विजय दर्डा का ब्लॉग: आम आदमी हूं, मुझे सही जानकारी तो दीजिए!
By विजय दर्डा | Published: May 31, 2021 08:54 AM2021-05-31T08:54:20+5:302021-05-31T08:57:36+5:30
लोगों को आज जब वैक्सीन नहीं मिल रही है तो स्वाभाविक तौर पर वे धैर्य खो रहे हैं. महाराष्ट्र में तो खैर 18 से 44 वर्ष तक के लोगों का टीकाकरण हो ही नहीं रहा है लेकिन जहां हो भी रहा है वहां लोगों को स्लॉट नहीं मिल रहा है.
यह सवाल इस समय हर किसी की जुबान पर है कि पूरे देश को कोरोना का टीका कब तक लग जाएगा? सरकार दावे कर रही है कि दिसंबर तक सबको टीका लग जाएगा मगर विपक्षी दल आंकड़ों का आईना दिखा रहे हैं. आम आदमी भ्रम में है कि हकीकत क्या है? उसे भरोसा नहीं हो रहा है कि दिसंबर तक उसका भी नंबर आ पाएगा.
इस तरह का सवाल पूछने वाले लोगों से मैं हमेशा कहता हूं कि हमें अपनी सरकार पर भरोसा करना चाहिए. यदि प्रधानमंत्री या मंत्रीगण कुछ कहते हैं तो उसके पीछे निश्चय ही उनकी तैयारियां होंगी! मैंने अपने इस कॉलम में पहले भी लिखा था कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी के नहीं बल्कि देश के होते हैं और वे देश के हित में बात करते हैं.
मेरा आज भी इस बात पर विश्वास है. मगर मुझे यह भी लगता है कि प्रधानमंत्री के सामने अधिकारियों को बिल्कुल सही और सटीक जानकारी रखनी चाहिए. सरकार की तरफ से जो भी बात आए वो आंकड़ों की कसौटी पर खरी उतरे. आज आम आदमी के मन में शंका बनी हुई है कि जुलाई से हर दिन एक करोड़ यानी हर महीने 30 करोड़ टीका कहां से लाएंगे?
सवाल वाजिब भी लगता है क्योंकि आंकड़े इसकी गवाही नहीं दे रहे हैं. मेरे सामने एक व्यक्ति ने आंकड़े पसार दिए कि 18 से ज्यादा की उम्र के 90 करोड़ लोगों को टीका लगाने के लिए कुल 180 करोड़ डोज की जरूरत पड़ेगी जबकि अभी तक वैक्सीनेशन के कुल डोज का आंकड़ा 23 करोड़ भी नहीं पहुंचा है!
सीरम इंडिया अभी हर महीने कोविशील्ड के 6.5 करोड़ डोज तैयार कर रहा है. चलिए मान लेते हैं कि वादे के मुताबिक जून में यह संख्या 10 करोड़ तक पहुंच जाएगी. भारत बायोटेक की क्षमता अभी 2.5 से 3 करोड़ प्रति महीने की है और अक्तूबर में 6 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है.
इसमें स्पुतनिक के टीके और भविष्य में मंजूर होने वाले विभिन्न कंपनियों के टीकों को भी जोड़ दें तो अक्तूबर में भी कुल आंकड़ा 20-22 करोड़ प्रति महीने से ज्यादा नहीं पहुंचता है.. और चीन का टीका तो हम लेंगे नहीं क्योंकि उस पर भरोसा नहीं है. पता नहीं वह टीके में क्या मिलाकर भेज दे और हमें लंबे अरसे बाद उससे नुकसान का पता चले.
चलिए यह भी मान लेते हैं कि सरकार दुनिया के दूसरे देशों की कंपनियों से भी कुछ वैक्सीन खरीदना चाहती है लेकिन क्या हमारी जरूरत के अनुसार वे कंपनियां आपूर्ति करेंगी? उनके पास खुद के कमिटमेंट हैं. हमने तो शुरुआती दौर में उनसे टीका खरीदने की बात भी नहीं की. ऐसी हालत में दिसंबर तक सभी के टीकाकरण के आश्वासन पर कोई भरोसा कैसे करे?
लोग कह रहे हैं कि टीके की कमी के बारे में वे जानते हैं. उत्पादन की क्षमता के बारे में भी जानते हैं. ऐसी स्थिति में जब हकीकत से परे कोई दावा सामने आता है तो भ्रम की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है. आम आदमी के सामने सही तस्वीर होनी चाहिए ताकि वह परिस्थितियों का सामना धैर्य के साथ कर सके.
आज जब लोगों को वैक्सीन नहीं मिल रही है तो स्वाभाविक तौर पर वे धैर्य खो रहे हैं. महाराष्ट्र में तो खैर 18 से 44 वर्ष तक के लोगों का टीकाकरण हो ही नहीं रहा है लेकिन जहां हो भी रहा है वहां लोगों को स्लॉट नहीं मिल रहा है. स्लॉट बुकिंग कब खुलती है, यह भी किसी को पता नहीं रहता है. हालात वाकई बहुत अराजक हैं. 45 साल से अधिक वालों को भी टीके के लिए परेशान होना पड़ रहा है.
भाजपा के एक सांसद जो खुद डॉक्टर भी हैं, उन्हें दूसरे डोज के लिए भागदौड़ करते मैंने खुद देखा है. इस समय जब मैं ये कॉलम लिख रहा हूं तब भी उनके अस्पताल को दूसरे डोज के लिए वैक्सीन नहीं मिली है. जरा सोचिए कि आम आदमी कितना परेशान है! केंद्र सरकार कुछ टीका राज्यों को दे रही है लेकिन बाकी के लिए कह दिया कि कंपनियों से खरीदो! जब टीका ही उपलब्ध नहीं है तो कहां से खरीदो? इसका नतीजा है कि बहुत से राज्यों में युवाओं का टीकाकरण रुका पड़ा है जबकि कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा शिकार युवा ही हो रहे हैं!
आज यदि लोग यह मान रहे हैं कि वैक्सीनेशन के मामले में सरकार की किरकिरी हुई है तो यह हकीकत है. यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को नीचा देखना पड़ रहा है. शुरुआती दौर में भारत ने पड़ोसी मुल्कों को वैक्सीन की खेप भेजी भी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से दूरदराज के देशों को भी वैक्सीन भेजी जा रही थी लेकिन अब भारत कमिटमेंट पूरा नहीं कर पा रहा है.
ध्यान रखिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख है और उसे नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा जाता है. आज यह स्थिति क्यों पैदा हो गई कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि भारत 20 करोड़ डोज का अपना कमिटमेंट पूरा नहीं कर पा रहा है? आखिर कहीं न कहीं तो चूक हुई ही है! हम परिस्थितियों का सटीक आकलन करने में असफल रहे हैं.
अब जरूरत इस बात की है कि भारत सरकार इस मामले में पूरी पारदर्शिता बरते. देश के नागरिकों को हर एक सच्चई पता होनी चाहिए क्योंकि कोरोना के खिलाफ असली जंग तो आम आदमी ही लड़ रहा है और उसे ही लड़ना है. जब जानकारियां स्पष्ट होंगी तो तैयारियां भी उसी के अनुरूप होंगी. और हां, कुछ ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास को आधार बनाकर टीके के संदर्भ में कुछ बेवकूफाना भ्रम फैलाए जा रहे हैं, उससे भी निपटने और लोगों में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि कोरोना से जंग में हम कहीं कमजोर न पड़ जाएं.