बिरसा मुंडा क्यों पूजे जाते हैं आदिवासियों के भगवान की तरह और क्यों उनके काम को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा?
By गिरीश पंकज | Published: November 15, 2022 12:30 PM2022-11-15T12:30:34+5:302022-11-15T18:11:10+5:30
बिरसा मुंडा प्रगतिशील चिंतन वाले सुधारवादी आदिवासी नेता थे. उन्होंने अपने समाज में व्याप्त अंधविश्वास के विरुद्ध जागरण उस समय शुरू किया, जब ऐसे काम बेहद कठिन थे. यही कारण था कि उनके सुधारवादी कदम देख अंग्रेज घबरा गए थे.

आदिवासियों को सबसे पहले बिरसा मुंडा ने किया था जागरूक
15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ है. भारत सरकार ने महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के जन्मदिन (15 नवंबर, 1875) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की मंजूरी दी है. बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान की तरह पूजे जाते हैं. उनका पूरा जीवन आदिवासी बंधुओं के उत्थान के लिए समर्पित था. अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन के लिए भी उन्होंने आदिवासी बंधुओं को प्रेरित किया. अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध निरंतर आंदोलन किए. गिरफ्तार भी हुए और कहा जा सकता है कि एक साजिश की तहत उनकी जान भी ले ली गई.
बिरसा मुंडा प्रगतिशील चिंतन से संपृक्त सुधारवादी आदिवासी नेता थे. उन्होंने अपने समाज में व्याप्त अंधविश्वास के विरुद्ध जागरण शुरू किया. उन्होंने अपने आंदोलन के कुछ सुधारवादी सूत्र विकसित किए थे. उन्होंने लोगों को समझाया कि जीव हत्या ठीक बात नहीं. बलि देना गलत है. सभी जीवों से हम प्रेम करें. उनके प्रति दयाभाव रखें. उन्होंने शराब पीने से भी मना किया. आदिवासी समाज की एकता और संगठन पर जोर दिया. सादा जीवन उच्च विचार उनका मंत्र था.
बिरसा के द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक जन जागरण के कार्यों से अंग्रेज सरकार घबरा गई थी. यही कारण है कि सरकार ने आंदोलन का दमन करने के लिए लगातार कोशिशें कीं. बिरसा को पकड़वाने के लिए उस समय पांच सौ रुपए का इनाम रखा गया. लोगों को यह प्रलोभन भी दिया गया कि जो कोई बिरसा के बारे में सूचित करेगा उसका लगान मुक्त हो जाएगा और उसे जमीन का पट्टा भी दिया जाएगा.
बिरसा घूम-घूम कर अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन कर रहे थे. आखिरकार बिरसा को गिरफ्तार किया गया और दो साल का कठोर कारावास दिया गया. पचास रुपए का जुर्माना भी लगाया गया, जिसे वह नहीं दे पाए तो छह महीने का अतिरिक्त कारावास दिया गया. दो साल बाद बिरसा को रिहा किया गया लेकिन रिहा होने के बाद बिरसा एक बार फिर आदिवासी नवजागरण के कार्य में लग गए. इस बार बहुत गुप्त तरीके से आंदोलन चलाने की रणनीति बनाई गई.
बिरसा मुंडा को दोबारा उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वे घर पर आराम कर रहे थे. तरह-तरह के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया. 9 जून 1900 को उन्हें खून की उल्टियां हुईं और सुबह 9 बजे वनवासी बंधुओं के भगवान का निधन हो गया. जेल अधिकारियों ने कहा कि बिरसा को हैजा हो गया था लेकिन लोगों ने आरोप लगाया कि उनको जहर दिया गया था. बिरसा मुंडा का महाप्रयाण हुए पूरी शताब्दी बीत चुकी है लेकिन उन्होंने वनवासी समाज के जागरण के लिए जो काम किए, वे भुलाए नहीं जा सकते.