विकास मिश्र का ब्लॉग: जलसंकट का कारण पानी के प्रबंधन की कमी

By विकास मिश्रा | Published: May 8, 2019 06:47 AM2019-05-08T06:47:26+5:302019-05-08T06:47:26+5:30

400 रुपए से लेकर 700 रुपए में आप जब चाहें तब एक टैंकर पानी आपके घर पहुंच जाएगा. सवाल यह है कि टैंकरों को पानी कहां से मिल जाता है? औरंगाबाद अकेला नहीं है. महाराष्ट्र का ही विदर्भ इलाका भयंकर जलसंकट का सामना कर रहा है.

Water crisis is because lack of water management | विकास मिश्र का ब्लॉग: जलसंकट का कारण पानी के प्रबंधन की कमी

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महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में औसतन हर छठे दिन केवल पैंतालीस मिनट से एक घंटे के लिए  नलों में पानी आता है. जरा सोचिए कि लोग किस तरह जिंदगी गुजारते होंगे! लेकिन संकट से निपटने के रास्ते भी हैं बशर्ते कि आप जेब ढीली करें.

400 रुपए से लेकर 700 रुपए में आप जब चाहें तब एक टैंकर पानी आपके घर पहुंच जाएगा. सवाल यह है कि टैंकरों को पानी कहां से मिल जाता है? औरंगाबाद अकेला नहीं है. महाराष्ट्र का ही विदर्भ इलाका भयंकर जलसंकट का सामना कर रहा है.

दरअसल सैकड़ों शहर हैं देश में जहां पानी का भीषण संकट न केवल गर्मी में बल्कि हर मौसम में बना रहता है. नल सूखे रहते हैं और टैंकर का धंधा खूब चलता रहता है. 

मैंने औरंगाबाद और विदर्भ का यह उदाहरण इसलिए दिया है ताकि आप समझ सकें कि जल प्रबंधन नाम की कोई चीज हमारे देश के ज्यादातर हिस्सों में है ही नहीं.  औरंगाबाद के पास केवल मिट्टी का एक डैम है जो चालीस-पैंतालीस साल पहले बना था. उसके बाद किसी सरकार ने कोई नया डैम बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की.

हर साल जब गर्मी में संकट गहराता है तो सरकार यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती है कि बारिश अच्छी नहीं हुई इसलिए जलसंकट गहराया है. वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. बारिश को सहेजने की ओर हमारा कोई ध्यान ही नहीं है. 

वाटर मैनेजमेंट को समझने के लिए पहले प्रकृति के मैनेजमेंट को समझने की जरूरत है. दुनिया में जितना पानी उपलब्ध है उसका 97.5 प्रतिशत पीने के लायक नहीं है क्योंकि यह समुद्र का नमकीन पानी है. नदियों, झीलों, तालाबों, जमीन के भीतर और यहां तक कि हमारे किचन के पानी को भी जोड़ लें तो यह केवल 2.4 प्रतिशत है.

बचा हुआ 0.1 प्रतिशत आकाश में है. उसमें से केवल 0.001 प्रतिशत बादलों के रूप में जमा रहता है. वातावरण में मौजूद यही छोटा सा अंश वाटर साइकिल को रेगुलेट करता है. हमारी धरती पर मौजूद पानी वैपराइज होकर आकाश में पहुंचता है लेकिन ऊपर वातावरण ठंडा होने के कारण वह फिर से पानी के रूप में बदल जाता है.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बादलों के रूप में हमारा आकाश जितना पानी अपने में समाए रहता है उससे तीस गुना ज्यादा पानी बारिश और बर्फ के रूप में धरती पर गिराता है. पानी के इस चक्र को समझने के बाद वैज्ञानिकों ने यह नतीजा निकाला कि धरती पर जितना पानी है, उसकी रीसाइक्लिंग होती रहती है.

पानी न कम होता है, न ज्यादा. प्रकृति की इस रीसाइक्लिंग प्रोसेस का ही नतीजा है कि धरती पर पीने लायक पानी हमेशा उपलब्ध रहता है.

हां, धरती के किसी इलाके में यह उपलब्धता ज्यादा रहती है तो कहीं कम. मसलन फ्रेश वाटर के मामले में ब्राजील सबसे धनी है. उसके बाद रूस, अमेरिका, कनाडा, चीन का नंबर आता है. इस सूची में भारत दसवें नंबर पर है. इसलिए स्थिति इतनी बुरी नहीं कही जा सकती है.

ब्राजील के पास जहां 8233 किलोमीटर्स क्यूब्ड पानी है. वहीं रूस के पास 4508, अमेरिका के पास 3069 किलोमीटर्स क्यूब्ड पानी है. भारत का आंकड़ा केवल 1911 है. हम कह सकते हैं कि पानी के मामले में हमारी आबादी हमारी स्थिति कमजोर करती है लेकिन यह भी सच है कि हमारे पुरखों ने प्रकृति के जिस जल-चक्र को समझ लिया था और उसी के अनुरूप जीवन को ढाला था, हमने उसे तबाह कर दिया.

मैंने अपने बचपन में भरी गर्मी में भी पानी से भरे सैकड़ों तालाब देखे हैं, बावड़ियां देखी हैं. छोटी नदियों में भी पूरे साल पानी देखा है. केवल 30 से 40 फीट की गहराई वाले हैंडपंप पर हमने पानी पिया है लेकिन अब यह सब बीते जमाने की बात हो चुकी है.

बारिश का पानी जमीन के भीतर सहेजने वाले जंगलों को हमने बेदर्दी से काट दिया. नतीजा है कि हमारे तालाब सूख गए, बावड़ियां सूख गईं. नदी-नाले तबाह हो गए! पुरानी कहावत है कि बारिश वहीं ज्यादा होती है जहां पेड़ पौधे ज्यादा होते हैं. हमने इस सत्य को ठुकरा दिया. शहरी इलाकों में तो पेड़ों का जैसे कत्लेआम किया गया है तो स्थिति सुधरेगी कैसे? 

और इन सबसे बड़ी बात कि इस देश के आम आदमी को हम समझा नहीं पाए कि आज जो पानी उपलब्ध है, उसे यदि रेगुलेट नहीं किया गया तो भविष्य संकट से घिर सकता है. सीधा सा गणित है कि पानी को यदि हम जमीन के भीतर नहीं भेजेंगे, सहेजेंगे नहीं तो हालात और बदतर ही होने वाले हैं.

हमें सिंगापुर,  इजराइल और इस तरह के अन्य देशों से सबक लेना चाहिए जहां पानी की हर बूंद की रीसाइक्लिंग होती है. इसके लिए सरकारी स्तर पर बड़े प्रयास की जरूरत है. दुर्भाग्य देखिए कि भीषण गर्मी में हो रहे इस चुनाव में पानी मुद्दा ही नहीं है!

Web Title: Water crisis is because lack of water management

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