विजय दर्डा का ब्लॉग: बोलने की आजादी है, मगर बकवास की नहीं!
By विजय दर्डा | Published: May 20, 2019 06:18 AM2019-05-20T06:18:26+5:302019-05-20T06:18:26+5:30
बोलने की आजादी का मतलब बकवास की आजादी तो बिल्कुल ही नहीं हो सकता है. क्या प्रज्ञा ठाकुर को पता है कि महात्मा गांधी बोलने की आजादी के प्रबल पक्षधर थे. उन्होंने अपने साप्ताहिक अखबार यंग इंडिया में 1922 में एक लेख लिखा था. उस लेख में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यानी बोलने की आजादी की पुरजोर वकालत की थी. एक गुलाम देश के लिए यह बड़ी बात थी.
आतंकवाद की आरोपी और भोपाल से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं प्रज्ञा ठाकुर के जहरीले विचारों ने इस देश को झकझोर कर रख दिया है. पहले तो उन्होंने मुंबई हमले में शहीद हुए वीर हेमंत करकरे का अपमान किया और अब उस नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता दिया, जिसने इस देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले महात्मा गांधी की हत्या की थी.
सवाल यह पैदा होता है कि ऐसा बोलने की हिम्मत प्रज्ञा ने कैसे की? जाहिर सी बात है कि उसे लगता है कि उसके विचारों वाली सरकार है, जो उसे संरक्षण दे रही है. उसने ऐसा बोलने की हिम्मत इसलिए की, क्योंकि कांग्रेस और उसके साथ के संगठन कुछ बोलते नहीं है. जिस व्यक्ति के कारण हम आजाद हुए, उसके प्रति ऐसा भाव? प्रज्ञा का तो पूरे देश में धिक्कार होना चाहिए था, प्रदर्शन होना चाहिए था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है.
प्रज्ञा की इस बकवास से पूरे देश की तरह मैं भी आहत हूं. प्रज्ञा को तो शायद यह भी पता नहीं होगा कि जिस व्यक्ति के हत्यारे को वह राष्ट्रभक्त बता रही है, उस व्यक्ति (गांधीजी) के कारण केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 40 देश आजाद हुए. बापू की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि गांधीवादी विचार की हत्या की कोशिश थी. मुझे याद है, संसद के सेंट्रल हॉल में बराक ओबामा ने कहा था कि यदि महात्मा गांधी नहीं होते तो मैं शायद अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता. महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि इस धरती पर गांधी जैसा कोई व्यक्ति आया था, इस बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. बापू का इतना बड़ा व्यक्तित्व था.
मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि कोई महात्मा गांधी के हत्यारे को कैसे देशभक्त बता सकता है या बता सकती है? ..और इसे बोलने की आजादी से तो जोड़कर बिल्कुल ही नहीं देखा जाना चाहिए. बोलने की आजादी का मतलब बकवास की आजादी तो बिल्कुल ही नहीं हो सकता है. क्या प्रज्ञा ठाकुर को पता है कि महात्मा गांधी बोलने की आजादी के प्रबल पक्षधर थे. उन्होंने अपने साप्ताहिक अखबार यंग इंडिया में 1922 में एक लेख लिखा था. उस लेख में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यानी बोलने की आजादी की पुरजोर वकालत की थी. एक गुलाम देश के लिए यह बड़ी बात थी.
क्या प्रज्ञा को पता है कि गांधीजी से पहले राजा राममोहन राय और बाल गंगाधर तिलक ने भी इस पर जोर दिया कि बोलने की आजादी समाज का हिस्सा हो तो व्यवस्था को सुधरने का अवसर मिलता है. यही कारण है कि जब भारत आजाद हुआ और संविधान की रचना हुई तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया. हमारे संविधान निर्माताओं को तब यह अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि इस देश में प्रज्ञा ठाकुर जैसी महिला भी होगी, जो बोलने की आजादी का दुरुपयोग करेगी.
मुझे तो भारतीय जनता पार्टी की मंशा पर गंभीर शंका है, क्योंकि उसने प्रज्ञा के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला. क्या इसे मौन समर्थन माना जाए? मध्य प्रदेश में खरगोन की सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल इतना कहा कि गोडसे वाले बयान के लिए वे प्रज्ञा को मन से कभी माफ नहीं करेंगे! क्या केवल इतना सा बयान काफी है? बिल्कुल नहीं! हकीकत तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से प्रज्ञा के साथ खड़ी है. भोपाल की एक सीट हासिल करने के लिए आतंकवाद की आरोपी को न केवल पार्टी का सदस्य बनाया, बल्कि चुनाव में भी खड़ा कर दिया. ऐसी पार्टी से आप प्रज्ञा के खिलाफ किसी कार्रवाई की उम्मीद भी कैसे कर सकते हैं?
उम्मीद मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार से की जानी चाहिए थी कि वह प्रज्ञा के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई करती, लेकिन उसने भी कुछ नहीं किया. सवाल यह है कि जब जेएनयू में भाषण देने को लेकर कन्हैया के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का कार्टून बनाने वाले के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, ममता बनर्जी का कार्टून बनाने वाली प्रियंका शर्मा गिरफ्तार हो सकती हैं तो प्रज्ञा के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती? मगर मध्य प्रदेश सरकार की चुप्पी आश्चर्यजनक है.