विजय दर्डा का ब्लॉग: राष्ट्रीय एकता की खूबसूरत मिसाल हैं हमारे उत्सव

By विजय दर्डा | Published: October 7, 2019 05:40 AM2019-10-07T05:40:24+5:302019-10-07T05:40:24+5:30

त्यौहार केवल उल्लास का अवसर नहीं है बल्कि यह अवसर है अपनी चेतना को जगाने का, अपने विचारों को श्रेष्ठ बनाने का. और हां, हमारे त्यौहारों का एक खास सामाजिक संदेश भी है. जब हम त्यौहार मनाते हैं तो परिवार एक होता है, समाज एक होता है, हम एक दूसरे के निकट आते हैं.

Vijay Darda Blog: Our Festivals are beautiful examples of national unity | विजय दर्डा का ब्लॉग: राष्ट्रीय एकता की खूबसूरत मिसाल हैं हमारे उत्सव

गुजरात के सूरत में हुई महाआरती का एक दृश्य। (प्रतीकात्मक तस्वीर, सोर्स- एएनआई)

सबसे पहले आप सभी को मां की आराधना के महापर्व नवरात्रि और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दशहरे की ढेर सारी शुभकामनाएं. आपका जीवन हर प्राकृतिक शक्ति से परिपूर्ण रहे और आप अच्छाई के मार्ग पर चलते रहें तथा राष्ट्र को अधिक मजबूत करते रहें. इस देश का आम आदमी शक्तिवान होगा तो देश की शक्ति बढ़ेगी. हर आदमी अच्छाई की राह पर चलेगा तो बुराइयों पर विजय पाने में बड़ी मदद मिलेगी. विकास के रास्ते पर देश की रफ्तार और तेज हो जाएगी.

आज नवरात्रि का नवां दिन है. बीते आठ दिनों में हम सबने मिलकर तीन देवियों महालक्ष्मी, महासरस्वती और मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की खूब आराधना की है. भक्तिभाव में तल्लीन रहे हैं और डांडिया रास का भी खूब लुत्फ उठाया है. आज नवरात्रि का यह त्यौहार पूर्ण हो रहा है. कल हम दशहरा मनाएंगे.

वक्त के साथ त्यौहार की रौनक जरूर बढ़ी है लेकिन आराधना का मूल स्वरूप बरकरार है और संदेश भी बहुत स्पष्ट है. मां से बड़ी कोई शक्ति नहीं. ईश्वर के सबसे ज्यादा करीब मां ही है क्योंकि मां को अपने अंश से एक नया जीवन सृजित करने की नेमत ईश्वर ने सौंपी है. हम में से किसी ने ईश्वर को नहीं देखा है लेकिन साक्षात ईश्वर की प्रतिनिधि अपनी मां को देखा है. उनका प्यार पाया है. मां जैसा दूजा और न कोई! इसीलिए कविता की दुनिया के जाने माने हस्ताक्षर स्व. ओम व्यास ‘ओम’ ने लिखा है-
मां पृथ्वी है, जगत है, धुरी है
मां बिना
इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है.

महालक्ष्मी, महासरस्वती और मां दुर्गा की आराधना का संदेश यही है कि जीवन में धन-धान्य और वैभव के साथ विद्या और पवित्रता का बहुत महत्व है. ये सभी शक्तियां हैं जो हमें परिपूर्ण बनाने के लिए बहुत जरूरी हैं. इन शक्तियों के बिना हम बुराई पर जीत हासिल नहीं कर सकते इसलिए इन्हें हासिल करना आवश्यक है. हां, आराधना में जिस तरह पवित्रता बहुत जरूरी है उसी तरह इन शक्तियों को प्राप्त करने का मार्ग अच्छाई से होकर गुजरना चाहिए. दशहरे के अवसर पर हम हर साल प्रभु श्रीरामचंद्रजी को रावण के ऊपर तीर चलाते हुए देखते हैं लेकिन क्या इस बात पर कभी विचार किया है कि प्रभु श्रीरामचंद्रजी को इतिहास ने मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा है?

दरअसल प्रभु श्रीराम ने कभी मनुष्य और मनुष्य में भेदभाव नहीं किया, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया. यह बात समझना जरूरी है कि यदि हम भेदभाव करते हैं तो हकीकत में हम प्रभु श्रीरामचंद्रजी की आराधना नहीं कर रहे होते हैं. सबका रक्त लाल है, सब एक जैसे हैं, सभी धर्म एकता का संदेश देते हैं, राष्ट्र की सोच एक है और श्रेष्ठ है हमारा तिरंगा, जो बंधुभाव का सबसे बड़ा प्रतीक है. प्रभु श्रीराम का उत्सव मनाने से वे प्रसन्न नहीं होंगे, यह हमें समझना होगा और खास तौर पर उन्हें समझना होगा जिनके ऊपर राष्ट्र की जिम्मेदारी है. हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी जैसा बनना है तो उनका जो आचरण था वैसा ही आचरण हमें भी करना होगा.

नवरात्रि के मौके पर यह परंपरा है कि नौ छोटी बच्चियों की पूजा की जाती है और उन्हें भोजन कराया जाता है. इसे कन्या पूजन कहते हैं. इस परंपरा का भी बड़ा साफ संदेश है कि हमें लड़कियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से इस भाव में बड़ी कमी आई है. आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में और कई घरों में लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है. इस सामाजिक बुराई के खिलाफ चल रही जंग में हम सभी की सहभागिता बहुत जरूरी है. हमारी संस्कृति हमें लड़कियों का आदर करना सिखाती है लेकिन वक्त के साथ जन्मी बुराइयों ने इसमें बाधा पैदा की है. इस बुराई को जड़ से खत्म करना बहुत जरूरी है. तभी हम नवरात्रि की आराधना को सार्थक कह सकते हैं.

दरअसल हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति आखिर हमें क्या सिखाती है.  हम पयरूषण पर्व मनाते हैं, गणोशोत्सव, महालक्ष्मी, नवरात्रि, दशहरा, दिवाली, बुद्ध पूर्णिमा, ओणम, ईद, क्रिसमस और गुरुओं के प्रकाश पर्व के माध्यम से एक नई सीख और समझ से हम रूबरू होते हैं. त्यौहार केवल उल्लास का अवसर नहीं है बल्कि यह अवसर है अपनी चेतना को जगाने का, अपने विचारों को श्रेष्ठ बनाने का. और हां, हमारे त्यौहारों का एक खास सामाजिक संदेश भी है. जब हम त्यौहार मनाते हैं तो परिवार एक होता है, समाज एक होता है, हम एक दूसरे के निकट आते हैं. खुशियां साथ-साथ मनाते हैं तो यह भाव भी पैदा होता है कि कभी दुख की घड़ी भी आई तो एक रहेंगे! इतना ही नहीं, इन त्यौहारों का बहुत बड़ा आर्थिक पक्ष भी है. अवसर उल्लास का होता है तो सभी लोग अपनी क्षमता के अनुसार खर्च भी करते हैं, खर्च की पूर्ति के लिए संसाधन भी जुटाते हैं और निश्चय ही इससे बाजार को बड़ी ताकत
मिलती है. बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ता है तो बाजार भी फलता-फूलता है.

मैं इस समय वड़ोदरा में हूं और महसूस कर रहा हूं कि गरबा एकता और एकात्मता का पर्याय बन चुका है. मैं सौभाग्यशाली हूं कि यहां यूनाइटेड वे के गरबा कार्यक्रम में मुङो शामिल होने का मौका मिला, मां के पूजन का अवसर मिला. यहां 40 हजार लोग एक साथ गरबा कर रहे हैं, 15 से 20 हजार लोग दर्शक दीर्घा में हैं, 80 हजार हाथ-पांव रंग-बिरंगे कॉस्टय़ूम्स में माता रानी की आराधना की धुन पर जब गरबा करते हैं तो राष्ट्र की एकता का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. यही हमारी आशा की किरण है. दुनिया में ऐसा और कहां देखने को मिल सकता है! कहने का आशय यह है कि हमारे जीवन में त्यौहारों का बहुत महत्व है. यदि त्यौहार जीवन में न हों तो सभी ओर नीरसता छा जाएगी. हमें तो इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमसे ज्यादा त्यौहार दुनिया के किसी देश के पास नहीं हैं. हम वाकई बहुत सौभाग्यशाली हैं.

तो एक बार फिर से आप सभी को नवरात्रि की पूर्णता और दशहरे की शुभकामनाएं. आप वैभव, विद्या और विचारों से हमेशा परिपूर्ण रहें. जीवन मंगलमय हो.

Web Title: Vijay Darda Blog: Our Festivals are beautiful examples of national unity

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