विजय दर्डा का ब्लॉग: सड़कों पर दुर्घटना और प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती
By विजय दर्डा | Published: March 22, 2021 09:32 AM2021-03-22T09:32:20+5:302021-03-22T09:32:20+5:30
भारत में सड़क सुरक्षा और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए मॉनिटरिंग की व्यवस्था और ठीक करने की जरूरत है।
निश्चय ही केंद्र सरकार की वाहन कबाड़ नीति एक उम्मीद जगाती है कि शायद आने वाले वर्षो में सबकुछ ठीक हो जाए! लेकिन मन में एक सवाल भी पैदा होता है कि कानूनों की अभी भी कौन सी कमी है? ढेर सारे कानून हैं जिनका सख्ती से पालन हो जाए तो हिंदुस्तान की सड़कें सुरक्षित हो सकती हैं और वाहनों के प्रदूषण से हमारे फेफड़े बच सकते हैं.
वैसे केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी विश्वास दिला रहे हैं कि नई नीति से सड़कों पर सुरक्षा बढ़ेगी और प्रदूषण कम होगा. इसके लिए उन्होंने वाहन के स्क्रैप का मूल्य देने और रोड टैक्स में 25 फीसदी छूट का ऐलान भी किया है.
हिंदुस्तान की सड़कों पर सुरक्षा वाकई एक बहुत बड़ा मसला है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे औसतन 53 दुर्घटनाएं होती हैं और हर चार मिनट में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है. जो लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं उनमें से 76 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की उम्र 18 से 45 साल के बीच है.
भारत में सालाना साढ़े चार लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटना
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि हिंदुस्तान में सालाना साढ़े चार लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और इसमें डेढ़ लाख लोगों की जान चली जाती है. पिछले दस सालों में सड़क दुर्घटनाओं ने 13 लाख लोगों की जानें ली हैं और 50 लाख लोग घायल हुए हैं. घायलों में हजारों लोग ऐसे हैं जिनकी जिंदगी तबाह हो गई.
अब जरा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की तुलना कीजिए. आप जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि भारत के पास दुनिया का केवल एक प्रतिशत वाहन है लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मामले में भारत का हिस्सा 11 प्रतिशत है! यानी हमारी सड़कें कब्रगाह बनी हुई हैं. हमारी नीतियों में भले ही ज्यादा गड़बड़ी न रही हो लेकिन कानून के पालन में चूक तो जरूर है वर्ना इतनी मौतें होती क्यों? और हां, इस बात पर भी गौर करिए कि दुर्घटना में यदि किसी की मौत हो जाती है या कोई पूरी तरह अपंग हो जाता है तो उसका पूरा परिवार तबाह हो जाता है.
इस सामाजिक और आर्थिक क्षति का आंकड़ा बहुत बड़ा है. इस पर तो किसी का ध्यान ही नहीं है! यदि दुर्घटनाएं रुक जाएं तो जिंदगी भी बचेगी और आर्थिक नुकसान से भी बचेंगे!
दुर्घटनाओं के पीछे के कारणों की यदि हम पड़ताल करें तो एक बात साफ समझ में आती है कि हमारे यहां वाहन चालकों को प्रशिक्षित करने की ठीक व्यवस्था नहीं है.
लाइसेंस मिल जाना कोई कठिन काम नहीं है. सड़कों पर बेलगाम वाहन चालकों को दबोचने की माकूल व्यवस्था नहीं है. यदि आप विदेशों में जाएं तो वहां सड़क पर कोई उद्दंडता आपको दिखाई ही नहीं देगी. यदि किसी ने रफ्तार की सीमा पार की तो अगले पड़ाव से पहले वह पकड़ा जाएगा. उसे भारी दंड भुगतना पड़ता है और दूसरी- तीसरी बार यदि गलती कर दी तो लाइसेंस सदा के लिए निरस्त हो जाता है.
मॉनिटरिंग की व्यवस्था ठीक करने की जरूरत
भारत में भी एक कड़े कानून की बात हुई और 2019 में मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन किया गया ताकि ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जा सके! एक्ट में संशोधन का लक्ष्य लोगों में यह भय पैदा करना था कि ट्रैफिक नियमों को तोड़ेंगे तो ज्यादा जुर्माना देना होगा. उसके बाद भी सड़क दुर्घटनाओं और मृतकों की संख्या को देखें तो मुझे नहीं लगता कि जुर्माना बढ़ाने से कोई फर्क पड़ा है. दरअसल हमारे यहां मॉनिटरिंग की व्यवस्था ठीक नहीं है तो दंड कैसे दे पाएंगे?
अब जरा वाहनों से निकलने वाले खतरनाक धुएं की बात करें. आप देश के किसी भी शहर में किसी भी सड़क पर निकल जाएं, काले धुएं छोड़ते हुए वाहन फर्राटे से निकलते नजर आ जाएंगे! कोई रोक-टोक नहीं! कभी-कभार खानापूर्ति के लिए जांच जरूर हो जाती है.
नियम है कि हर वाहन के पास ‘पीयूसी’ यानी पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट होना जरूरी है लेकिन हम में से कौन नहीं जानता कि तमाम कानूनों के बावजूद यह सर्टिफिकेट प्राप्त करना कितना आसान है! मुझे लगता है कि सरकार को इस दिशा में ज्यादा सख्ती बरतनी चाहिए क्योंकि प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है.
पुराने व कंडम वाहनों से निकलने वाले धुएं से शहर की हवा जहरीली हो रही है. कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी घातक गैस व लैरोसेल जैसे हानिकारक कणों ने हवा को जहरीला बना दिया है. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि 50 लाख से ज्यादा ऐसे वाहन हैं जिनकी उम्र 15 से 20 साल पुरानी है.
प्रदूषण मुक्त दिनों की वापसी की उम्मीद
अब नई कबाड़ नीति का यदि ठीक से पालन हो जाए तो ऐसे वाहनों को स्क्रैप किया जा सकेगा. जाहिर सी बात है कि पुराने वाहन सड़क से हटेंगे तो नए वाहनों की जरूरत होगी. इससे वाहन इंडस्ट्री को बूम मिलने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन यह सब तभी हो पाएगा जब कानून का पालन हो. लोग खुद तो सुधरने से रहे इसलिए सरकार को ही सख्ती करनी होगी.
उम्मीद करें कि किसी दिन हमारी सड़कें सुरक्षित भी होंगी और प्रदूषण से मुक्त भी! जरा याद कीजिए कि लॉकडाउन के दौरान दुर्घटनाएं तो रुकी ही थीं, प्रदूषण करीब-करीब खत्म हो गया था, शहरों में पशु-पक्षी भी लौट आए थे. लॉकडाउन खत्म हुआ तो जाहिर है कि वाहन सड़कों पर लौट आए और फिर से हालात बदतर हो गए. क्या हम प्रदूषण मुक्त दिन फिर वापस नहीं ला सकते?