विजय दर्डा का ब्लाग: राजनीति के तमाशे से दिल को पहुंची गहरी ठेस

By विजय दर्डा | Published: March 29, 2021 03:01 PM2021-03-29T15:01:12+5:302021-03-29T15:01:12+5:30

महाराष्ट्र में हमेशा से मिलजुल कर काम करने की परंपरा रही है. यही कारण है कि हमारे यहां राजनीतिक अस्थिरता की समस्या कम उत्पन्न हुई.

Vijay Darda Blog Heartbreak hits politics with spectacle of politics | विजय दर्डा का ब्लाग: राजनीति के तमाशे से दिल को पहुंची गहरी ठेस

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

विचारों की भिन्नता लोकतंत्र में एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी भी है लेकिन महाराष्ट्र में राजनीति का मैं जो तमाशा देख रहा हूं उससे मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची है. इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है वह अत्यंत चिंताजनक है. ठेस हर उस व्यक्ति को लगी है जो राजनीति से इतर अपने महाराष्ट्र से प्यार करता है. इस पूरे मामले में न आघाड़ी की जीत है और न भाजपा की जीत है. महाराष्ट्र जरूर शर्मसार हुआ है. वाङो प्रकरण ने महाराष्ट्र की प्रशासनिक साख को मिट्टी में मिला दिया है.

हम लोग बड़े गर्व से कहते हैं, राष्ट्र में राष्ट्र, महाराष्ट्र! महाराष्ट्र को श्रेष्ठता के मुकाम पर पहुंचाने में हमारे नेतृत्वकर्ताओं की एक लंबी फेहरिस्त है. उन्होंने ही इस प्रदेश को अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से संवारा है. इसे एक पौधे से वटवृक्ष और बोधिवृक्ष का रूप दिया जिसमें पूरे देश के लोग छांव तलाशते हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज की मूल्यों पर आधारित शासन व्यवस्था का प्रण यशवंतराव चव्हाण ने लिया था और उसके मुताबिक शासन व्यवस्था आगे बढ़ी. 

मारोतराव कन्नमवार, वसंतराव नाईक, वसंतदादा पाटिल, प्रतिभाताई पाटिल, शंकरराव चव्हाण, श्रीपाद अमृत डांगे, बालासाहब ठाकरे, जवाहरलाल दर्डा, शरद पवार, केशवराव धोंडगे, गणपतराव देशमुख, रामभाऊ म्हालगी, धनंजयराव गाडगिल, पंजाबराव देशमुख, राम नाईक, राम कापसे, उत्तमराव पाटिल, बापूसाहब कालदाते, एनडी पाटिल और न जाने कितने नेतृत्वकर्ताओं ने योगदान दिया है. 

सबकी अपनी विचारधारा और अपनी राजनीतिक मान्यता थी लेकिन सबका दृष्टिकोण एक था-महाराष्ट्र का विकास और आम आदमी की खुशहाली. उन नेताओं के समर्पण के कारण ही आज हमारा महाराष्ट्र कृषि से लेकर उद्योग तक में अग्रणी है.‘आया राम गया राम’ की विपदा का सामना नहीं करना पड़ा. जब एंटी डिफेक्शन लॉ नहीं था तब भी हमारे यहां राजनीतिक सुकून की स्थिति थी. इस स्थिरता का ही नतीजा था कि महाराष्ट्र में कई ऐसी योजनाएं शुरू हुईं जिन्हें देश ने बाद में अपनाया. 

शिक्षा, सहकार, बैंकिंग, हरित क्रांति, रोजगार गारंटी योजना, टंटा मुक्त गांव, स्वच्छ ग्राम अभियान महाराष्ट्र की ही देन है. उस वक्त राजनेताओं और अधिकारियों के बीच भी गजब का समन्वय हुआ करता था. अच्छे अधिकारियों की पूछपरख होती थी और तिकड़मी अधिकारियों को उनकी औकात भी दिखाई जाती थी. महाराष्ट्र में श्रेष्ठ अधिकारियों के सृजन की इसी लंबी परंपरा ने यहां के प्रशासन को एक साख दी. आज भी महाराष्ट्र के अधिकारियों को पूरे देश में सम्मान के साथ देखा जाता है. यहां तक कि जब कोई युवा भारतीय प्रशासनिक सेवा या भारतीय पुलिस सेवा में चुनकर आता है तो उसकी पहली प्राथमिकता महाराष्ट्र कैडर में शामिल होना होता है.

मुझे याद है कि मेरा गृहनगर यवतमाल लंबे समय तक राजनीतिक शक्ति का केंद्र रहा. वसंतराव नाईक, सुधाकरराव नाईक और मेरे बाबूजी जवाहरलाल दर्डा सत्ता के केंद्र में रहे तो दूसरी ओर जांबुवंतराव धोटे जैसे विपक्षी कद्दावर नेता थे. सामान्य तौर पर जहां बड़े नेता होते हैं वहां पोस्टिंग से अधिकारी बचने की कोशिश करते हैं क्योंकि उन्हें दबाव का भय होता है लेकिन उस समय हर आईएएस या आईपीएस अधिकारी की चाहत रहती थी कि उसकी पोस्टिंग यवतमाल में ही हो. ..तो महाराष्ट्र की ऐसी परंपरा रही है. 

महाराष्ट्र में 1972 में अकाल पड़ा था और तब पुणे में एक जनसभा को संबोधित करते हुए वसंतराव नाईक ने कहा था कि दो वर्षो में महाराष्ट्र को अनाज के मामले में यदि आत्मनिर्भर नहीं बना दिया तो यहीं मुङो फांसी पर लटका देना! उनकी घोषणा को सच में बदलने के लिए अधिकारियों ने जी-जान लगा दिया था. महाराष्ट्र में हरित क्रांति हो गई.आज भी ज्यादातर अधिकारी समर्पित और अनुशासित हैं लेकिन वीभत्स स्वरूप भी सामने आ रहा है. 

पहले हम बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों के बारे में सुनते थे कि वहां पर आईएएस, आईपीएस जाति और धर्म के नाम पर राजनीति के मोहरे बनकर काम करते हैं. यह भी सुनते थे कि पदों पर आसीन होने के लिए बोलियां लगती हैं. आज मन में सवाल उठता है कि क्या गैंग जैसी स्थिति महाराष्ट्र में भी आ गई है? इसका जवाब तो वक्त ही देगा लेकिन सवाल तो उठ ही रहे हैं कि कोई अधिकारी इतना बेलगाम कैसे हो सकता है? यह पहली बार देखने में आया है कि किसी अधिकारी ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. 

इस पूरे मामले में मूल मुद्दा है कि मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास जिलेटिन छड़ों के साथ गाड़ी किसने रखी? क्यों रखी और किसके कहने पर रखी? इसका कर्णधार कौन था और मकसद क्या था? मनसुख हिरेन की हत्या किसने की? बहुत सारे सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं! ये सवाल कहीं गुम न हो जाएं!राजनीति के इस तमाशे में जब आरोप-प्रत्यारोप से भी आगे जाकर षड्यंत्रों को आकार लेते देखता हूं तो मन विचलित हो जाता है. राजनीति अपने हितों के लिए अधिकारियों का उपयोग कर रही है और अधिकारी अपने हितों के लिए राजनेताओं का उपयोग कर रहे हैं. यहां प्रशासन ने गैंग का रूप ले लिया है. 

गैंग की तरह पुलिस में दल बन गए हैं और उसी प्रकार से आईएएस में दल बन गए हैं. जो अपने दल का है उसे अच्छी पोस्टिंग दे दी. कल तक सरकारें आती थीं जाती थीं, कभी भी अधिकारियों को डर नहीं लगा. हमारे सामने जूलियो रिबेरो और सरबदीप सिंह विर्क का उदाहरण है जिन्होंने महाराष्ट्र से बाहर जाकर देश को संकटों से बाहर निकाला.दुर्भाग्य है कि आज एक-दूसरे को नीचा दिखाने का अभियान चल रहा है! 

राजनीति को राजनीति की काली छाया ने ही घेर लिया है? ऐसे बहुत से सवाल हैं और इसका जवाब भी राजनीति को ही देना है. नेताओं को अपना कद इतना बड़ा करना होगा कि वे प्रशासनिक अमले को बहकने और अपनी मनमर्जी करने से रोक सकें. राजनेताओं के आपसी झगड़े यदि नहीं मिटेंगे तो हालात और बदतर होते जाएंगे. फिर शर्मसार करने वाले प्रकरणों की श्रृंखला शुरू हो जाएगी.
संभलिए जनाब!
ये वक्त सुधरने का है!

Web Title: Vijay Darda Blog Heartbreak hits politics with spectacle of politics

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