विजय दर्डा का ब्लॉग: जिस्म में उलझा प्रेम और बारूद का धुआं..!

By विजय दर्डा | Published: February 14, 2022 08:58 AM2022-02-14T08:58:05+5:302022-02-14T08:58:05+5:30

Valentine's day: प्रेम की बयार यदि सचमुच बह निकले तो ये दुनिया वाकई बड़ी खूबसूरत हो जाए, खुशियों से भर जाए।

Vijay Darda's blog: Valentine day why Love is important for this world | विजय दर्डा का ब्लॉग: जिस्म में उलझा प्रेम और बारूद का धुआं..!

विजय दर्डा का ब्लॉग: जिस्म में उलझा प्रेम और बारूद का धुआं..!

प्रेम और मोहब्बत की बातें शुरू करने से पहले मैं ‘सेवेन वंडर्स ऑफ द वर्ल्ड’ यानी दुनिया के सात आश्चर्यो की बात करना चाहूंगा. 2007 में जब आखिरी बार सेवेन वंडर्स के चयन के लिए सर्वे हुआ था तो पहले नंबर पर आया भारत का ताजमहल. यदि निर्माण की दृष्टि से देखें तो क्या इसका निर्माण ‘चीन की दीवार’ से ज्यादा कठिन था? 

हर कोई यही कहेगा कि चीन की दीवार को बनाने में ज्यादा मशक्कत हुई होगी. मौजूदा दौर में जो 21196 किलोमीटर लंबी दीवार है, उसे बनाने में करीब 2000 साल लगे. बहुत कठिन काम था. न जाने कितने शासक आए और गए!

इसकी तुलना में ताजमहल के निर्माण में तो केवल 22 साल लगे. फिर सर्वे में चीन की दीवार से ज्यादा वोट ताजमहल को क्यों मिले? दरअसल ताजमहल की बुनियाद में प्रेम है और चीन की दीवार की बुनियाद में जंग है. जंग किसी को पसंद नहीं और प्रेम के रंग में हर कोई रंग जाना चाहता है. ये प्रकृति प्रेम की वजह से ही इतनी रसदार बनी हुई है जीवन के खुशनुमा पल भी इसी की वजह से आते हैं. प्रेम की रसधारा जहां बहती है, पूरा कैनवास मनमोहक हो उठता है. जाने-माने  कवि अभिषेक कुमार ने वाकई बहुत खूब लिखा है..

गुल खिले मन में गुलशन खिले
आप जबसे हमें हो मिले.
आप से महका आंगन मेरा
भूल बैठे सभी हम गिले.
सर पे छाया अजब सा नशा
सारी दुनिया बदल सी गई,
प्रेम का पुष्प जबसे खिला
सारी दुनिया बदल सी गई.

वो प्रेम के गीत ही थे जिन्होंने एक पूरे दौर में हरिवंश राय बच्चन को तो दूसरे दौर में गोपालदास नीरज को या फिर साहिर लुधियानवी को युवाओं का सरताज बनाए रखा. वो प्रेम के अंकुर ही थे जिसने अमृता प्रीतम और साहिर को अमर कर दिया! ..लेकिन वक्त करवटें भी तो लेता है! उसने करवट ली और प्रेम जिस्म के उलझन में उलझता चला गया. 

आज वही दौर चल रहा है. मैं नहीं कहता कि प्रेम की दरिया बहना बंद हो गई है लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि प्रेम रूपी दरिया के बहाव में ढेर सारे जिस्मानी टीले भी उभर आए हैं और दुर्भाग्य से नया दौर उसे ही प्रेम मान बैठा है. जिस्म एक खास तरह के प्रेम को परवान चढ़ाने में कैटेलिस्ट की भूमिका तो निभाता है लेकिन जो नैसर्गिक प्रेम है उसमें जिस्म के लिए कोई जगह नहीं. 

प्रेम केवल दो युवाओं के मिलन संसार में बंध कर कैसे रह सकता है? निदा फाजली जब बेटी से और मुनव्वर राना मां से मोहब्बत की बात करते हैं तो वे वाकई नैसर्गिक प्रेम की बात कर रहे होते हैं. उस प्रेम रस की बात कर रहे होते हैं जो हमारा वास्तविक जीवन रस होना चाहिए.

 जरा सोचिए कि अपने शिशु के प्रति माता-पिता के प्रेम से बड़ा कोई और प्रेम हो सकता है क्या? दुनिया में महावीर, बुद्ध, गांधी से लेकर अनेक लोगों ने समय-समय पर प्रेम की भाषा बताई है. इसके बावजूद न हम प्रेम का स्तंभ बना सके, न उसको किसी ने प्यार से सींचा. हमने उस पर डाला है केवल बारूद और उसे ध्वस्त करने का ही प्रयास किया गया है.

प्रेम तो प्रकृति की देन है, उसे दायरों में तो हम बांध रहे हैं! हम प्रेम को निर्बाध बहने दें. रिश्तों की हर खुशबू में उसे लपेट लें तो क्या कभी आपने सोचा है कि ये दुनिया कैसी होगी? हर कोई एक दूसरे में रच-बस जाएगा तो न कोई ईष्र्या होगी और न लालच के लिए कोई जगह बचेगी. फिर धरती पर केवल इंसानियत होगी. ऐसी ही किसी दुनिया के लिए मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है..

प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या..!

..लेकिन आज के दौर में प्रेम के लिए वास्तविक जगह बची कहां है?  जीवन से प्रेम कपूर की तरह उड़ता चला जा रहा है. यदि ये कहूं कि प्रेम बाजारू होने पर उतारू है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी. आधुनिकता के दौर में परिवार बिखर रहे हैं क्योंकि परिवार को जोड़ने वाला प्रेम तत्व कमजोर हो रहा है. जब परिवार ही नहीं बचेंगे तो एक बेहतर समाज की कल्पना हम कैसे कर सकते हैं? जब समाज खंडित होगा तो राष्ट्र उससे अछूता कैसे रह पाएगा?

कई बार तो मुङो लगता है कि ये वक्त ही प्रेम का दुश्मन बन बैठा है. यदि विभिन्न जातियों और धर्मो के दो युवाओं ने संग साथ बिताने की कसमें खा लीं तो समाज के स्वयंभू रखवाले लाठियां भांजने लगते हैं. परिवार वाले जान के दुश्मन बन बैठते हैं. जाति और धर्म खतरे में आ जाता है. ‘ऑनर किलिंग’ हो जाती है. प्रेम गीतों के रचयिता गोपाल दास नीरज ने बहुत पहले इसे भांप लिया था. उन्होंने लिखा..

आज की रात तुझे आखिरी खत और लिख दूं/ कौन जाने यह दिया सुबह तक जले न जले?
बम बारूद के इस दौर में मालूम नहीं/ ऐसी रंगीन हवा फिर कभी चले न चले..!

ऐसे वक्त में हम वैलेंटाइन डे पर बस इतनी दुआ कर सकते हैं कि एक दूसरे से तो मोहब्बत कीजिए ही, लेकिन उससे पहले अपने आप से मोहब्बत करना सीखिए. जब आप खुद से मोहब्बत करेंगे तो प्रेम की धारा प्रवाहित करते चलेंगे. एक बार फिर से कहूंगा कि ये प्रेम ही है जो जीवन को खूबसूरत बना सकता है. नफरत की हवस को मिटा कर यदि हम प्रेम से परिपूर्ण हो जाएं तो ये दुनिया खुशियों से लबरेज हो जाए. 

चारों ओर सारी दीवारों को खून से रंग देने की जो बातें होती हैं, हुई हैं और होंगी भी उससे बचने का एक ही रास्ता है..प्रेम..प्रेम..और प्रेम!  लड़ाई-झगड़े और दुनिया के स्तर पर जंग का केवल एक निदान है..प्रेम..प्रेम..और प्रेम! कबीर दास कह भी गए हैं.. ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय. 
प्रेम दिवस मुबारक हो..!

Web Title: Vijay Darda's blog: Valentine day why Love is important for this world

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