को लेकर असमंजस में हैं. 

शशि थरूर ने चार अन्य लोगों के साथ मांग की कि उन्हें मतदाता सूची दी जाए जिसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया. लेकिन चार सह-हस्ताक्षरकर्ताओं को आश्चर्य में डालते हुए, शशि थरूर ने राहुल गांधी की पदयात्रा में सक्रिय रूप से भाग लिया और मैदान में उतरने के लिए सोनिया गांधी से आशीर्वाद मांगा. लेकिन पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि गांधी परिवार की ओर से कोई ‘आधिकारिक’ उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेगा. 

यह भी अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या शशि थरूर असंतुष्ट वर्ग की ओर से आधिकारिक उम्मीदवार होंगे. जी-23 के बहुतेरे समर्थक असमंजस में हैं. उधर सचिन पायलट खेमा उम्मीदें लगाए हुए है कि चीजें उसके मनमुताबिक होंगी!

Web Title: Why does PM Narendra Modi trust Amit Shah so much

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