ब्लॉग: आखिर क्यों दहक रहे हैं पहाड़ के जंगल?

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: April 30, 2024 10:01 AM2024-04-30T10:01:44+5:302024-04-30T10:03:17+5:30

इस बार उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, देहरादून और कुमाऊं मंडल में नैनीताल के अलावा बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के जंगल आग की लपटों में घिरे हुए हैं।

Why are the mountain forests burning Uttarakhand Forest Fires | ब्लॉग: आखिर क्यों दहक रहे हैं पहाड़ के जंगल?

उत्तराखंड के जंगलों में आग (फाइल फोटो)

Highlightsमशहूर पर्यटन स्थल नैनीताल आग से घिरा हुआ हैयहां वायुसेना के हेलिकॉप्टर आग बुझा रहे हैंबीते साल (2023 में) उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की 85 घटनाएं हुई थीं

चार-पांच साल पहले 2019-20 में जब ब्राजील के अमेजन जंगलों में आग उतरी थी, तो पूरी दुनिया में मानो हाहाकार मच गया था। कहा जाने लगा था कि जो जंगल दुनिया की 20 फीसदी ऑक्सीजन पैदा करते हैं, उनका यूं झुलसना तमाम अनहोनियों की आहट है। अमेजन की आग आखिर बुझ गई। बात आई-गई हो गई. लेकिन हमारे देश में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय इलाकों के जंगल हर साल झुलसते हैं। इस साल भी उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं के जंगल विनाशक आग से झुलस रहे हैं। लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है।

पता चला है कि मशहूर पर्यटन स्थल नैनीताल आग से घिरा हुआ है। यहां वायुसेना के हेलिकॉप्टर आग बुझा रहे हैं। लेकिन बुझने के बाद आग फिर लग जाती है। इस बार उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, देहरादून और कुमाऊं मंडल में नैनीताल के अलावा बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के जंगल आग की लपटों में घिरे हुए हैं। 

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बीते साल (2023 में) उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की 85 घटनाएं हुई थीं, जबकि इस बार आग लगने की घटनाओं में 300 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। उत्तराखंड में 38 हजार वर्ग किमी में जंगल (फॉरेस्ट एरिया) है जो इस राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 71 फीसदी हिस्सा है। ऐसे में यहां आग में घिरे जंगल बड़ी चुनौती बन जाते हैं।

वनक्षेत्रों में लगी आग को बुझाना आसान नहीं होता क्योंकि इससे पैदा होने वाले धुएं के कारण दृश्यता (विजिबिलिटी) बेहद कम हो जाती है, इसलिए हेलिकॉप्टरों के जरिये विशाल बाल्टियों से पानी लाकर उसे बुझाने की कोशिश करना बेहद जोखिम वाला काम बन जाता है। वैसे तो ऐसी हर जगह, जहां मानसून और सर्दियों में बारिश होती है और गर्मियों में सूखा मौसम रहता है, वहां आग लगती रहती है। बारिश की वजह से पेड़-पौधे खूब बढ़ जाते हैं। गर्मियों में झाड़ियां और घास-फूस सूखकर आग लगने का माहौल तैयार कर देते हैं। प्राकृतिक रूप से जंगलों में लगने वाली आग से वहां के पेड़-पौधों को निपटने का तरीका मालूम है।  

कहीं पेड़ों की मोटी छाल बचाव का काम करती हैं तो कहीं आग के बाद जंगल को फिर से फलने-फूलने का हुनर आता है। अफ्रीका के सवाना जैसे घास के मैदानों में बार-बार आग लगती रहती है। लेकिन घास-फूस जल्दी जलने से आग का असर जमीन के अंदर, घास-फूस की जड़ों तक नहीं पहुंचता। यही वजह है कि आग खत्म होते ही घास के मैदान फिर से हरे हो जाते हैं।  


जंगल की आग को बुझाने के तीन तरीके विशेषज्ञ सुझाते हैं। पहला, मशीनों से जंगलों की नियमित सफाई हो, चीड़ आदि की पत्तियों को समय रहते हटाया जाए, लेकिन यह बेहद महंगा विकल्प है। दूसरा, वहां नियंत्रित ढंग से आग लगाई जाए। दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में यही किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए भी काफी संसाधन चाहिए। तीसरा यह है कि पर्वतीय इलाकों में पलायन रोक कर जंगलों पर आश्रित व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए, जिससे जंगलों की साफ-सफाई होगी और आग के खतरे कम होंगे।

Web Title: Why are the mountain forests burning Uttarakhand Forest Fires

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