बंगाल में ऊंट किस करवट बैठेगा, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 2, 2021 02:21 PM2021-04-02T14:21:41+5:302021-04-02T14:23:09+5:30
ममता बनर्जी ने अकेले दम कम्युनिस्ट पार्टी के तीन दशक पुराने शासन को उखाड़ फेंका. उसकी शुरुआत 2007 में इसी नंदीग्राम के सत्याग्रह से हुई थी.
वेस्ट बंगाल के नंदीग्राम में ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. जो शुभेंदु कल तक ममता के सिपहसालार थे, वे आज भाजपा के महारथी हैं.
ऐसा बंगाल के कई चुनाव-क्षेत्नों में हो रहा है. ममता की तृणमूल कांग्रेस से इतने नेता अपना दल बदलकर भाजपा में शामिल हो गए हैं कि यदि ममता की जगह कोई और नेता होता तो वह शायद अब तक घर बैठ जाता लेकिन ममता अपना चुनाव-अभियान दृढ़तापूर्वक चला रही हैं. देश में मुख्यमंत्नी तो कई अन्य महिलाएं भी रह चुकी हैं लेकिन जयललिता और ममता जैसी कोई शायद ही रही हो.
ममता ने अकेले दम कम्युनिस्ट पार्टी के तीन दशक पुराने शासन को उखाड़ फेंका. उसकी शुरुआत 2007 में इसी नंदीग्राम के सत्याग्रह से हुई थी. ममता ने लगभग सभी प्रमुख विरोधी पार्टियों को एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कई बार प्रेरित किया है. दिल्ली की चुनी हुई केजरीवाल सरकार को रौंदने की जो नई कोशिश केंद्र सरकार ने की है, उसे ममता ने लोकतंत्न की हत्या बताया है.
ममता को हराने के लिए भाजपा ने इस बार जितना जोर लगाया है, शायद अब तक किसी अहिंदीभाषी राज्य में उसने नहीं लगाया लेकिन खेद की बात है कि ममता और भाजपा, दोनों ने ही मर्यादा का ध्यान नहीं रखा. इस चुनाव में जितनी मर्यादा-भंग हुई है, उतनी किसी चुनाव में हुई हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता. अब तक भाजपा के लगभग डेढ़-सौ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं.
बंगाली मतदाताओं को हिंदू-मुसलमान में बांटने का काम कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा सभी पार्टियां कर रही हैं. जातिवाद और मजहबी पाखंड का सरेआम दिखावा बंगाल में हो रहा है. बंगाल का औद्योगीकरण और रोजगार तो कोई मुद्दे है ही नहीं. ममता ने चुनाव आयोग के मुंह पर कालिख पोतने में भी कोई कमी नहीं रखी है. उस पर इतने घृणित शब्दों में अब तक किसी नेता ने ऐसे आरोप नहीं लगाए हैं.
चुनाव आयोग ने नंदीग्राम में धारा 144 लगा दी और नंदीग्राम के 355 मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की 22 कंपनियां जमा दीं. वहां हिंसा होने की आशंका सबसे ज्यादा थी. उसके 2.75 लाख मतदाताओं में 60 हजार मुस्लिम हैं. बंगाल के इस चुनाव में सांप्रदायिक और जातीय आधार पर वोट पड़ने की आशंका है. यह लोकतंत्न की विडंबना है.
भाजपा के बढ़ते प्रभाव से घबराकर ममता उसे ‘बाहरी’ या ‘गैर-बंगाली’ पार्टी बता रही हैं, यह बहुत ही अराष्ट्रीय कृत्य है. लेकिन बंगाल का यह चुनाव इतने कांटे का है कि ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अभी कहना मुश्किल लगता है. यदि बंगाल में भाजपा सत्तारूढ़ हो जाती है तो यह उसकी अनुपम उपलब्धि होगी और यदि वह हार गई तो अगले तीन-चार साल उसकी नाक में दम हो सकता है.