वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः उत्तरप्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 13, 2022 01:38 PM2022-01-13T13:38:30+5:302022-01-13T13:42:23+5:30

राजनीति में सक्रिय होने के पीछे विचारधारा या जनसेवा असली कारण नहीं होता है। उसका एकमात्र कारण होता है, अपने अहंकार और धनलिप्सा को तृप्त करना।

Vedpratap Vaidik blog Upheaval in the politics of Uttar Pradesh | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः उत्तरप्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः उत्तरप्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल

उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजकल भारी उथल-पुथल मच रही है। उसे देखकर लोग पूछने लगे हैं कि उ।प्र। का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव, दोनों का नाम ‘अ’ से ही शुरू होता है। आदित्यनाथ और अखिलेश! बड़ा ‘आ’ बनेगा या छोटा ‘अ’? यह छोटा ‘अ’ बराबर बड़ा ‘आ’ बनता जा रहा है। योगी मंत्रिमंडल के महत्वपूर्ण सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथी विधायकों ने लखनऊ में छोटा-मोटा भूकंप पैदा कर दिया है। मौर्य ने अपने इस्तीफे के जो कारण बताए हैं, वे तो सिर्फ बताने के लिए हैं लेकिन उनके इस्तीफे का असली संदेश यह है कि उ.प्र. के चुनाव में ऊंट दूसरी करवट बैठनेवाला है। जिस करवट ऊंट बैठेगा, उसी करवट हम पहले से लेटने लगेंगे। वरना क्या वजह है कि मौर्य-जैसे कई नेता बार-बार अपनी पार्टियां बदलने लगते हैं?

राजनीति में सक्रिय होने के पीछे विचारधारा या जनसेवा असली कारण नहीं होता है। उसका एकमात्र कारण होता है, अपने अहंकार और धनलिप्सा को तृप्त करना। इसीलिए जब मृत्युशैया पर पड़े एक राजनेता से यमराज के दूतों ने पूछा कि आपका पुण्य असीम है। बताइए, आप किधर चलेंगे? स्वर्ग में या नरक में? नेताजी ने कहा कि स्वर्ग और नरक को मैं क्या चाटूंगा? मुझे तो वहीं ले चलो, जहां कुर्सी मिले। यानी कुर्सी ही ब्रह्म है, बाकी सब मिथ्या है। स्वामी प्रसाद को यह बात खलती रही कि वे पिछड़ों के इतने वरिष्ठ नेता हैं लेकिन उपमुख्यमंत्री की कुर्सी उनके बजाय भाजपा के पुराने नेता केशव प्रसाद मौर्य को मिल गई। अब वे अखिलेश से भी वादा लेना चाहेंगे कि जीतने पर वे उन्हें उपमुख्यमंत्री तो बनाएं ही। वे यह भी दावा करेंगे कि उ.प्र. के 35 प्रतिशत पिछड़ों के थोक वोट एक झटके में वे सपा को दिला देंगे।

वे शायद भूल गए कि जुलाई में हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में 27 मंत्री ऐसे नियुक्त हुए थे, जो देश के पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मोदी ने इस तथ्य का खूब प्रचार भी किया था। फिर भी यदि मौर्य के बाद, जैसी कि घोषणा हुई है, 10-15 भाजपा विधायक भी पाला बदलने वाले हैं तो निश्चय ही वे अखिलेश यादव के हाथ मजबूत करेंगे। बिल्कुल यही परिदृश्य हमने 2017 में भी देखा था। भाजपा ने उस चुनाव में 67 दल-बदलुओं को टिकट दिए थे। उनमें से 54 जीते थे। अब देखना है कि उनमें से कितने इस बार भाजपा में टिके रहते हैं? जिनके टिकट कटने हैं, वे तो किसी दूसरे पाले में कूदेंगे ही! उत्तर प्रदेश आज भी देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। बिहार के बाद वह देश में जातिवाद का सबसे बड़ा गढ़ है। थोक वोट इसकी पहचान है। इसी सच्चाई के दम पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया है कि वे ऐसा गोला मारेंगे, जो घमंडी नेताओं की तोप को भी उड़ा देगा। देखते हैं, आगे-आगे क्या होता है।

Web Title: Vedpratap Vaidik blog Upheaval in the politics of Uttar Pradesh

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