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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: म्यांमार में तख्तापलट पर आवाज उठाए भारत

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 3, 2021 11:02 IST

म्यांमार की फौज ने यह तख्ता इतनी आसानी से इसीलिए पलट दिया है कि वह पहले से ही सत्ता के तख्त के नीचे घुसी हुई थी. 2008 में उसने जो संविधान बनाया था, उसके अनुसार संसद के 25 प्रतिशत सदस्य फौजी होने अनिवार्य थे।

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भारत के पड़ोसी देश म्यांमार (प्राचीन बर्मा) में सोमवार को तख्तापलट हो गया. उसके राष्ट्रपति बिन मिंत और सर्वोच्च नेता आंग सान सू की को नजरबंद कर दिया गया है और फौज ने देश पर कब्जा कर लिया है. यह फौजी तख्तापलट सुबह-सुबह हुआ है जबकि अन्य देशों में यह प्राय: रात को होता है.

म्यांमार की फौज ने यह तख्ता इतनी आसानी से इसीलिए पलट दिया है कि वह पहले से ही सत्ता के तख्त के नीचे घुसी हुई थी. 2008 में उसने जो संविधान बनाया था, उसके अनुसार संसद के 25 प्रतिशत सदस्य फौजी होने अनिवार्य थे और कोई चुनी हुई लोकप्रिय सरकार भी बने तो भी उसके गृह, रक्षा और सीमा- इन तीनों मंत्रालयों का फौज के पास रखा जाना अनिवार्य था.

20 साल के फौजी राज्य के बावजूद जब 2011 में चुनाव हुए तो सू की की पार्टी ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ को स्पष्ट बहुमत मिला और उसने सरकार बना ली.

फौज की अड़ंगेबाजी के बावजूद सू की की पार्टी ने सरकार चला ली लेकिन फौज ने सू की पर ऐसे प्रतिबंध लगा दिए कि सरकार में वह कोई औपचारिक पद नहीं ले सकीं. लेकिन उनकी पार्टी फौजी संविधान में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग करती रही.

नवंबर 2020 में जो संसद के चुनाव हुए तो उनकी पार्टीे 440 में से 315 सीटें 80 प्रतिशत वोटों के आधार पर जीती. फौज समर्थक पार्टी और नेतागण देखते रह गए. अब एक फरवरी को जबकि नई संसद को समवेत होना था, सुबह-सुबह फौज ने तख्तापलट कर दिया.

कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और मुखर नेताओं को भी उसने पकड़कर अंदर कर दिया है. यह आपातकाल उसने अभी अगले एक साल के लिए घोषित किया है.

उसका आरोप है कि नवंबर 2020 के संसदीय चुनाव में भयंकर धांधली हुई है. लगभग एक करोड़ फर्जी वोट डाले गए हैं. म्यांमार के चुनाव आयोग ने इस आरोप को एकदम रद्द किया है और कहा है कि चुनाव बिल्कुल साफ-सुथरा हुआ है.

अभी तक फौज के विरुद्ध कोई बड़े प्रदर्शन आदि नहीं हुए हैं लेकिन दुनिया के सभी प्रमुख देशों ने इस फौजी तख्तापलट की कड़ी भर्त्सना की है और फौज से कहा है कि वह तुरंत लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करे, वर्ना उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे.

भारत ने भी दबी जुबान से लोकतंत्न की हिमायत की है लेकिन चीन साफ-साफबचकर निकल गया है. वह एकदम तटस्थ है. उसने बर्मी फौज के साथ लंबे समय से गहरी सांठ-गांठ कर रखी है. बर्मा 1937 तक भारत का ही एक प्रांत था. इसलिए भारत सरकार का यह विशेष दायित्व बनता है कि वह म्यांमार के लोकतंत्न के पक्ष में खड़ी हो.

टॅग्स :म्यांमारआंग सान सू की
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