पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: देश में बेरोजगारी कहीं महामारी न बन जाए!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 15, 2019 10:25 AM2019-02-15T10:25:03+5:302019-02-15T10:25:03+5:30

भाजपा की सत्ता के दौर की त्नासदी रही कि अतिरिक्त रोजगार तो दूर, झटके में जो रोजगार पहले से चल रहे थे उसमें भी कमी आ गई.

Virtue Prasun Vajpayee's blog: Unemployment in the country will not become a pandemic! | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: देश में बेरोजगारी कहीं महामारी न बन जाए!

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: देश में बेरोजगारी कहीं महामारी न बन जाए!

 35 करोड़ युवा वोटर. 10 करोड़ बेरोजगार युवा. छह करोड़ रजिस्टर्ड बेरोजगार. क्या ये आंकड़े देश की सियासत को हिलाने के लिए काफी हैं. या फिर ये आंकड़े राजनीति करने वालों को लुभाते हैं कि जो इनकी भावनाओं को अपने साथ जोड़ ले 2019 के चुनाव में उसका बेड़ा पार हो जाएगा. इसीलिए संसद के आखिरी सत्न में प्रधानमंत्नी मोदी रोजगार देने के अपने आंकड़े रखते हैं. रैलियों में राहुल गांधी बेरोजगारी का मुद्दा जोर शोर से उठाते हैं. 

चपरासी के पद तक के लिए हाथों में डिग्री थामे कितनी बड़ी तादाद में रोजगार की लाइन में देश का युवा लग जाता है, ये इससे भी समझा जा सकता है कि राज्य दर राज्य रोजगार कितने कम हैं. मसलन आंकड़ों को पढ़िए और कल्पना कीजिए राजस्थान में 2017 में ग्रुप डी के लिए 35 पद के लिए आवेदन निकलते हैं और 60 हजार लोग आवेदन कर देते हैं. छत्तीसगढ़ में 2016 में ग्रुप डी की 245 वेकेंसी निकलती है और दो लाख 30 हजार आवेदन आ जाते हैं. मध्य प्रदेश में 2016 में ही ग्रुप डी की 125 वेकेंसी निकलती है और 1 लाख 90 हजार आवेदन आ जाते हैं. रेलवे ने तो इतिहास ही रच दिया जब ग्रुप डी के लिए 90 हजार वेकेंसी निकाली जाती हैं तो तीन दिन के भीतर ही ऑनलाइन 2 करोड़ 80 लाख आवेदन अप्लाई होते हैं. यानी रेलवे में ड्राइवर, गैंगमैन, ट्रैक मैन, स्विच मैन, केबिन मैन, हेल्पर और पोर्टर समेत देश के अलग-अलग राज्यों में चपरासी या डी ग्रुप में नौकरी के लिए जो आवेदन कर रहे थे या कर रहे हैं वे कैसे डिग्रीधारी हैं इसे देखकर शर्म से नजरें भी झुक जाएं कि बेरोजगारी बड़ी है या एजुकेशन का कोई महत्व ही देश में नहीं बच पा रहा है. क्योंकि इस फेहरिस्त में 7767 इंजीनियर, 3985 एमबीए, 6980 पीएचडी, 991 बीबीए, करीब पांच हजार एमए  और 198 एलएलबी की डिग्री ले चुके युवा भी शामिल थे. 

भाजपा की सत्ता के दौर की त्नासदी रही कि अतिरिक्त रोजगार तो दूर, झटके में जो रोजगार पहले से चल रहे थे उसमें भी कमी आ गई. केंद्रीय लोकसेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग और रेलवे भर्ती बोर्ड में जितनी नौकरियां थीं वह बरस दर बरस घटती गईं.  नौकरियों को लेकर देश को असल झटका तो नोटबंदी से लगा. प्रधानमंत्नी ने नोटबंदी के जरिये जो भी सोचा वह सब नोटबंदी के बाद काफूर हो गया. बरस भर में करीब दो करोड़ रोजगार देश में खत्म हो गए. सरकार के ही आंक ड़े बताते हैं कि दिसंबर 2017 में देश में 40 करोड़ 97 लाख लोगों के पास काम था. और बरस भर बाद यानी दिसंबर 2018 में ये घटकर 39 करोड़ 7 लाख पर आ गया. यानी ये सवाल अनसुलझा सा है कि आखिर सरकार ने रोजगार को लेकर कुछ सोचा क्यों नहीं. या फिर देश में जो आर्थिक नीति अपनाई जा रही है उससे रोजगार अब खत्म ही होंगे या रोजगार कैसे पैदा हों, इसके लिए सरकार के पास कोई नीति है नहीं. 

 

Web Title: Virtue Prasun Vajpayee's blog: Unemployment in the country will not become a pandemic!

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