वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सुभाषचंद्र बोस को प्रेरक श्रद्धांजलि

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 17, 2022 12:57 PM2022-01-17T12:57:37+5:302022-01-17T12:58:20+5:30

1969 में जब इंदिराजी काबुल गईं तो मेरे अनुरोध पर उन्होंने ‘हिंदू गूजर’ नामक मोहल्ले के उस कमरे में जाना स्वीकार किया, जिसमें सुभाष बाबू छद्म वेष में रहा करते थे..

Vedpratap Vaidik blog Inspiring tribute to Subhash Chandra Bose | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सुभाषचंद्र बोस को प्रेरक श्रद्धांजलि

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सुभाषचंद्र बोस को प्रेरक श्रद्धांजलि

हमारे गणतंत्र दिवस पर यों तो सरकारें तीन दिन का उत्सव मनाती रही हैं लेकिन इस बार 23 जनवरी को भी जोड़कर इस उत्सव को चार-दिवसीय बना दिया गया है। 23 जनवरी इसलिए कि यह सुभाषचंद्र बोस का जन्म दिवस होता है। सुभाष-जयंती पर इससे बढ़िया श्रद्धांजलि उनको क्या हो सकती है! भारत के स्वातंत्र्य-संग्राम में जिन दो महापुरुषों के नाम सबसे अग्रणी हैं, वे हैं- महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस। 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पट्टाभि सीतारमैया को सुभाष बाबू ने हराकर इतिहास कायम किया था। वे मानते थे कि भारत से अंग्रेजों को बेदखल करने के लिए फौजी कार्रवाई भी जरूरी है। उन्होंने जापान जाकर आजाद हिंद फौज का निर्माण किया, जिसमें भारत के हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख और सभी जातियों के लोग शामिल थे। 

उस फौज के कई अफसरों और सिपाहियों से पिछले 65-70 साल में मेरा कई बार संपर्क हुआ है। उनका राष्ट्रप्रेम और त्याग अद्भुत रहा है। कई मामलों में गांधीजी के अहिंसक सत्याग्रहियों से भी ज्यादा! मैं सोचता हूं कि यदि सुभाष बाबू 1945 की हवाई दुर्घटना में बच जाते और आजादी के बाद भारत आ जाते तो जवाहरलाल नेहरू का प्रधानमंत्री बने रहना काफी मुश्किल में पड़ जाता। लेकिन नेहरू का बड़प्पन देखिए कि अब से 65 साल पहले वे सुभाष बाबू की बेटी अनिता शेंकल को लगातार 6000 रु. प्रतिवर्ष भिजवाते रहे, जो कि आज के हिसाब से लाखों रु. होता है। इंदिरा गांधी ने सुभाष बाबू के सम्मान में डाक-टिकट जारी किया, फिल्म बनवाई, राष्ट्रीय छुट्टी रखी, कई सड़कों और भवनों के नाम उन पर रखे।

 1969 में जब इंदिराजी काबुल गईं तो मेरे अनुरोध पर उन्होंने ‘हिंदू गूजर’ नामक मोहल्ले के उस कमरे में जाना स्वीकार किया, जिसमें सुभाष बाबू छद्म वेष में रहा करते थे लेकिन अफगान विदेश मंत्री डॉ. खान फरहादी ने मुझसे कहा कि इंदिराजी को वहां नहीं जाने की सलाह हमने भेजी है, क्योंकि वह जगह सुरक्षित और स्वच्छ नहीं है। जो भी हो, मैंने काबुल के उस कमरे में एक छोटा-सा उत्सव-जैसा करके सुभाष बाबू का चित्र प्रतिष्ठित कर दिया था। मैं अब भाई नरेंद्र मोदी को बधाई देता हूं कि उन्होंने सुभाष बाबू के जन्म-दिवस को मनाने का इतना सुंदर प्रबंध कर दिया है। मैं तो उनसे अनुरोध करता हूं कि सुभाष बाबू विएना (आस्ट्रिया) और जापान में जहां भी रहते थे, उन स्थानों को वे स्मारक का रूप देने का कष्ट करें।
 

Web Title: Vedpratap Vaidik blog Inspiring tribute to Subhash Chandra Bose

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