विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: रिकॉर्ड ही बनाना है तो गरीबी मिटाने का बनाएं

By विश्वनाथ सचदेव | Published: November 7, 2019 06:29 AM2019-11-07T06:29:49+5:302019-11-07T06:29:49+5:30

रिकॉर्ड के नाम पर पांच लाख दीये जलाने से कम महत्वपूर्ण नहीं है किसी गरीब की झोपड़ी में एक दीये का उजाला करना. राम-राज्य का मतलब हर घर में उजाला नहीं तो और क्या है? कोई भूखा न सोये, कोई अज्ञानी न रहे, कोई अभावों में न जिये, किसी को औषधि के अभाव में दम न तोड़ना पड़े. यही सब तो परिभाषित करता है राम-राज्य को.

Vishwanath Sachdev blog: If you want to make a record, then make it of poverty alleviation | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: रिकॉर्ड ही बनाना है तो गरीबी मिटाने का बनाएं

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो।

भूख, बेरोजगारी, महंगाई, कुपोषण जैसे मोर्चों पर भले ही हम दुनिया के कई-कई देशों से पीछे हों, पर कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां हम सबसे अगली कतार में हैं. जैसे, दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति सरदार सरोवर पर हमने लगाई है, दुनिया में एक दिन में एक समय पर सर्वाधिक संख्या में योग का अभ्यास कराने का रिकॉर्ड हमारे नाम है, हाल ही में अयोध्या में पांच लाख दीये जला कर दिवाली मनाने का करिश्मा भी हम ही ने दिखाया है.

रिकॉर्ड बनाने की इस दौड़ की आपाधापी में पता नहीं कितनों ने देखा होगा अयोध्या की उस बच्ची का वीडियो जिसमें वह रिकॉर्ड के लिए जलाये गए दीयों का बचा हुआ तेल अपनी बोतल में इकट्ठा कर रही थी, ताकि उसके घर के अंधेरे में भी कुछ उजाला हो सके, या फिर दिवाली की उस रात उसके घर भी कुछ तेल वाली सब्जी बन सके.

सोशल मीडिया पर वायरल हुए उस वीडियो पर बहुत टिप्पणियां हुई हैं. लाखों दीयों को जलाने की सनक से लेकर तेल के अपव्यय और देश की गरीबी तक का उल्लेख हुआ है इन टिप्पणियों में. एक टिप्पणी ऐसी भी थी जिसमें कहा गया था कि किसी टी.वी. चैनल वाले ने बच्ची को कुछ पैसा देकर बुझे दीयों का तेल इकट्ठा करने का काम कराया होगा ताकि टीआरपी बढ़ाने लायक कुछ सामग्री मिल जाए. एक टिप्पणी ऐसी भी थी जिसमें कहा गया था कि यह उत्तर प्रदेश की सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने के लिए प्रायोजित किया गया काम है.

हो सकता है, ऐसा कुछ हो, पर इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आजादी के सात दशक के बाद भी गरीबी और भुखमरी के कलंक को हम मिटा नहीं पाए हैं. हमारे देश की गणना दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चों वाले देशों में होती है. इसलिए, अयोध्या में बुझे दीयों का तेल इकट्ठा करने वाली उस बच्ची का वीडियो देखकर पहली प्रतिक्रिया यही हुई कि रिकॉर्ड बनाने की होड़ में हम देश की बुनियादी समस्याओं के समाधान की राह से भटक तो नहीं रहे? या यह भटकाने की कोशिश तो नहीं?

गुजरात में सरदार पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति का यशोगान लगातार हो रहा है. अब अयोध्या में उससे भी ऊंची भगवान राम की मूर्ति बनाने की घोषणा हुई है. यानी एक और नया रिकॉर्ड बनाने की तैयारी. राम इस देश की सवा-सौ करोड़ जनता के आराध्य हैं. राम इस देश के हृदय में बसे हैं. ‘कलियुग केवल नाम अधारा’ कहकर तुलसी ने राम के नाम की महिमा को रेखांकित किया है. और करोड़ों-करोड़ लोग इस बात में विश्वास करते हैं. इससे बड़ा रिकॉर्ड और क्या हो सकता है किसी की ऊंचाई का? आस्था की इस ऊंचाई को कोई कैसे छू सकता है?  

बुझे हुए दीयों से तेल बटोरती अयोध्या की वह बच्ची ‘ऊंचाई’ की हमारी समझ को ही चुनौती नहीं दे रही, राम के प्रति हमारी भावनाओं पर भी प्रश्नचिह्न लगा रही है. राम को दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति में प्रतिष्ठित करके हम क्या पाना चाहते हैं, पता नहीं, पर यह तो आसानी से पता चल सकता है कि बात चाहे राम के मंदिर की हो या राम की मूर्ति की, वह उस बच्ची की भूख से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकती जिसे दीवाली की रात में दीया जलाने की नहीं, दीये का तेल बटोरने की चिंता ज्यादा थी.

रिकॉर्ड के नाम पर पांच लाख दीये जलाने से कम महत्वपूर्ण नहीं है किसी गरीब की झोपड़ी में एक दीये का उजाला करना. राम-राज्य का मतलब हर घर में उजाला नहीं तो और क्या है? कोई भूखा न सोये, कोई अज्ञानी न रहे, कोई अभावों में न जिये, किसी को औषधि के अभाव में दम न तोड़ना पड़े. यही सब तो परिभाषित करता है राम-राज्य को.

महात्मा गांधी ने सबसे छोटे, सबसे उपेक्षित को मानक बनाया था किसी भी भव्यता के निर्धारण का. निश्चित रूप से, जब गांधी ने यह मंत्र दिया था तो उनकी निगाह में बुझे दीयों का तेल बटोरती कोई ऐसी ही बच्ची होगी. यह त्रासदी ही है कि वह बच्ची हमारे सामने है-और हम उसे देखना नहीं चाहते. कंगूरों की भव्यता पर है हमारी नजर, नींव का खोखलापन हमारी चिंता का विषय नहीं बन रहा.

यह सही है कि देश में अरबपतियों की संख्या भी बढ़ रही है, हमारे विधायकों, सांसदों की संपत्ति भी लगातार बढ़ रही है, पर इस हकीकत से भी तो आंख नहीं चुराई जानी चाहिए कि देश की 68 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी में जी रही है. आर्थिक विकास का लाभ एक सीमित आबादी के हिस्से में ही आया है. गरीबी में जीने वाले अधिकांश भारतीय ‘स्मार्ट सिटी’ जैसी कल्पनाओं से दूर ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. यही लोग नगरों-महानगरों की झुग्गी झोपिड़यों, गंदी बस्तियों में जाकर रहने के लिए शापित हैं.

भव्यता के रिकॉर्ड बनाने की हमारी मानसिकता को कुछ आंकड़े चुनौती दे रहे हैं. उदाहरण के लिए यह तथ्य कि भारत में प्रतिवर्ष चौदह लाख बच्चे पांचवीं वर्षगांठ से पहले ही मर जाते हैं. कुपोषण के शिकार बीस करोड़ भारतीयों में छह करोड़ से अधिक बच्चे शामिल हैं. बारह करोड़ से अधिक बच्चे गैरकानूनी रोजगारों में लगे हैं. छह से चौदह की उम्र के छह करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते. वर्ष 2017-18 में हमारे भारत में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत थी- पिछले चार दशक में सर्वाधिक.

ये आंकड़े प्रगति के हमारे दावों को अंगूठा ही नहीं दिखा रहे, विकास की हमारी समझ को भी चुनौती दे रहे हैं. और पूछ रहे हैं कि ऊंचाइयों के रिकॉर्ड बनाने की जिस प्रतियोगिता में आज हम लगे हैं वह कुल मिलाकर एक छलावा ही तो नहीं है?

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: If you want to make a record, then make it of poverty alleviation

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