विजय दर्डा का ब्लॉग: बोरिस जॉनसन...नरेंद्र मोदी और भारत...

By विजय दर्डा | Published: April 25, 2022 01:56 PM2022-04-25T13:56:29+5:302022-04-25T13:56:29+5:30

भारत दुनिया में अपनी स्वतंत्र और दृढ़ छवि बनाए रखने में कामयाब रहा है. किसी देश की आज जुर्रत नहीं कि उसकी उपेक्षा कर दे. ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के भारत दौरे से भी यही साबित हुआ.

Vijay Darda blog: Boris Johnson India visit, meeting with PM Narendra Modi and and its meaning | विजय दर्डा का ब्लॉग: बोरिस जॉनसन...नरेंद्र मोदी और भारत...

विजय दर्डा का ब्लॉग: बोरिस जॉनसन...नरेंद्र मोदी और भारत...

देखिए, दुनिया कैसे बदल जाती है...और कितनी तेजी से बदल जाती है! 75 साल पहले तक हम जिस राष्ट्र ब्रिटेन के गुलाम हुआ करते थे, उस राष्ट्र का प्रधानमंत्री बड़ी उम्मीदें लेकर दो दिनों के दौरे पर भारत आता है और हमारे प्रधानमंत्री को ‘खास दोस्त’ कह कर संबोधित करता है. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े ठसक के साथ बराबरी की स्थिति में बातचीत करते हैं. गर्व होता है कि आज दुनिया में भारत एक मजबूत और स्वतंत्र शक्ति के रूप में खड़ा है और कोई भी देश हमारी उपेक्षा करने की जुर्रत नहीं कर सकता.

जहां तक ब्रिटेन का सवाल है तो ये वो देश है जिसने लंबे समय तक दुनिया के बड़े हिस्से पर राज किया. उसके राज में कभी सूरज नहीं डूबता था. आज भी वह एक महत्वपूर्ण राष्ट्र है. उसकी आवाज पूरी दुनिया में सुनी जाती है. बोरिस जॉनसन दो दिनों के लिए भारत आए तो सबकी नजर लगी रही कि क्यों आए? इस यात्रा के मायने क्या हैं और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आखिर क्या बातचीत हुई? जाहिर सी बात है कि कुछ बातें सामने आती हैं और बहुत सी बातें पर्दे के पीछे रहती हैं.

बोरिस जॉनसन ने कहा कि उन्होंने भारत के साथ भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष और साइबर के क्षेत्र में रक्षा सहयोग पर विस्तार से चर्चा की है. दोनों देश ‘नए जटिल खतरों’ से जूझ रहे हैं. अपनी यात्रा को लेकर वे इतने गद्ग‌द्‌ थे कि उन्होंने कहा कि ‘मुझे सचिन तेंदुलकर जैसा महसूस हुआ. अमिताभ बच्चन की तरह मेरा चेहरा हर जगह था.’ और हां, पीएम नरेंद्र मोदी की यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जॉनसन उस वक्त भारत आए जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है.  

पर्दे के पीछे की कहानी भारत को लुभाने की है. अपने करीब लाने की है. ब्रिटेन ही नहीं अमेरिका से लेकर रूस, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और दूसरे देश भी भारत को अपने करीब रखना चाहते हैं. भारत की आजादी के ठीक बाद के कठिन दौर में पंडित जवाहरलाल नेहरू की गुट निरपेक्ष नीति ने भारत की विदेश नीति की शानदार नींव रखी, इंदिराजी की दृढ़ता और उनके कूटनीतिक खौफ ने भारत की रीढ़ को मजबूत किया.

इंदिराजी और अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में परमाणु विस्फोट ने हमारा मान-सम्मान बढ़ाया. तमाम दबावों के बावजूद न्यूक्लियर बिजली की टेक्नोलॉजी को लागू करने में डॉ. मनमोहन सिंह कामयाब रहे. बीच के दौर के प्रधानमंत्रियों ने स्वतंत्र नीति की वही राह अपनाई और अब  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस नीति में चार चांद लगा दिए हैं. मैं हमेशा कहता रहा हूूं कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में देश के भीतर की राजनीति का उपयोग नहीं होना चाहिए. मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मंदिर-मस्जिद जैसी बेवजह की बाधाओं के बावजूद  मोदीजी ने विदेश नीति में गजब की दृढ़ता दर्शाई है. उन्होंने गजब का वातावरण तैयार किया है. वे भगवान महावीर, भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी के सद्विचारों को लेकर पूरी दुनिया में गए.

बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम अहिंसा और शांति में विश्वास करने वाले राष्ट्र हैं लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि कोई हमें आंख दिखाए और हम चुपचाप देखते रहें!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएनओ के मंच से लेकर दुनिया के तमाम मंचों पर भारत को मजबूत किया है. एक तरफ चीन की नकेल कसने के लिए भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड में शामिल हुआ तो दूसरी ओर अमेरिका की नकेल कसने के लिए शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हो गया. रूस और यूक्रेन के बीच जब जंग शुरू हुई तो भारत ने स्वतंत्र नीति बनाए रखी. ऐसा करना लगभग असंभव सा काम था लेकिन भारत की दृढ़ता के कारण ही यह संभव हो पाया.

रूस से तेल और हथियारों की हमारी खरीद जारी रही. हमारे विदेश मंत्री ने साफ कह दिया कि हम एक महीने में रूस से जितना तेल खरीदते हैं, उतना तो यूरोप के देश केवल एक दोपहर में खरीद लेते हैं. किसी की हिम्मत नहीं हुई कि जवाब दे सके. इसके पहले रूस से एस-400 खरीदने को लेकर तुर्की पर तो अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन भारत के खिलाफ कोई कदम उठाने की हिम्मत अमेरिका नहीं कर पाया. उसे पता है कि भारत ऐसी स्थिति में है कि उसे भी भारत की जरूरत है. यही कारण है कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान खान ने भी भारत की स्वतंत्र नीति और हैसियत की तारीफ की.

मोदीजी ने भारत की मजबूत छवि गढ़ी. 2017 में जब डोकलाम विवाद हुआ तो चीन के सामने ढाई महीने तक हमारी फौज मजबूत दीवार बनकर निडर खड़ी रही. चीन को झुकना पड़ा. गलवान का विवाद और भिड़ंत तो हम सबके सामने है ही. चीन को स्वीकार करना पड़ा कि झड़प में उसके भी सैनिक मारे गए. विवाद जारी है लेकिन भारत ने चीन को समझा दिया है कि यह 1962 का भारत नहीं है. चीन ने पिछले महीने अपने विदेश मंत्री वांग यी को भारत भेजा. वे प्रधानमंत्री से मिलना चाहते थे लेकिन मोदीजी ने मना कर दिया.

आज भारत के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री या किसी भी वरिष्ठ मंत्री से मिलने से कोई इनकार नहीं करता. कभी केवल अमेरिका की यह हैसियत थी, आज हमारी भी है.

इसके साथ ही मोदीजी ने दुनिया को बताया कि इन्वेस्टमेंट के लिहाज से भारत इस समय सबसे बेहतरीन जगह है. हमारे यहां पैसा आ भी रहा है. तमाम परेशानियों के बावजूद हमारी आर्थिक हैसियत सुधर रही है. हम सबको मिलकर अपनी हैसियत को तेजी से मजबूत करना होगा. हम ऐसा कर पाए तभी भारत विश्व गुरु भी बनेगा और फिर से सोने की चिड़िया भी कहलाएगा.

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