विजय दर्डा का ब्लॉग: ए भाई..! ये पब्लिक है..सब जानती है..!

By विजय दर्डा | Published: March 14, 2022 09:25 AM2022-03-14T09:25:32+5:302022-03-15T10:17:10+5:30

विधासभा चुनाव में भाजपा चौका मारने में क्यों सफल हुई? पंजाब में आम आदमी पार्टी को मौका क्यों मिला और कांग्रेस के फेल होने की वजह क्या है?

Vijay Darda blog election results Why BJP succeed and AAP given chance in Punjab reason of Congress collapse | विजय दर्डा का ब्लॉग: ए भाई..! ये पब्लिक है..सब जानती है..!

भाजपा की जीत के पीछे की कहानी (फाइल फोटो)

एक्जिट पोल से भी काफी पहले मैंने अपने साथियों से कहा था कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार लौट रही है. भाजपा को ढाई सौ से ज्यादा सीटें मिलेंगी. कई लोग मुझसे असहमत थे क्योंकि हवा का रुख सपा की ओर दिख रहा था. ..लेकिन मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी में जी-जान से जुटे गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली पर नजर रख रहा था. वाकई इस जीत का श्रेय इन तीनों को ही जाता है.

प्रधानमंत्री ने सबका विकास, महिलाओं का साथ, सामाजिक योजनाओं का क्रियान्वयन और सोशल इंजीनियरिंग का जो विश्वास जगाया, अमित शाह ने जो व्यूह रचना की, योगी आदित्यनाथ ने कानून का राज और भयमुक्त यूपी की जो छवि बनाई उसने भाजपा को जीत का रास्ता दिखाया. 

अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगा दी, हवा का रुख अपनी ओर करने की बहुत कोशिश की लेकिन कुर्सी उनके पास नहीं आई. इसका कारण यह है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह या योगीजी साल के 365 दिन मैदान में डटे रहते हैं. अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में रखते हैं. मुझे याद है कि कोविड के कठिन दौर में आरएसएस और भाजपा कार्यकताओं ने लोगों की किस तरह मदद की जबकि दूसरे दलों के ज्यादातर नेता घरों में दुबके रहे. 

चुनाव में भी दूसरे दल कुछ महीने पहले ही मैदान में कूदते हैं जबकि संघ और भाजपा वहां पहले से मौजूद होती है. इन सबका बहुत असर पड़ता है. ये पब्लिक है, सब जानती है, नेता क्या..अभिनेता क्या.. सबको पहचानती है.  

उत्तरप्रदेश में शायद पहली बार ऐसा हुआ कि जातिगत और धार्मिक राजनीति नहीं चली. मुसलमानों ने ओवैसी को वोट नहीं दिया. कांग्रेस को वोट नहीं दिया क्योंकि उन्हें एहसास था कि इन दलों को वोट देना मतलब वोट व्यर्थ करना है. हवा सपा के पक्ष में दिख रही थी इसलिए उसे वोट दिया. किसानों ने भी सपा का साथ दिया. इधर मायावती अपने ऊपर लगे मुकदमों के कारण इतने दबाव में थीं कि चुनाव के पहले ही मैदान छोड़ दिया मगर उन्हें उम्मीद थी कि 20-25 सीटें मिल जाएंगी तो राजनीतिक रोटी सेंकती रहेंगी लेकिन उनके वोटर्स ने भ्रम तोड़ दिया. वोट भाजपा को दिया. इस बीच यूपी में पहली बार ऐसा हुआ कि पांच साल काम करने के बाद भी कोई मुख्यमंत्री दोबारा चुनकर आया.

मैं किसी भी परिस्थिति को कभी राजनीतिक नजरिये से नहीं देखता बल्कि वास्तविकता के आधार पर विश्लेषण करता हूं. यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि असंभव को संभव कर दिखाने की इस क्षमता के कारण ही नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के शंकराचार्य के रूप में उभरे हैं. उनकी गरिमा राजनीति से हट कर एक साधु स्टेट्समैन की हो गई है. जब मैंने 2012 में एक कार्यक्रम के दौरान मोदीजी के बारे में कहा था कि यह गुजरात का शेर है और राजकीय संत है तो हंगामा हो गया था! कार्यक्रम में मौजूद मोदीजी ने उसी वक्त कहा था कि आपने मुझे शेर कहा, संत कहा, आपको बहुत तकलीफ होगी. मुझे वाकई बहुत तकलीफ झेलनी भी पड़ी.

खैर, मैं बात चुनाव की कर रहा हूं तो मुझे खयाल आया कि यूपी तो आदित्य ठाकरे भी पहुंचे थे! 100 सीटों पर लड़ने की घोषणा की थी लेकिन लड़े केवल 37 पर और सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गई! शिवसेना का यही हाल गोवा में भी हुआ! 

चलिए, अब जरा कांग्रेस की दुर्दशा पर नजर डाल लेते हैं. वहां प्रियंका गांधी फ्रंट फुट पर खेल रही थीं मगर हुआ क्या? कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. जहां हाथरस और लखीमपुर खीरी में उन्होंने आंदोलन किया था वहां की सीटें भी भाजपा की झोली में चली गईं! कांग्रेस की जागीर समझी जाने वाली अमेठी से राहुल गांधी पहले ही लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं. विधानसभा में रायबरेली भी नहीं बचा! मैंने अपने इसी कॉलम में बहुत पहले लिखा था कि प्रियंका गांधी का उपयोग दस-बारह साल पहले ही करना चाहिए था. अब देर हो चुकी है. 

कांग्रेस को आत्मशोधन करना चाहिए और नेतृत्व बदलना चाहिए. लोगों को गांधी परिवार से शिकायत नहीं है बल्कि शिकायत यह है कि जिन लोगों के पास जनाधार है उन्हें डिस्टर्ब किया जा रहा है. जिस व्यक्ति का कोई जनाधार नहीं है, उसे पार्टी जनरल सेक्रेटरी बना देती है! पार्टी की हालत को देखकर चुनाव के पहले ही ए.के. एंटोनी ने कह दिया था कि वे संन्यास ले रहे हैं. मुझे तो लगता है कि आने वाले दिनों में बहुत से लोग पार्टी छोड़ देंगे क्योंकि उनकी पूछ-परख ही नहीं है.

मैं मोदीजी की इस बात से सहमत नहीं हूं कि कांग्रेसमुक्त भारत होना चाहिए. लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना ही चाहिए लेकिन ये करेगा कौन? विपक्ष तो विपक्ष जैसा बर्ताव करता ही नहीं है. कांग्रेस का बर्ताव देखकर मुझे कई बार शंका होती है कि कांग्रेस कहीं भीतर ही भीतर भाजपा से मिली हुई तो नहीं है? वर्ना जो लोग जीतने वाले हैं उन्हें बाहर का रास्ता क्यों दिखा देती है? 

पंजाब का सत्यानाश करने वाली तो कांग्रेस ही है. यदि सत्यानाश नहीं किया होता तो आज ये स्थिति होती क्या? कैप्टर अमरिंदर सिंह हार गए, सिद्धू हार गए. लोगों ने कहा कि अब तमाशा नहीं होना! पंजाब में हार के लिए कांग्रेस खुद दोषी है. 

अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप को पंजाब में लोगों ने मौका इसलिए दिया क्योंकि दिल्ली में साफ-सुथरी सरकार देकर यह साबित कर दिया कि हम अच्छी तरह से सरकार चला सकते हैं. जो वादे किए थे वो राजनीतिक नहीं थे. उसे पूरा करके दिखाया. गरीबों को मुफ्त बिजली, मोहल्ला क्लीनिक, स्कूलों की स्थिति में सुधार जैसे उल्लेखनीय काम करके दिखाया. जिस प्रकार ममता बनर्जी ने खुद का कद राष्ट्रीय स्तर का बनाया उसी प्रकार अरविंद केजरीवाल भी उभर कर सामने आए हैं. उनके साथ इस बात का फायदा है कि वे हिंदी भाषी प्रदेश से आते हैं.

मणिपुर में तो भाजपा को जीतना ही था. पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा और आरएसएस का तेजी से कब्जा हुआ है क्योंकि कांग्रेस ने खुद को वहां भी तबाह कर लिया है. उत्तराखंड और गोवा भी कांग्रेस ने खुद गंवाए हैं. उत्तराखंड कांग्रेस की ओर आता दिख रहा था लेकिन एक समुदाय के पक्ष में हरीश रावत की बयानबाजी ले डूबी. उसी वक्त मैंने एक मित्र से कहा कि कांग्रेस गई यहां से! वही हुआ भी. 

जहां तक गोवा का सवाल है तो वहां जीत का सारा क्रेडिट देवेंद्र फडणवीस को है. हारी हुई बाजी को उन्होंने चतुर रणनीति, एकजुटता और विश्वास जगा कर जीत लिया. मेरे एक दोस्त ने तो मजाक में कहा भी कि जब तक महाराष्ट्र की जगह खाली नहीं होती तब तक फडणवीस को गोवा का मुख्यमंत्री बना दो..!

बहरहाल, लोग फिर यह सवाल पूछ रहे हैं कि कांग्रेस यह क्यों नहीं समझती कि वह खुद का नुकसान तो कर ही रही है, देश का भी नुकसान कर रही है. भाजपा का विकल्प बनने की संभावना केवल उसी के पास है. क्षेत्रीय पार्टियां विकल्प नहीं हो सकतीं. 2-2 फुट के तीन आदमी को मिलाकर आप छह फुट का आदमी तैयार नहीं कर सकते! 

कांग्रेस के जी-23 के नेताओं के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. उन्हें अब सशक्त आवाज उठानी चाहिए ताकि कांग्रेस को बचाया जा सके.

मन बहलाने के लिए कांग्रेस कह सकती है कि भाजपा की भी कभी दो सीटें थीं लेकिन आज वो इस मुकाम पर है. हम भी नीचे आ गए तो क्या..? फिर से पहले वाले मुकाम पर पहुंच जाएंगे! फिलहाल तो दिल बहलाने के लिए ये खयाल अच्छा है गालिब..!

Web Title: Vijay Darda blog election results Why BJP succeed and AAP given chance in Punjab reason of Congress collapse

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