विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: करोड़पति राजनेताओं की कहानी सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 31, 2022 02:54 PM2022-03-31T14:54:08+5:302022-03-31T14:54:08+5:30

ये ध्यान रखने की जरूरत है कि सबका साथ, सबका विकास की बात केवल नारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. हम इस हकीकत से आंख नहीं चुरा सकते हैं कि पिछले दो-तीन साल में करीब 84 प्रतिशत भारतीय परिवारों की आय कम हुई है.

Vishwanath Sachdeva blog: The story of crorepati politicians is not limited to UP only | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: करोड़पति राजनेताओं की कहानी सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं

करोड़पति राजनेताओं की कहानी सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

बात बहुत पुरानी है. देश के दूसरे आम चुनाव के दौरान राजस्थान के सिरोही जिले में एक ऐसा उम्मीदवार चुनाव जीत गया था जिसके पास शपथ-ग्रहण के लिए राज्य की राजधानी पहुंचने के पैसे भी नहीं थे. फुटपाथ पर जूतों की मरम्मत करने वाला यह विधायक चुनाव जीता कैसे यह एक अलग कहानी है, पर यह हकीकत है कि मतदाताओं ने चंदा इकट्ठा करके उसकी शपथ-ग्रहण को संभव बनाया था. 

बरसों पुरानी यह बात आज अचानक एक समाचार पढ़ कर याद आ गई. समाचार हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के नव-निर्वाचित विधायकों की संपत्ति के बारे में था. इसमें बताया गया कि उत्तर प्रदेश की नई विधानसभा में 91 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं और इनकी औसत संपत्ति आठ करोड़ रुपए से अधिक है. सबसे अधिक वाला विधायक भारतीय जनता पार्टी का है. 148 करोड़ रुपए का मालिक है यह विधायक. 

दूसरे नंबर पर गरीबों की संरक्षक होने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी का विधायक है. इन महाशय की कुल संपत्ति साठ करोड़ रुपए बताई गई है.

करोड़पति राजनेताओं की यह कहानी सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. गरीब-राज्य माने जाने वाले उत्तराखंड के चुनाव-परिणाम भी ऐसी ही कहानी सुना रहे हैं. यहां 71 प्रतिशत नव-निर्वाचित विधायक करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं. शेष जिन तीन राज्यों में हाल ही में चुनाव हुए हैं. यहां भी स्थिति लगभग ऐसी ही है. हमारी राजनीति का यह सच कुल मिलाकर सारे देश की सच्चाई है. और जब भी कहीं चुनाव होते हैं, परिणामों की घोषणा के बाद स्वयंसेवी संगठन स्वयं उम्मीदवारों के हलफनामों के आधार पर उनकी संपत्ति का ब्यौरा प्रकाशित करते हैं. 

अखबारों की खबर तो बनते हैं ये सर्वेक्षण, पर गरीब देश के इन अमीर राजनेताओं को लेकर कोई गंभीर बहस नहीं होती. जिस देश की अस्सी करोड़ जनता आज अपनी सुबह-शाम की रोटी के लिए सरकारी सहायता पर निर्भर हो, वहां करोड़पति राजनेताओं को लेकर कोई चिंता व्यक्त न हो, यह अपने आप में किसी आश्चर्य से कम नहीं है. वादे और दावे भले ही देश के गरीबों के नाम पर किए जाते हों, पर शायद यह मान लिया गया है कि राजनीति पैसे वालों का खेल है. 

राजनीति की शतरंज के इस खेल में गरीब तो मोहरा भर हैं जिनका उपयोग रानी या राजा की सुरक्षा के लिए किलेबंदी करना भर होता है.

मजे की बात तो यह है कि पैसे के बल पर चुनाव जीतने वाले और पैसे की स्पर्धा में लगे रहते हैं. हाल ही की खबर है, महाराष्ट्र सरकार राज्य के विधायकों के लिए राजधानी मुंबई में फ्लैट बनवा रही है. सवाल उठता है क्यों? विधायकी की अवधि में उनके राजधानी में रहने की व्यवस्था हो, यह तो समझ में आता है, पर उन्हें मुंबई में स्थायी मकान क्यों दिए जाएं? 

सवाल और भी हैं. विधायकों या सांसदों को जीवन-भर पेंशन दी जाती है, आखिर क्यों? सरकारी नौकर तीस-चालीस साल नौकरी करने के बाद पेंशन का अधिकारी बनता है, विधायक और सांसद पांच साल की कथित सेवा के बाद ही पेंशन पा जाते हैं. पंजाब की नई सरकार ने घोषणा की है कि अब विधायकों को एक ही पेंशन मिलेगी. 

इसका मतलब है अब तक उन्हें उतनी बार की पेंशन मिलती थी जितनी बार वे प्रतिनिधि निर्वाचित होते थे. पंजाब सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा की जानी चाहिए, पर यह सवाल भी देश में उठना ही चाहिए कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को जो जनता की सेवा के नाम पर विधायक या सांसद बनते हैं, किस बात की पेंशन दी जानी चाहिए? करोड़पतियों को आखिर क्या आवश्यकता है इस पेंशन की?

एक कल्याणकारी राज्य में जरूरतमंद जनता को सरकारी मदद दिया जाना कतई गलत नहीं है. लेकिन यह मदद सरकारी खैरात नहीं मानी जानी चाहिए.

सबका साथ, सबका विकास की बात सिर्फ नारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. लगना चाहिए कि सबका विकास हो रहा है. इस हकीकत से आंख नहीं चुराई जा सकती कि पिछले दो-तीन साल में 84 प्रतिशत भारतीय परिवारों की आय कम हुई है. और एक सच्चाई यह भी है कि इसी दौरान देश में अरबपतियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. ये अरबपति अपवाद नहीं हैं, इनकी आय में वृद्धि और 84 प्रतिशत भारतीय परिवारों की आय में कभी कहीं न कहीं हमारी नीतियों और हमारी मंशा, दोनों पर सवालिया निशान लगाती है. 

ऑक्सफेम इंडिया ने जनवरी 2022 में कहा था कि भारत के 98 धनी परिवारों की आय 55 करोड़ भारतीयों की आय जितनी है. आर्थिक विषमता का दृश्य भयावह है. आज देश के ऊपर के दस प्रतिशत के पास नीचे के पचास प्रतिशत लोगों जितनी संपत्ति है.

Web Title: Vishwanath Sachdeva blog: The story of crorepati politicians is not limited to UP only

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