विजय दर्डा का ब्लॉग: हेल्थ कार्ड के साथ सवाल सुविधाओं का भी है
By विजय दर्डा | Published: October 4, 2021 12:42 PM2021-10-04T12:42:08+5:302021-10-04T12:42:08+5:30
हेल्थ कार्ड निश्चित रूप से अच्छा कदम है लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का है. कोविड के दौरान हमने देखा कि स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गईं. गांव तो उजड़े हुए थे. वहां कोविड जांच की सुविधा भी नहीं थी.
मैं विकसित देशों में लंबे समय तक काम करके भारत लौटे ऐसे कुछ गिने-चुने डॉक्टर्स को जानता हूं जिनके यहां पर्चा और अन्य रिपोर्ट्स लेकर जाने की जरूरत नहीं होती. यदि आप उनके मरीज हैं तो आपका सारा रिकॉर्ड उनके पास मौजूद होता है.
परामर्श के लिए वक्त लेते समय केवल आपका निर्धारित मेडिकल नंबर बताना होता है. यहां तक कि इनमें से कई डॉक्टर्स ने अपने एप्प विकसित किए हैं और समस्याओं की जानकारी देकर ऑनलाइन परामर्श भी प्राप्त किया जा सकता है.
इन डॉक्टर्स की कार्यप्रणाली को देखकर मेरे मन में हमेशा यह सवाल पैदा होता था कि पूरे भारत की स्वास्थ्य प्रणाली इस तरह की क्यों नहीं हो सकती? इसके लिए कोशिश क्यों नहीं की जा रही है? 15 अगस्त 2020 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल हेल्थ कार्ड का पायलट प्रोजेक्ट देश के कुछ हिस्सों में प्रारंभ किया तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि इसके बेहतर परिणाम मिलेंगे. वही हुआ भी.
केंद्र शासित प्रदेशों अंडमान निकोबार, पुडुचेरी, दादरा-नगर हवेली एवं दमन-दीव, लक्षद्वीप, लद्दाख एवं चंडीगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट के तहत करीब एक लाख कार्ड बन चुके हैं. इसके अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं. 27 सितंबर 2021 को हेल्थ कार्ड पूरे देश में बनाने की शुरुआत की गई है.
चलिए, सबसे पहले यह जानते हैं कि यह कार्ड है क्या? यह कैसे बनेगा और इसके फायदे क्या हैं? अमूमन हमारे देश में जब भी कोई योजना शुरू होती है तो उसे लेकर कई सवाल खड़े हो जाते हैं. सबसे पहला सवाल तो यही होता है कि हमारे डाटा का क्या होगा?
इस मामले में सरकार स्पष्ट तौर पर कह चुकी है कि हर व्यक्ति का डाटा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा क्योंकि डॉक्टर या स्वास्थ्य सेवा देने वाले व्यक्ति के अलावा और कोई इस डाटा को देख नहीं पाएगा. जिस तरह आधार कार्ड में आपकी जानकारी डिजिटल फॉर्म में उपलब्ध रहती है, उसी तरह इस हेल्थ कार्ड में आपके स्वास्थ्य से संबंधित सारी जानकारी रहेगी. आपको डॉक्टर के पास जाते समय पुरानी पर्चियां, जांच रिपोर्ट्स आदि को नहीं ले जाना होगा क्योंकि वो सारी चीजें डिजिटल स्वरूप में सर्वर में उपलब्ध रहेंगी जिसे डिजिटल हेल्थ कार्ड के एक खास नंबर के माध्यम से सहज ही पढ़ा जा सकेगा.
इस मिशन से देश के सभी डॉक्टर, सभी अस्पताल और हर तरह के स्वास्थ्य सेवा प्रदाता आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के सेंट्रल सर्वर से जुड़ेंगे. यदि आपने किसी डॉक्टर को दिखाया है तो वह पर्चा डॉक्टर के क्लीनिक से ही आपके हेल्थ कार्ड सर्वर पर अपलोड हो जाएगा. आपने कोई जांच कराई है तो वह भी अपलोड हो जाएगा. घर बैठे अच्छे से अच्छे डॉक्टर से परामर्श ले पाएंगे.
खासकर आपातकालीन स्थिति में यह हेल्थ कार्ड अलादीन का चिराग साबित होगा. मैंने देखा है कि गंभीर दुर्घटना के समय जब अज्ञात मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है तो यह पता करना मुश्किल होता है कि उसका ब्लड ग्रुप क्या है, क्या उसे डायबिटीज है या कोई और गंभीर समस्या पहले से है? क्या किसी दवाई से संबंधित व्यक्ति को एलर्जी तो नहीं है?
जाहिर सी बात है कि उपचार से पहले ढेर सारा वक्त जानकारी जुटाने में ही जाया हो जाता है. जाहिर तौर पर लोग अपना हेल्थ कार्ड अपने साथ रखेंगे और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में उनके बारे में डॉक्टर को तुरंत सबकुछ पता चल जाएगा. तत्काल उपचार हो सकेगा!
हेल्थ कार्ड निश्चित रूप से अच्छा कदम है लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का है. कोविड के दौरान हमने देखा कि स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गईं. गांव तो उजड़े हुए थे. वहां कोविड जांच की सुविधा भी नहीं थी. गांव के पब्लिक हेल्थ सेंटर हों या फिर जिला मुख्यालयों के अस्पताल या मेडिकल कॉलेज, सभी जगह ऑक्सीजन की कमी और दवाइयों की लूट हमने देखी है. हताश लोगों को हमने देखा है.
सरकार ने भी इसे महसूस किया है. दरअसल साधनों का न होना एक बात है और साधन होकर भी न होना ज्यादा गंभीर बात है. साधन होकर भी नहीं होने का मतलब यह है कि सरकार ने लोगों से मिलने वाले टैक्स के पैसे से हजारों-हजार करोड़ खर्च करके बड़े अस्पताल और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाए, मशीनें लाईं लेकिन ये मशीनें चलती हैं क्या? गरीबों या सामान्य व्यक्ति को दवाइयां मिलती हैं क्या?
डॉक्टर हताश होकर पर्ची देते हुए कहता है कि यहां दवाइयां नहीं हैं, बाहर से लेकर आओ. मेडिकल कॉलेज का ऑपरेशन थियेटर बंद रहता है और डॉक्टर बाहर जाकर ऑपरेशन करता है. कागज पर तो लिखा है कि प्रसूता को सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए. बच्चे को भी सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए लेकिन मिलती हैं क्या? हेल्थ कार्ड बन जाने से क्या ये सुविधाएं मिलेंगी?
मेरी स्पष्ट राय है कि स्वास्थ्य का बजट जब तक बढ़ेगा नहीं और संस्थाओं की अकाउंटबिलिटी जब तक फिक्स नहीं होगी तब तक स्थिति सुधरना मुश्किल है. कोविड के दौर में हमने देखा कि किस कदर दवाइयों की लूट हुई. इंजेक्शन की कितनी कालाबाजारी हुई. मेरा तो कहना है कि उसका ऑडिट होना चाहिए.
सरकार को श्वेतपत्र जारी करना चाहिए. और हां, एक सवाल और है कि आप कितने कार्ड बनाएंगे? आधार कार्ड, इनकम टैक्स का कार्ड, अनाज का कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस का कार्ड, पासपोर्ट का कार्ड. एक साथ सबको लेकर क्यों नहीं आते? तो सवाल बहुत से हैं. आने वाला वक्त बताएगा कि हेल्थ कार्ड आम आदमी को उसके स्वास्थ्य का अधिकार देने में वाकई मददगार साबित होता है या नहीं!