ब्लॉग: लोकतंत्र के पर्व को लेकर मतदाताओं ने दिखाया उत्साह
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 20, 2024 10:06 AM2024-04-20T10:06:09+5:302024-04-20T10:07:08+5:30
इस चुनाव में जहां पहली बार मतदान करने वाले युवाओं का जोश देखने को मिला, वहीं हर चुनाव में वोट डालकर लोकतंत्र के सजग प्रहरी होने का परिचय देने वाले जागरूक नागरिकों ने भी अपनी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए मतदान किया।
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(फाइल फोटो)
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में शुक्रवार, 19 अप्रैल को महाराष्ट्र समेत 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 102 सीटों पर मतदान होने के साथ ही देश में सात चरणों में होने वाले मतदान के जरिये लोकतंत्र के महापर्व की शुरुआत हो गई है। कुछ जगहों पर होने वाले छिटपुट संघर्षों को छोड़ दें तो पहले चरण के मतदान में अनेक जगहों पर मतदाताओं का उत्साह देखने के काबिल था।
हालांकि प्राथमिक जानकारी के अनुसार शाम छह बजे तक मतदान औसतन 60 प्रतिशत के आसपास ही हुआ, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्वोत्तर और छत्तीसगढ़ जैसे अपेक्षाकृत पिछड़े समझे जाने वाले राज्यों और आदिवासीबहुल क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत बाकी जगहों के मुकाबले ज्यादा रहा. मेघालय, असम, सिक्किम, मणिपुर जैसे राज्यों में 70 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ, जबकि त्रिपुरा में तो यह 75 प्रतिशत को भी पार कर गया।
इस चुनाव में जहां पहली बार मतदान करने वाले युवाओं का जोश देखने को मिला, वहीं हर चुनाव में वोट डालकर लोकतंत्र के सजग प्रहरी होने का परिचय देने वाले जागरूक नागरिकों ने भी अपनी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए मतदान किया। मतदान के बाद अपनी स्याही लगी उंगली के साथ सेल्फी लेकर लोग सोशल मीडिया पर फोटो डाल रहे थे।
तपती गर्मी के बावजूद मतदाता वोट डालने के लिए अपने घरों से बड़ी संख्या में बाहर निकले। महिला वोटर अपने कर्तव्य को लेकर कितनी जागरूक हैं, इसकी बानगी उत्तराखंड में देखने को मिली, जहां काशीपुर में शादी के बाद दुल्हन के जोड़े में पहुंची युवती ने ससुराल विदा होने से पहले मतदान किया। नैनीताल जिले में भी ठीक ऐसा ही नजारा देखने को मिला। दरअसल नागरिकों की सक्रिय हिस्सेदारी ही किसी भी लोकतंत्र के जीवंत होने का प्रमाण होता है और भारत के मतदाताओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर दिखा दिया है कि हमारे देश का लोकतंत्र कितना जीवंत है।
हालांकि अभी भी शत-प्रतिशत की कौन कहे, 80-90 प्रतिशत मतदान भी दूर का सपना बना हुआ है। निश्चित रूप से इस बात पर मंथन करना होगा कि एक तरफ जहां पिछड़े माने जाने वाले इलाकों में मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है, वहीं पढ़े-लिखे और जागरूक माने जाने वाले इलाकों में मतदाता उदासीन क्यों बने हुए हैं।