ब्लॉग: चीन के साथ समझौते का स्वागत, लेकिन रहना होगा सतर्क
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 23, 2024 10:30 IST2024-10-23T10:30:06+5:302024-10-23T10:30:51+5:30
दरअसल इन दिनों वैश्विक समीकरण बहुत जटिल हो चुके हैं, हर देश के अपने-अपने स्वार्थ हैं और कहा जा सकता है कि कोई किसी का सगा नहीं है.

ब्लॉग: चीन के साथ समझौते का स्वागत, लेकिन रहना होगा सतर्क
वर्ष 2020 में गलवान घाटी की खूनी झड़प के बाद से भारी तनाव से गुजर रहे भारत-चीन संबंधों को इस खबर से भारी राहत मिली है कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटेंगी और दोनों देश वहां पेट्रोलिंग पर सहमत हो गए हैं. कहा जा सकता है कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच मई 2020 से जो सैन्य गतिरोध बरकरार था, उसमें कमी आएगी और उसके पूर्व की स्थिति बहाल हो सकेगी.
हालांकि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है, लेकिन टकराव वाले कई बिंदुओं से दोनों पीछे हट चुके हैं. बताया जा रहा है कि दोनों देशों के बीच डेपसांग और डेमचोक में फिर से पेट्रोलिंग शुरू होगी, जो कि मई 2020 के बाद बंद हो गई थी. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि चीन के साथ हमारे संबंध सामान्य हो जाएंगे.
कई बार विश्वासघात कर चुके अपने इस पड़ोसी के साथ हमारे संबंधों को सेना प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी के इस कथन से समझा जा सकता है कि ‘चीन के साथ भारत के हालात स्थिर हैं, लेकिन ये सामान्य नहीं हैं, काफी संवेदनशील हैं. चीन के साथ हमें लड़ना भी है, सहयोग करना है, साथ रहना है, सामना करना है और चुनौती भी देनी है.’ दरअसल इन दिनों वैश्विक समीकरण बहुत जटिल हो चुके हैं, हर देश के अपने-अपने स्वार्थ हैं और कहा जा सकता है कि कोई किसी का सगा नहीं है. एक रूस था, जिसने भारत के साथ भरोसेमंद मित्रता निभाई थी और हमारे आड़े वक्तों में चट्टान की तरह हमारे साथ खड़ा रहा था. लेकिन इन दिनों वह खुद ही विकट परिस्थिति में फंसा हुआ है.
अमेरिका भारत के साथ होने का दिखावा तो करता है, लेकिन कई मौकों पर यह साबित हुआ है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, जैसे कि कनाडा का निज्जर मामले में भारत को धौंस दिखाने का मामला हो, जिसमें वह कनाडा का साथ देता ही दिख रहा है या पन्नू मामले में भारतीय एजेंटों पर सवाल उठाना. चूंकि चीन के साथ अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं, इसलिए वह भारत के कंधे पर रखकर बंदूक चलाना चाहता है. चीन के इतिहास को देखते हुए भारत भी उस पर भरोसा नहीं कर सकता, लेकिन अमेरिका की मौकापरस्ती को देखते हुए उसका मोहरा बनने से भी हमें बचना होगा. एक बात और है.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान को शह देते-देते चीन अब शायद समझ गया है कि पाकिस्तान अमेरिका का पिछलग्गू बनना कभी नहीं छोड़ेगा. इसलिए भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाना चीन की मजबूरी भी है. हमें भी इस स्थिति का फायदा उठाना चाहिए, इसलिए सेना प्रमुख का यह कहना बिल्कुल सही है कि हमें चीन के साथ लड़ना भी है और सहयोग भी करना है अर्थात सतर्कता के साथ आगे बढ़ना है.